नही भूल पाता
चाहे
संभोग हो या समाधि
साधना से सत्संग तक
प्रणय से पूजा तक
हर समय साथ साथ साथ साथ बना रहता है साथ
सच है कि नाम का जादू है, चेहरा शरीर सब रह गए पीछे
फिर भी
पता नहीं तुम क्या मानों
पर देह से भी हो रहा है लगाव
खवाब में ही सही
मिलन की चाह से उठ रही है निगाह
दूर दूर दूर बहुत दूर दूर तक है अंतहीन फासला,
फिर भी
चाहत पूरी हो सकती है
क्या तुम राजी हो (सपनों में)
बताना
माफ करना
चाह की मेरी हर निगाह की ....की कोई राह की
हम अब दूर नहीं रह सकते प्रिय
पर तुम
राजीनामा दो
तभी
महसूस करूंगा (देह) गंध में तेरी सुगंध
जो मेरे पास बिखर कर खुशबू से कर देती है तरोताजा
तरोताजा-तरोताजा रोज रोज
रोज की तरह
ख्वाब में ही सहीं देखना चाहता हूं
एक होने का सुख
क्या तुम राजी हो ?
माफ करना चाह की मेरी निगाह की।
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