मंगलवार, 28 जून 2011

माफ करना

माफ करना
हम अलग नहीं है साथी, फिर भी नदी के, रेल की पटरियों की तरह
एक साथ होकर भी अलग है।
लगा था कि इस बार होगी मुलाकात , मगर माफ करना मेरे मित्र
चाहकर भी नहीं बुला सकता माफ करना -3 ।
लग गई है दुनिया की नजर, नजर से बचाना है  ।
रिश्तो को बचाना है।हर पल हर कदम पर साथ हो हम यादो के बंधन मे होकर कैद भी नहीं चाहते रिहाई
शाजद फिर हो ना हो कभी मुलाकात
मैं भीम अर्जुन कर्ण या कोई भी नाम हो नहीं हूं कि खड़ा हो जाउं महाभारत में
एक बंधन है मेरे साथ, उसको भी निभाना दूर तलक साथ साथ जाना है।
माफ करना यार चाहत के बाद भी खामोश हूं।
( आप अपने किसी एक ब्लाग को इनबाक्स की तरह संपंन्न करे उसमें नाना प्रकार की खबरों सूचनाओं का पिटारा बनाए ताकि वो विविधता से भरपूर हो)


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