शनिवार, 15 जनवरी 2011

फैक्टरी लाईसेंसिंग डिपाटॅमेंट में नया खेल

फैक्टरी लाईसेंसिंग डिपाटॅमेंट में नया खेल
एक ही इलाके में दो दो इंस्पेक्टरों की नियुक्ति से सब हैरान

गौरवराज अजब सिंह भाटी
एनसीआर की सबसे ऊंची ईमारत सिविकसेंटर में पूरा दफ्तर शिफ्ट  हो जाने के बाद भी दिल्ली नगर निगम के सबसे बदनाम विभाग के रूप में कुख्यात फैक्टरी लाईसेंसिंग डिपाटॅमेंट का चाल चलन और चरित्र में कोई बदलाव नहीं आया है। निगम के वरिष्ठ अधिकारी बीएन सिंह  द्वारा इंस्पेक्टरों की लगाम कसने के बाद भी विपक्ष के नेता की सिफारिश पर प्रशासनिक अधिकारी निटुक्त हुए एस के गुप्ता अब सिंह की आंखों में धूल झोंककर  पूरे विभाग में अपनी समानांतर सरकार चला रहे है। पूवी दिल्ली के इंस्पेक्टर  राजेश अरोड़ा के अधिकार और इलाके में कटौती करके इस पद के लाटक नहीं एक एलडीसी अनिल कुमार को यमुनापार का  (संयुक्त) या आधा इंस्पेक्टर बनाकर पूरे इलाके को अधर में टांग दिया है। गौरतलब हो कि  करीब 20 साल के बाद यमुनापार इलाके को दो इलाको में बांटकर एक साथ दो इंस्पेक्टर लगाया ग.ा है।
इतने प्रमुख क्षेत्र के इंस्पेक्टरों के साथ खिलवाड़ का यह गोरखधंधा पिछले दो साल से चल रहा है। यहां के इंस्पेक्टर सतवीर के साथ पहले के अधिकारी अमिया चंद्रा ने जमकर खिलवाड़ किया। बाद में स्थानांतरण करके राजेश अरोड़ा को यहां भेजा गया। अभी चार माह भी नहीं हुए कि अरोड़ा के ऊपर एक ऐसे अनिल कुमार को यहां भेजा गया, जिसकी नौकरी ही पिता की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर लगी थी। इंस्पेक्टर जयकिशन शरमा की मौत के बाद इनके पुत्र अनिल को फैक्टरी लाईसेंसिंग डिपाटॅमेंट में ही एलडीसी की नौकरी दी गई।  गौरतलब है कि एक इंस्पेक्टर के लिए यूडीसी होना जरूरी है। मगर, इसके लायक नहीं होने के बावजूद प्रशासनिक अधिकारी की जोरदार सिफारिश पर बीएन सिंह ने भी अनिल की नियुक्ति के लिए सिफारिस कर दी। इससे ज्यादातर अन्य इंस्पेक्टरों और यूडीसी पोस्ट पर बैठे स्टाफ में भारी अंसतोष है।
तमाम खिलाफ माहौल के बाद भी यमुनापार इलाके में दो दो इंस्पेक्टरों की नियुक्ति से अधिकतर फैक्टरी मालिकों में दुविधा बनी हुई है। देखना यहीं है कि दिल्ली नगर निगम केसबसे बदनाम और करप्ट माने जाने वाले फैक्टरी लाईसेंसिंग डिपाटॅमेंट में ेक ही इलाके में दो दो इंस्पेक्टरों की नियुक्ति से विभाग में अब कौन सा नया गुल खिलता है।
इस बारे में जवाब तलब किए जाने पर फिलहाल कोई भा अधिकारी अपना मुंह खोलने को राजी नहीं है। यानी एक ही साथ इस गोरखधंधे में लगता है कि ज्यादातर लोग अपनी हिस्सेदारी जमाने में लगे हैं।

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