शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

बी.जे.पी. ने की समीक्षा--यूपीए : आजादी के बाद की भ्रष्टतम सरकार

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Published on June 4, 2011 by   ·   1 Comment Print This Post Print This Post सुरेंदर अग्निहोत्री ,,
आई.एन.वी.सी.
लखनऊ ,
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिहं के नेतृत्व में यूपीए-2 सरकार ने अपने दो साल पूरे कर लिए है। उक्त अवसर पर प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह और यूपीए की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गान्धी दोनों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का संकल्प व्यक्त किया। इससे बड़ी विडम्बना नहीं हो सकती क्योंकि एक ऐसी सरकार भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प कर रही है, जिसका हाल तक का एक मन्त्री, एक वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद और यूपीए के एक महत्वपूर्ण घटक के नेता की पुत्री भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोपों पर तिहाड़ जेल में बन्द हैंं। यह बात काफी अहम है कि ये गिरफ्तारियां भाजपा के अभियान, सतर्क मीडिया, के दबाव तथा सर्वोच्च न्यायालय की सतत निगरानी के कारण सम्भव हो सकीं। वस्तुत: इसके लिए डॉ. मनमोहन सिंह या उनकी सराकर कोई श्रेय नहीं ले सकती क्योंकि कार्रवाई करने की बजाए उन्होंने तो इनमें से कुछ को निर्दोष होने का प्रमाणपत्र दे दिया था। यह जाहिर है कि डॉ. मनमोहन सिंह आजादी के बाद की देश की सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार के मुखिया हैं। इसमें पारदÆशता की कमी है, उच्च स्तर पर संलिप्तता है, किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं है, पूरा तन्त्र ढह चुका है तथा रोज-रोज नए घोटाले सामने आ रहे हैं। दरअसल, यह प्रधानमन्त्री की `षड्यन्त्रकारी चुप्पी´, `अपराधी उदासीनता´, और `घोर लापरवाही´ थी की उनकी नाक के नीचे उनका एक मन्त्री देश के खजाने को लूटता रहा और वे उसकी अनदेखी करते रहे। इसमें यूपीए की सर्वशक्तिमान नेता श्रीमती सोनिया गान्धी की चुप्पी भी उल्लेखनीय थी।
घोटालों और राष्ट्रीय सम्पित्त की लूटा का यह सिलसिला काफी बड़ा है। लेकिन, उनमें से कुछ प्रमुख का यहां उल्लेख किया जा रहा है।
2जी स्पेक्ट्रम के आबण्टन और लाइसेंस जारी करने में घोटाला
संचार मन्त्रालय, भारत सरकार में 2जी लाइसेंसों के आबण्टन में हुआ घोर भ्रष्टाचार स्वतन्त्र भारत के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना है। यह तन्त्र के दुरूपयोग, गलतबयानी और धोखाधड़ी का एक गम्भीर मामला है, जिसमें बहुमूल्य स्पेक्ट्रम और लाइसेंस आबण्टन में भारी राशि के एवज में चुनिन्दा लोगों को फायदा पहुंचाया गया। यह तथ्य सर्वविदित है कि कैसे लाइसेंसों के लिए आवेदन सार्वजनिक रूप से 1/10/2007 तक मंगाए गए थे, उसके बाद एक नकली कट-ऑफ तिथि 25/9/2007 बनाई गई और 25/9/2007 तथा 1/10/2007 के बीच किए गए सभी आवेदनों को निरस्त कर दिया गया। खेल शुरू होने के बाद खेल के नियमों में बदलाव होने पर प्रधानमन्त्री चुप्पी साधे रहे। इस पर कोर्ट ने भी प्रतिकूल टिप्पणी की।
प्रधानमन्त्री ने तब भी चुप्पी साधे रखी जब तत्कालीन मन्त्री ए. राजा ने 02 नवम्बर, 2007 के उनके पत्र की खुली अवहेलना की, जिसमें उन्होंने स्पेक्ट्रम के उचित मूल्य के लिए पारदशÊ प्रक्रिया अपनाने पर बल दिया था क्योंकि 2007 में इसे 2001 के मूल्य पर बेचा जा रहा था, जबकि देश में टेलीडेंसिटी कई गुणा बढ़ चुकी थी। देश को यह जानने का हक है कि सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमन्त्री ने हस्तक्षेप करते हुए सारी प्रक्रिया को रोका क्यों नहीं जब सभी नियमों को ताक पर रख स्पेक्ट्रम कम मूल्य पर बेचा जा रहा था। क्या डॉ मनमोहन सिंह स्वयं जानकारी के बावजूद नहीं कार्यवाही करने और देश के राजस्व को हानि पहुंचाने के दोषी हैं कि नहीं। एक दिन के भीतर 120 लाइसेंस जारी किए गए तथा स्पेक्ट्रम का आबण्टन किया गया, जिसमें कई अपात्र कम्पनियों को भी लाइसेंस मिल गया।
चौंकाने वाली बात यह है कि एक नियमित सीबीआई मामला दर्ज हो जाने के बाद भी, डॉ. मनमोहन सिंह ने 26, जुलाई, 2009 को यह सार्वजनिक बयान दिया कि संचार मन्त्री ए. राजा के खिलाफ आरोप सही नहीं है। यह कह कर वे सीबीआई को क्या सन्देश देना चाह रहे थे, जो सीधे उन्हीं के तहत काम करती है। जब उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की निगरानी शुरू की तो ये वही भूतपूर्व मन्त्री थे, जो सबसे पहले गिरफ्तार हुए।
प्रधानमन्त्री को इसका जवाब देना होगा कि समय-समय पर जिम्मेदार लोगों की आपित्तयों के बावजूद उन्होंने इतना बड़ा घोटाला कैसे होने दिया। इसके उलट वे 2010 के मध्य तक तत्कालीन मन्त्री ए. राजा को बेगुनाही का प्रमाणपत्र देते रहे। तत्कालीन वित्त मन्त्री श्री पी. चिदम्बरम की भूमिका भी कई सवाल खड़े करती है। उनके विभाग द्वारा केबिनेट के 2003 के निर्णय के आलोक में ये आपत्ति बार-बार उठाई गई कि स्पैक्टम के कीमत एक पारदशीZ प्रक्रिया के अनुसार तय की जाए जिसमें उसकी सार्वजनिक नीलामी भी हो सकती है। ये बड़े आश्चर्य का विशय है कि 15 जनवरी 2008 को श्री चिदम्बरम ने तथाकिथ्त रूप से यह निर्णय कि चूंकि 10 जनवरी को लाइसेंस और स्पैटम दोनों का आबण्टन हो चुका है। अत: इस मामले को अब बन्द किया जाए। श्रीमती सोनिया गान्धी को भी कई जवाब देने हैं। यूपीए तथा कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा होने के नाते उस सरकार में जिसकी वो सर्वोच्च नेता है, जब राष्ट्र का धन लूटा जा रहा था उस समय उनकी क्या जिम्मेवारी बनती थी र्षोर्षो
जब सीएजी ने लाइसेंस निर्गत करने तथा स्पेक्ट्रम के आबण्टन के बारे में एक विस्तृत ऑडिट रिपोर्ट तैयार की तथा 1.76 लाख करोड़ रूपए के नुकसान का अनुमान लगाया तो भरसक कोशिश की गई कि इस निष्कर्ष को झुठलाया जाए और वर्तमान संचार मन्त्री श्री कपिल सिब्बल ने सार्वजनिक रूप से संसद में कहा कि कोई घाटा नहीं हुआ है। अब सीबीआई ने भी अपनी जांच के दौरान पाया है कि हजारों करोड़ रूपए का नुकसान हुआ है और वह भी तदर्थ आधार पर। नुकसान का प्रथम दृष्टया अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में सरकार को 35,000 करोड़ रूपए के लक्ष्य की तुलना में लगभग 67,000 करोड़ रूपए का जबर्दस्त मुनाफा हुआ और इसके अलावा ब्राडबैण्ड वायरलैस एक्सेस सÆवसेज के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी से उसे 38,000 कराड़ रूपए का और फायदा हुआ इसके बावजूद, जहां तक 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का प्रश्न है तो प्रधानमन्त्री ने किसी समीक्षा के आदेश नहीं दिए।
जब डॉ. मुरली मनोहर जोशी लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के रूप में इस मामले की जांच कर रहे थे तो तब शुरू में डॉ. मनमोहन सिंह ने स्वयं श्री जोशी की एक अनुभवी संसदीय नेता के रूप में प्रशंसा की तथा कहा था कि वे अच्छा काम कर रहे हैं। तथापि, जब डॉ. जोशी की अध्यक्षता वाली समिति ने कैबिनेट सचिव तथा प्रधानमन्त्री के सचिव को पूछताछ के लिए बुलाया तो सभी संसदीय और संवैधानिक नियमों की अवहेलना करते हुए कई केन्द्रीय मन्त्रियों द्वारा इसमें बाधा पहुंचाई गई। जाहिर है कि यह सरकार बहुत कुछ छुपाना चाहती है। डॉ जोशी ने लोकसभा के स्पीकर को अपनी रिपार्ट सौम्प दी है। हम यह मांग करते हैं कि उससे संसद के आगामी सत्र के पहले दिन संसद में प्रस्तुत करते हुए सार्वजनिक किया जाए।
अब वर्तमान कपड़ा मन्त्री और मई, 2004 से मई, 2007 तक दूरसंचार मन्त्री रहे दयानिधि मारन की भूमिका भी सन्देह के घेरे में आ गई है। उन्होंने जोर दिया और डॉ. मनमोहन सिंह आसानी से मान गए कि स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण मन्त्री समूह के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहना चाहिए क्योंकि इस बारे में डीएमके से समझौता हुआ है। इसका देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। अब गम्भीर आरोप लग रहे हैं कि एक खास मोबाइल कम्पनी की 74 प्रतिशत इिक्वटी जब एक विदेशी कम्पनी ने खरीद ली तो उसे फायदा पहुंचाया गया और तत्पश्चात् यह पैसा तथाकथित रूप से एक सहायक कम्पनी के माध्यम से श्री मारन के परिवार के बिजनेस में निवेश किया गया। हितों के स्पष्ट टकराव तथा अधिकार के दुरूपयोग के अलावा यह स्पष्ट था कि सरकारी निर्णयों की बिक्री हो रही थी। जाहिर है, उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
हमें उम्मीद है कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी इस घोटाले की तह तक जाएगी और देषियों को सजा मिलेगी। गठबन्धन राजनीति की मजबूरियों को भ्रष्ट लोगों का गठबन्धन नहीं बना देना चाहिए। भाजपा की यह मांग है कि धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के ऐसे गम्भीर मामले का जिम्मा यूपीए के सिर्फ एक सहयोगी (डीएमके) के ऊपर नहीं डाला जा सकता। सरकार में शीर्ष और वरिष्ठ पदों पर बैठे ऐसे लोग हैं जो इस लूट में शामिल रहे हैं। जाहिर है, उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और जांच एजेंसी को पूरी छूट दी जानी चाहिए।
राष्ट्रमण्डल खेलों में आम जनता के धन की लूट
किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय खेल का आयोजन उपलब्धि और उत्सव का मौका होता है। हांलाकि, कुछ महीने पहले दिलली में आयोजि राष्ट्रमण्डल खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने देश को गौरवािन्वत किया, लेकिन बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार से देश को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शमÊन्दगी और नाराजगी झेलनी पड़ी। भाजपा ने खासतौर पर हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रमण्डल खेलों में लूट को सराहनीय ढंग से तथ्यों और आकड़ों के साथ देशभर में उजागर किया है। आज, श्री सुरेश कलमाड़ी आयोजन समिति के अपने अनेक सहयोगियों के साथ जेल में हैं। लेकिन, मामला यहीं खत्म नहीं होता। वे इसके मोहरे मात्र हैं। प्रत्येक फाइल को कैबिनेट, कैबिनेट सब-कमीटी, मन्त्री समूह, सम्बन्धित मन्त्रालय, यय वित्त समिति, पीएमओ और अन्तत: प्रधानमन्त्री की मञ्जूरी मिली थी।
प्रधानमन्त्री ने श्री वी.के. शंगुलू की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया और घोषणा की कि इसकी रिपोर्ट पर कार्रवाई की जाएगी। पांचवी रिपोर्ट में इसकी पुन: पुष्टि हुई कि गम्भीर घपले हुए हैं, जिससे ठेकेदारों को अनुचित फायदा पहुंचा है और अपव्यय तथा सरकार को नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में पाया गया है कि ठेके देने में गम्भीर अनियमितताएं हुई हैं क्योंकि शुरूआत से ही साजिश थी कि परियोजनाओं को पूरा करने में विलम्ब किया जाए, लागत बढ़ाई जाए और पैसा मांगा जाए और समय कम होने के कारण ऊंची लागत में ठेके दिए जाएं। समिति ने श्रीमती शीला दीक्षित की दिल्ली सरकार जिनके हाथ में सारी वित्तीय शक्तियां थीं, विभिé एजेंसियों जैसे डीडीए, सीपीडब्लयूडी इत्यादी, श्री सुरेश कलमाडी की अध्यक्षता वाली आयोजन समिति की कड़ी आलोचना की है। चाहे वह राष्ट्रमण्डल खेल गांव हो, यहां तक कि एयर कण्डीशनरों, कुÆसयों, टॉयलेट पेपर तक खरीद में बड़े पैमाने पर घपले हुए हैं।
इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि Þबीमारी अन्दर तक फैली है और इसे अपवाद नहीं माना जा सकता, जिसके लिए सिर्फ कनिष्ठ पदाधिकारी जिम्मेदार हैं। इसमें शामिल अधिकारियों की आगे और जांच के आधार पर पहचान की जानी चाहिए और उपयुक्त कार्रवाई की जानी चाहिए।ß समिति ने आगे कहा है, Þएक प्रकार की कुटिलता से काम किया गया और परियोजनाओें में अनुचित विलम्ब शायद जानबूझकर किया गया, जिससे कि दहशत का माहौल उत्पé हो तथा सभी सम्बन्धितों को लाभ पहुंचाया जा सके।ß
राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन में करदाता के कुल पैसों का नुकसान लगभग 70,000 करोड़ रूपए है। यह सर्वविदित है कि वित्तीय अनुमोदनों में पीएमओ के कुछ अधिकारी शामिल थे। अब कार्रवाई करने की बजाए दिल्ली की मुख्यमन्त्री श्रीमती शली दीक्षित ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है और प्रधानमन्त्री पुन: चुप्पी साधे हुए हैं। जैसा कि शुंगलू समिति ने सिफारिश की है, भाजपा यह मांग करती है कि उच्च पदों पर आसीन उन सभी लोगों की पहचान की जाए, उनकी जांच हो तथा उन्हें पर्याप्त दण्ड दिया जाए। भाजपा की यह मांग है कि सीबीआई को दिल्ली सरकार और राष्ट्रमण्डल खेल घोटाले में मुख्यमन्त्री श्रीमती शीला दीक्षित की भूमिका की भी जांच करनी चाहिए। इसमें उनकी संलिप्तता भी स्पष्ट है।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की संस्थागत गरीमा और नैतिकता से समझौता
यपीए सरकार ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग के अध्यक्ष के रूप में पीजी थॉमस की नियुक्ति में नैतिकता की सभी सीमाओं को पार कर दिया। वे दागदार थे क्योंकि पामोलीन घोटाले से जुड़े मामलों में उन पर चार्जशीट की गई थी, जो केरल में एक कोर्ट के समक्ष लम्बित थी। जो समिति अनंशंसा करने वाली थी, उसमें प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष की नेता भी शामिल थीं। श्रीमती सुषमा स्वराज ने श्री थॉमस की नियुक्ति का विरोध किया क्योंकि वे भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपी थे। गृहमन्त्री ने गलत बयानी की कि वे दोषमुक्त हो चुके हैं। श्रीमती सुषमा स्वराज का यह अनुरोध कि नियुक्ति को एक दिन के लिए टाल दिया जाए और तथ्यों का पता लगाया जाए या किसी और नाम पर विचार किया जाए, नहीं माना गया। प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री दोनों ने जबर्दस्ती श्री थॉमस की नियुक्ति कर दी। यहां यह उल्लेखनीय है कि पहले दूरसंचार सचिव के रूप में उन्होंने 2जी लाइसेंस देने के बारे में सीएजी की ऑडिट का यह कह कर विरोध किया थ्ज्ञा कि यह एक नीतिगत मामला है और इसका ऑडिट नहीं हो सकता। उसके बाद जो हुआ वह सबको पता है।
सीवीसी एक नैतिक गरिमायुक्त संस्था है। उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करते समय उच्चतम न्यायालय ने पाया कि क्व्च्ज् की 2000 से 2004 के बीच की कई नोटिंग, जिसमें श्री थॉमस के विरूद्ध विभागीय कार्रवाई शुरू करने की अनुशंसा की गई थी, चयन आयोग की जानकारी में नहीं लाई गई। कोर्ट ने कहा कि जब सीवीसी जैसी किसी संस्था की नैतिक गरिमा का प्रश्न हो तब जनहित को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए और वैयक्तिक नैतिकता और गरिमा का Þनिश्चय ही संस्थागत की नैतिकता गरिमा से सम्बन्ध है।ß तदनुसार, कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया तथा यदि किसी सदस्य का विरोध है और बहुमत उसे अस्वीकार करता है तो उसे अवश्य ही इसका कारण बताना चाहिए।
एक प्रधानमन्त्री के रूप में और चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में एक दागी अधिकारी की सीवीसी के रूप में नियुक्ति थोपने के लिए डॉ. मनमोहन सिंह पूरी तरह जिम्मेवार हैं। उन्होंने अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर उन्होंने श्री थॉमस के विरूद्ध नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज की एक वैद्य आपित्त को दरकिनार क्यों कियार्षोर्षो
आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी घोटाला
यह भी भ्रष्टाचार का एक कॉपीबुक मामला था। आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी को रक्षा मन्त्रालय के नियन्त्रण वाली जमीन कारगिल के नायकों और उनकी विधवाओं के लिए फ्लैट बनाने हेतु मुम्बई के एक महंगे इलाके में दी गई थी। लेकिन, घपलेबाजी और धोखाधड़ी के जरिए इसे नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने हड़प लिया। जब चव्हाण राजस्व मन्त्री और विलासराव देशमुख मुख्यमन्त्री थे तो सभी नियमों से छेड़छाड़ की गई। यहां तक कि वर्तमान केन्द्रीय मन्त्री और भूतपूर्व मुख्यमन्त्री सुशील कुमार शिन्दे की भूमिका भी सन्देह के घेरे में है। इसके लाभाÆथयों में कांग्रेस के मुख्यमन्त्रियों सहित बड़े नेताओं के अनेक रिश्तेदार शिामल हैं।
यदि कारगिल के नायकों की याद के साथ हुए ऐसे अपमान पर देशभर में क्षोभ उत्पé न हुआ होता तो शायद इसकी भी जांच मुश्किल होती। हालांकि, अभी भी सन्देह कायम है क्योंकि रक्षा विभाग द्वारा प्लाट के स्वामित्व सम्बन्धी फाइल गायब हो गई है। यहां तक कि पर्यावरणीय स्वी—ति वाली फाइल केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय से गायब हो चुकी है।
एण्ट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड – देवास मल्टीमीडिया घोटाला
एक और घोटाला अन्तरिक्ष विभाग में प्रकाश में आया है, जो सीधे प्रधानमन्त्री के अधीन है। 2005 में एण्ट्रिक्स कारपोरेशन लि., इसरो की वाणििज्यक शाखा, ने देवास मल्टीमीडिया के लिए दो सैटेलाइट लांच किए और बगैर निलामी या उपयुक्त मूल्य निर्धारण किए सिर्फ 1000 करोड़ रूपए में मोबाइल टेलीफोनी सहित दुर्लभ एस-बैण्ड के बीस वषो± तक 70 डभ्Z के असीमित उपयोग का बड़ा फायदा दिया। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले साल सरकार ने 3जी मोबाइल सेवाओं हेतु इसी तरह की वायु तरंगों हेतु 15 डभ्Z की नीलामी से 67719 करोड़ रूपए कमाए तथा 38000 करोड़ रूपए की उगाही ब्राडबैण्ड वायरलेस एक्सेस सÆवसेज की नीलामी से हुई। इसमें न तो सरकार का कोई अनुमोदन लिया गया और न इसकी निगरानी हुई। इस सौदे के पांच वर्ष बाद इसे निरस्त करने का निर्णय जुलाई, 2010 में लिया गया। राष्ट्रीय खजाने को हुए इस नुकसान की देशव्यापी प्रतिक्रिया के बाद, इस सौदे को अन्तत: फरवरी, 2011 में रद्द किया गया। इसके पूर्व देवास मल्टीमीडिया के अधिकारी सरकार के तथा पीएमओ के उच्चाधिकारियों के सम्पर्क में थे।
अन्तरिक्ष विभाग सीधे प्रधानमन्त्री के अधीन है। जब इस भारी घपले के बारे में उनसे पूछा गया तो उनका जवाब वही था कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। यह बात विचित्र लगती है कि जब कभी किसी अनियमितता के बारे में उनसे पूछा जाता है तो वे अनभिज्ञता का रोना रोते हैं। डॉ. मनमोहन सिंह से हम ये पूछना चाहेंगे कि क्या आप कोई निगरानी नहीं करते अथवा जब कभी कोई भ्रष्टाचार होता है तो उससे आप मुंह फेर लेते हैं।
विदेशी बैंकों में जमा भारतीय नागरिकों का काला धन
भारतीय नागरिकों द्वारा अपराध और भ्रष्टाचार से उपÆजत काले धन को विदेशी बैंकों में जमा करने के सवाल पर सरकार की उदासीनता से लेकर देशभर में गहरी नाराजगी है। पहले जब लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा संसदीय दल के नेता श्री लाल—ष्ण आडवाणी ने यह मुद्दा उठाया था तो कांग्रेस ने इसे चुनावी स्टण्ट बताया था। बाद में कहा गया कि सत्ता में आने के बाद सार्थक कदम उठाए जाएंगे। इस मुद्दे से जुड़े एक पीआईएल में जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने प्रतिकूल टिप्पणियां की है उससे सरकार की नीयत का पता लगता है। हम सिर्फ बहुविषयी समिति द्वारा अध्ययन और पांच बिन्दुओं वाली रणनीति की बातें सुन रहें हैं। ये सिर्फ दिखावा है और इसमें ऐसा कोई इरादा नहीं कि एक समय-सीमा के भीतर कालेधन का पता लगाया जाए और देशवासियों को बताया जाए। अमेरिका दोहरी कर नीति के बावजूद टैक्स चोरों के नाम जाहिर करने के लिए स्वीस अधिकारियों को मजबूर कर सकता है। भारत अब कोई तीसरी दुनिया की अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि एक उभरती हुई आÆथक महाशक्ति है, जिसकी जी-20 राष्ट्रों में अच्छी दखल है। इसका इस्तेमाल आखिर सरकार क्योंकि नहीं करती। भ्रष्टाचार के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र सन्धि जो दिसम्बर 2005 में प्रभावी हुई थी, उसका अनुसमर्थन भारत ने अभी पिछले सप्ताह ही किया है। यह वैश्विक भ्रष्टाचार से लड़ने का एक व्यापक उपकरण है। यदि उच्चतम न्यायालय की निगरानी नहीं होती तो प्रवर्तन निदेशालय और अन्य एजेंसियों को हसन अली की निष्पक्ष जांच नहीं करने दी जाती जो लगभग 76,000 करोड़ रूपए का कर चोर है तथा जिसके कई विदेशी खाते हैं। इसका कारण स्पष्ट है, आरोपित व्यक्तियों की जांच के दौरान कुछ बड़े कांगेसी नेताओं के विरूद्ध भी आरोप लगे हैं।
यूपीए सरकार में घोटाले एक के बाद एक चौंकाने वाली नियमितता से प्रकट होते रहते हैं। अनाज और खाद्य के आयात निर्यात में जितनी भयंकर अनियमितताएं हुई हैं उसकी जानकारी सार्वजनिक है। एफ.सी.आई. के गोदामों में रखा लाखों टन अनाज सड़ गया और गरीब जनता भूख से कराहती रही, ये भी देश जानता है। अब कोयला के ब्लॉक के आबण्टन में भी भयंकर अनिमतताओं की िशकायत सामने आ रही है, जो निजी हाथों में दिए गए हैं। ये आबण्टन उस समय के भी हैं जब डॉ मनमोहन सिंह स्वंय कोयला मन्त्री थे। ऐसे महंगे कोल ब्लॉक गैर सार्वजनिक निजी कम्पनियों और सार्वजनिक प्रतिश्ठानों को आबण्टित किए गए। जिनका काम सवालों के घेरे में था और जिनकी योजनाएं सिर्फ कागज पर थीं।
उपरोक्त उदाहरण यूपीए-1 तथा यूपीए-2 सरकारों की भ्रष्टाचार की सिर्फ मिसालें हैं। नि:सन्देह आजादी के बाद से आज तक किसी भी सरकार पर भ्रष्टाचार के इतने आरोप नहीं लगे। देश ने देखा कि किस तरह शर्मनाम ढंग से रिश्वतखोरी के जरिए डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव जीता। आज तक भी दोषियों के विरूद्ध कोई दण्डात्मक कार्रवाई नहीं हुई है। समूची यूपीए सरकार ओटैवियो क्वात्रोच्ची को बचाने में जुटी हुई थी, सिर्फ इसलिए कि गान्धी परिवार से उनकी करीबी थी। सभी को पता है कि कैसे एक सरकारी विधि अधिकारी की गलतबयानी के आधार पर बोफोर्स घोटाले के रिश्वत का पैसा उसके लन्दन बैंक खाते से मुक्त किया गया था। इन घोटालों के कारण देश की जो तबाही हुई है, इसकी जिम्मेवारी से श्रीमती सोनिया गान्धी और डॉ. मनमोहन सिंह बच नहीं सकते। उन्हें जवाब देना होगा। देश को अपने निष्कर्ष निकालने का हक है।
भाजपा इन घपलों और घोटालों को उजागर करती रहेगी और इनके खिलाफ लड़ती रहेगी। भाजपा की मांग है कि अपराध और भ्रष्टाचार से अÆजत भारतीय नागरिको का समस्त काला धन जो विदेशी बैंकों में जमा है, एक निश्चित समय-सीमा के भीतर भारत लाया जानाचाहिए और पर्याप्त कार्रवाई की जानी चाहिए। यह भी जरूरी है कि यूपीए सरकार के विभिé घोटालों में शामिल सभी बड़े-बड़े लोगों पर कोर्रवाई होनी चाहिए।
जिस शर्मनाक तरीके से डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने सार्वजनिक सम्पत्ति और कर दाताओं के पैसे के लूट की छूट दी उस आधार पर उसने शासन करने के सारे नैतिक आधार को खो दिया है। इस कारण भारत और भारतीयों का सिर शर्म से झुक गया है और पूरी दुनिया में देश की बदनामी हुई है।
भारतीय जनता पार्टी देश की जनता का आह्वान करती है कि वह यूपीए सरकार और शासन के दौरान जितने आयोजित और प्रायोजित भ्रष्टाचार हुए हैं उनके खिलाफ निर्णायक संघर्ष के लिए तैयार हो क्योंकि यूपीए का भ्रष्टाचार देश की राजनीति और शासन व्यवस्था को अन्दर से कमजोर और खोखला कर रहा है। जनमत का दबाव इसलिए भी आवश्यक है कि जो दोषी हैं( भले ही उनका कद अथवा पद कुछ भी हो के खिलाफ कार्यवाई हो सके और उन्हें दण्ड मिले।

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