बस जल्द ही बढ़ने वाला है रेल किराया
जनता जर्नादन होशियार, बा मुलाहिजा सावधान । लालू ममता की दया धार अब बंद होने वाली है। सात साल के बाद एक बार फिर रेल किराया में बढ़ने का दौर चालू होने जा रहा है। बिहार को रसातल में ले जाने के लिए कुख्यात बदनाम लालू राबड़ी राज का कलंक अभी तक बरकरार है, इसके बावजूद एक रेल मंत्री के रूप में लालू ने कमाल किया और लगातार पांच साल तक रेल किराये को बढ़ने नहीं दिया। आय के अन्य संसाधनों को बढ़ाकर रेलवे को घाटे में नहीं आने दिया। लालू के बाद ममता बनर्जी ने भी लालू के पदचिन्हों पर चली, और किराये को नहीं बढ़ाया। मगर ममता पार्टी के प्रेशर से रेल मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी ने दया करूणा प्रेम ममता और संवेदना को दरकिनार करते हुए रेल भाड़ा बढ़ाने का गेम चालू कर दिया है। संसाधनों को तलाश कर आय में चौतरफा बढ़ोतरी के उपायों में जुट गए है। रेल घाटे से बेहाल है, क्योंकि ममता दीदी ने रेल की बजाय वेस्ट बंगाल पर तो ध्यान दिया, मगर रेल को लेकर अपने कर्तव्य भूल गई। देश यूपीए और सरदार जी की गद्दी पर कोई खास संकट (अन्नामय की तरह) नहीं आया तो साल 2011 के अंत तक देश की जीवनरेखा माने जाने वाली रेल में सफर करना पहले से कुछ महंगा जरूर हो जाएगा।
युवराज की छवि संवारने और दिखाने की मुहिम
अन्ना अनशन में देश एकजुट हो गया, मगर हमेशा की तरह दिल्ली में मौनी बाबा बने रहने वाले अपने युवराज यानी राहुल बाबा इस बार भी खामोशी के साथ हंगामा देखते रहे। देखते रहे अपनी पार्टी और पीएम की फजीहत। एक तरफ सरकार की पैंट गिल्ली होती रही तो दूसरी तरफ अन्ना की आंधी से पूरी सरकार का दम उखड़ती रही। हालात को हाथ से बाहर होते देख पर्दे के पीछे से कमान थामे राहुल बाबा को संसद में पूरा पक्ष रखना पड़ा। अन्ना के सामने सरकार को मत्था टेकना पड़ा। हालांकि ये सब हुआ तो राहुल बाबा के निर्देश पर ही। मगर जब पूरा देश अन्नामय होकर उल्लास मना रहा है तो सरकार को अगले साल होने वाले कई चुनावों की चिंता सताने लगी। लिहाजा लोकपाल बिल पर सरकार कोशिश करसरही है कि कुछ चक्कर इस तरह का चलाए कि लोकपाल मामले में अन्ना की जगह राहुल बाबा को भी पूरा श्रेय मिले, ताकि पार्टी सीना चौड़ा करके अन्ना का काउंटर कर सके।
भाई ने भाई को मारा( पछाड़ा)
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी किसी भी पार्टी के नेता से मात खा जाए या पस्त हो जाए तो चलता है। मगर खासतौर पर अपने चचेरे भाई वरूण गांधी से पस्त हो जाए यह खुद राहुल प्रियंका सोनिया समेत पार्टी को कतई बर्दाश्त नहीं होता। कई मामलों में वरूण से मात गए राहुल बाबा की अपने भाई के सामने बोलती ही बंद हो गई। खासकर कई साल तक इंतजार के बाद भी शादी नहीं करने पर इसी साल छोटे भाई ने बनारस में शादी करके बड़ी मम्मी के दुखते रग पर हाथ रख दिया। पूरे देश में इस शादी से ज्यादा चर्चा सोनिया राहुल प्रियंका के इसमें शरीक नहीं होने से हुआ। अब ताजा मामला अन्ना आंदोलन का है कि युवा भीड़ अंत तक अपने युवा नेता राहुल बाबा को तलाशती ही रही, मगर वे नहीं आए, मगर वरूण की सक्रिय मौजूदगी ने एक बार फिर अपने बड़े भाई को पछाड़ ही दिया।.
बहनजी की सक्रियता आई काम
पंजा पार्टी में मैडम अम्मा हैं तो प्रियंका वाड्रा गांधी पूरे पार्टी के लिए बहनजी है। हालांकि वे राहुल गांधी की सगी बहन है, पर पूरे पार्टी ने इन्हें अपनाया और माना। इस समय पार्टी सुप्रीमों और इनका मम्मी जब देश से बाहर है तो पार्टी का सारा काम पर्दे के पीछे बहनजी के हाथ में है। देश की जनता के मूड को भांपना और अन्ना की ताकत के सामने सरकार के घुटने टेकने की कवायद और चालाकी सब भाई-बहनों के निर्देश पर हुए। हालांकि पार्टी सुप्रीमों द्वारा गठित कोर कमेटी को साथ लेकर तमाम फैसले हुए मगर कुल मिलाकर पार्टी और टीम पीएम के कोरे ज्ञान ने दिखा और बता दिया कि अपन सरदार जी विवेक पूर्वक और अपने मन से काम करने में एकदम कोरे कागज है। पीएम के नासमझी पर बहनजी ने कई बार रोष भी जताया। अब देखना है कि देश में खराब हुई पार्टी और सरकार की छवि को युवराज के सहारे ठीक करने की मुहिम में क्या अपने सरदार जी भी कदमताल कर पाएंगे ?
पार्टी का आत्ममंथन
अन्ना हजारे का अनशन भले ही खत्म हो गया हो, मगर पंजा पार्टी में आत्ममंथन का दौर चालू हो गया है। अन्ना हजारे को हल्केपन से आंकने की भूल से लेकर अनशन के दौरान गलत बयानी और नेताओं के उग्र तेवर से होने वाले नुकसाल की समीक्षा की जा रही है। कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी,से लेकर प्रणव मुखर्जी,लुबोधकांत सहाय दिग्गी राजा से लेकर तमाम नेताओं के बयानों पर यही वोग समीक्षा करने में लगे है। खासकर प्रियंका और राहुल नेताओं द्वारा अन्ना की फौज को कमतर आंकने की भूल को माफ करने के मूड में नहीं है। अगले साल होने वाले यबपी समेत कई राज्यों के चुनाव और समाज में पार्टी की इमेज को लेकर एक गुप्त रिपोर्ट मंगवा रही है। इस बाबत एक सर्वे भी कराने पर जोर दिया जा रहा है। खासकर यूपी में अन्ना के बाद की हालात को जानने के लिए बाबा उतावले है कि सालों की मेहनत का कोई असर अभी बाकी है या अन्ना की आंधी में सब धुल(उखड़) गया। (खबर लिखने के बाद पता चला कि बेकाबू होकर बोलने में उस्ताद अपने मनीष तिवारी पर कैंची चल गई है)
अन्ना के सामने सब ढेर
महाराष्ट्र में जनसंघर्ष करने वाले अन्ना हजारे की मार्च 2011 तक नेशनल इमेज होने के बाद भी लोकप्रिय नहीं थे। खासकर धाक और प्रभाव के मामले में भी अन्ना को कोई खास महत्व नहीं दिया जाता था। मगर, एक गांधीवादी अहिंसक आंदोलनकारी की साफ सुथरी छवि होने के कारण ही दिल्ली के नेताओं को अन्ना की जरूरत पड़ी। अप्रैल में अपने मजबूत इरादे और आत्मबल से सरकार को मजबूर करने वाले अन्ना रातोरात इतने लोकप्रिय हो गए कि लोग इन्हें आज तो गांधी जैसा मानने लगे है। देश विदेश की मीडिया में सराहे जा रहे अन्ना के सामने सारे धूमिल से हो गए है। चाहे खिलाड़ी हो या अभिनेता कोई भी इनके सामने टीक नहीं पा रहा । अन्ना के पीछे पूरा देश देखकर तो सारे हैरान है कि इस 74 साल के नौजवान ने इतनी बड़ी लकीर खिंच दी है कि इसके सामने तो अभी कोई नहीं ठहरता।
ये तो होना ही था
अन्ना हजारे की दादागिरी नुमा गांधीगिरी जिसे अब अन्नागिरी के नाम से पुरा देश जानता, मानता और अपनाया है। अन्ना की छवि देश के दूसरे गांधी के रूप में उभरी। लोकप्रियता के चरम पर स्थापित अन्ना की इस लोकप्रियता से बौखलाए टीम अन्ना के (खुद को अन्ना से ज्यादा महान मानने वाले) सदस्यों में स्वामी अग्निवेश और रामदेव बाबा का हश्र सारा देश देख रहा है। बंधुआ मुक्ति मोर्चा और अंग्रेजी विरोध समेत पांच तारा होटलों के बाहर प्रदर्शन करने वाले को तरजीह देने की बजाय अन्नागान सो तो बौखलाना ही था। इस भीड़ में कोई घास भी ना डाले इससे बेहतर है कि कपिल (?) मुनि की गोद में बैठकर मलाई ही चाटे। यही हाव योगगुरू रामदेव का हुआ। अन्ना के अप्रैल वाले अन्नागिरी से परेशान बाबा कालाधन के खिलाफ जोरदार हंगामे के साथ अन्ना को डाउन दिखाना चाहते थे। पर रामलीला मैदान में राम(देव) लीला क्या हुआ यह सारा देश जानता है। अपने लालच और स्वार्थ वश अन्ना के साथ आने वालों का राज खुल गया। वाचाल रामदेव की बोलती ही बंद हो गई है। देखना है कि सरकारी मेहमान बनने की लालसा वाले अग्निवेश का क्या होता है। चाहे जो हो , मगर बंधुआ मुक्ति मोर्चा के पुरोधा अब खुद सरकारी बंधुआ होते जा रहे है।
मनमोहन पर मनमोहनी कविता
अन्ना आंदोलन के दौरान युवाओं ने कविता पैरोडी और हास्य व्यंग्य से जमकर उल्लास मनाया। अपने सरदारजी यानी पीएम मनमोहन सिंह सबों के सबसे पंसदीदा थे। मुन्नी बदनाम होने के बाद मुन्ना बदनाम हुआ की तर्ज पर लोगों ने अपने मुन्ना यानी मनमोहन जी पर कुछ इस तरह वार किया।
मुन्ना बदनाम हुआ मैडमजी आईसी(कांग्रेस आई) के लिए।
अपनी इज्जत का फलूदा बनाया मैडमजी आईसी के लिए।।
राजा ने जमकर टूजी मे इजी करप्शन किया
सुरेश शीला पर आपने एक्शन नहीं लेने दिया
सालों की इमेज का काम तमाम किया मैडमजी आईसी के लिए।।
मनमोहन पर एक और गाने का मजा ले
अली बाबा 40 चोर की बात हुई पुरानी।
नए जमाने में है अब तो नयी कहानी .।।
मॅाल मोबाइल मेट्रो की मौज है
और सबसे ईमानदार पीएम की टोली में 40 चोरों की फौज है।।
और जो अन्नागिरी से बच गए (लात जूता खाने से)
अन्ना हजारे भले ही सरकार के लिए सिरदर्द बन गए हो, मगर कुछेक लोगों के लिए तो अन्ना तारणहार बन गए। उनके मन में यह सोचकर ही दिल बैठ जाएगा कि यदि अन्ना महाराज का अनशन नहीं चल रहा होता तो इंगलैंड में गोरों के हाथों बुरी तरह शर्मनाक मात खाने के बाद अपन हिन्दुस्तान के पागल क्रिकेट प्रेमी इन क्तिकेटरों की क्या गत करते। अगर आपको कुछ याद नहीं है तो 2007 में विश्वकप के पहले ही दौर में बाहर होने के बाद तो सारे क्रिकेटरों को अपने फैन से चोर की तरह छिपछिपा कर घर पहुंचना पड़ा था। किसी के घर के बाहर होलिका दहन की गई को किसी के घर को ही फूंकने की कोशिश की गई। मगर धोनी के धुरंधरों का ये सौभाग्य ही रहा कि हारे भी इस कदर कि खुद ही शर्मसार हो गए मगर अन्ना की आंधी में ज्यादातर भारतीय युवाओं ने क्रिकेट में देश की भारी पराजय को कोई भाव ही नहीं दिया।
कामनवेल्थ के चोरों मिला जीवनदान
पानी अब इतना महंगा औक दुर्लभ होता जा रहा है कि पानी की तरह पैसा बर्बाद करने का मुहाबरा भी गलत दिखने लगा है। सरकारी पैसे को अनाप शनाप खर्चे करने वालों में दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित भी अन्ना अनशन से बच गई। एक तरफ अन्ना और दूसरी तरफ सोनिया का इलाज कराने अमरीका जाना भी शीला को लाईफ मिलने का कारण बन गया। अपन पीएम साहब तो दबंग है नहीं कि मैडम के बगैर कुछ कर सके। यानी अन्ना को सरकार चाहे जितना कोस ले मगर वाकई अन्ना कितनों के लिए धन्ना बन गए। जय हो जय हो अन्ना हजारे जी जय हो।
नवाकुंरों के जज्बे को सलाम
करीब पांच माह (एक्जाम और एडमिशन) के अंतराल के बाद वर्ष 2011-12 में मीडिया छात्रों को पढ़ाने का खाता दयालबाग एजूकेशनल इंस्टीट्यूट (डीइआई) से शुरू हुआ। दिल्ली की अपेक्षा छोटे और मीडिया के लिहाज से बेहद कम साधनों वाले शहर में रहकर मीडिया में कैरियर बनाने की तैयारी करना हमेशा कठिन होता है। पत्रकारिता के बारे में सैद्धांतिक तौर से ज्यादा नहीं जानने के बाद भी इनके उत्साह और कुछ कर गुजरने की लालसा देखकर मन संतुष्ट हुआ। चाहे अतुल से लेकर पवन बघेल, पूजा मनवानी, मोनिका ककरवानी, श्वेता सारस्वत, रेणु सिंह, अंशिका चतुर्वेदी हो या नेहा सिंह। यानी कुल आठ छात्रों के मिजाज को देखना उत्साहवर्द्धक लगा। वहीं मीडिया के प्रति लड़कियों की जीवटता उत्साह (भले ही लगन कहना अभी जल्दबाजी होगी) को देखना और भी ज्यादा अनोखा और सुखद लगा कि इस बार आठ छात्रों में छह लड़कियां है। इनके जज्बे को सलाम करता हूं। साथ ही इनके हेड ज्योति कुमार वर्मा जी और इनके तमाम साथियों से अपेक्षा करूंगा कि वे इन्हें इस तरह तराशें ताकि उत्साह ज्ञान और अनुभव से ये भावी पत्रकार खुद को निखार सके। सबों के उज्जवल और बेहतर भविष्य की कामना के साथ मीडिया या पत्रकारिता में स्वागत है।