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पोस्टेड ओन: 30 Jul, 2011 पॉलिटिकल एक्सप्रेस में
मध्यप्रदेश और उतरप्रदेश की सीमा से सटा हुआ एक क्षेत्र है बुंदेलखंड। यहाँ की अबादी सुबह-शाम दोनों समय कृषि-कार्यों में जी-तोड मेहनत करती है।इस बैसाख जेठ की चिलचिलाती धूप भी इनको विचलित नही कर पाती।बुंदेली जनता अपने इस मेहनत से तो खुस है,लेकिन कहीं न कहीं उन्हें इस बात का दुख है कि उनके साथ जो हो रहा है वह उचित नही है। क्योंकि इतनी मेहनत के बाद भी वहां के लोग आज भी महुआ खाकर अपना पेट भरने को विवश हैं।किसानों की हालत इतनी खराब है कि वे अपनी ही भूमि पर कृषि करने की स्थिति में नहीं हैं।एक ताजा आंकडे के अनुसार बुंदेलखंड के बाँदा,हमीरपूर,झासी,ललितपुर,महोबा,चित्रकूट व जालौन जिलों में वर्ष 2009 में 568, वर्ष 2010 में 583 व वर्ष 2011 के पाँच महीनों में 519 किसानों ने सूखे व गरीबी से आजिज आकर आत्महत्या कर ली है।कहा गया है कि ये आत्महत्याएं क्षेत्र का विकास न होने के कारण हुई हैं।आज यदि बुंदेलखंड की यह दुर्दशा है तोइसका दोषी केंन्र्द व राज्य की सरकारें हैं।योजनाओं का उचित क्रियान्वयन न होना सरकार की विफलता को उजागर करता है।सरकार दव्ारा वर्ष 2009,2010 व 2011 में बुंदेलखंड के लिए दिया गया पैकेज क्रमशः 7266 करोड रू,1200 करोड रू व 210 करोड रू था।इस प्रकार इन तीन सालों मे बुंदेलखंड को कुल राशि मिली 8676 करोड रू।इसमें से 1200 करोड रू विशेष आर्थिक सहायता थी।यदि 2009 से पहले का आकलन करें तो पायेंगें कि शायद ही कोईऐसा वर्ष रहा जब बुंदेलखंड के लिए करोडों रू का पैकेज न दिया गया हो।अब सवाल यह है कि 8676 करोड रू बुंदेलखंड के कायाकल्प के लिए पर्याप्त नहीं है। यदि प्रत्येक वर्ष करोडों ू का पैकेज दिया जाता है तो आखिर क्यों बुंदेली धरती आज भी बांझ बनी हुई है।
उतर स्पस्ट है।त्रुटि नीतियों के क्रियान्वयन में है।गलती नीतियों को क्रियान्वित करनेवलों की हैं।बुंदेलखंड के लोगों को उम्मीद थी कि शायद मनरेगा महुआ से छुटकारा दिलाएगा , लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हो रहा है।केंन्द्रीय पर्यावरण व खाद्य सुरक्षा एजेंसी दव्ारा बुंदेलखंड के 12 जिलों के 130 गावों में एक सर्वेक्षण किया गया।जिसमें यह पाया गया कि 12 महीनों में चित्रकूट में 21 दिन,बांदा में 19 दिन,महोबा में 9 दिन,हमीरपूर में 26 दिन तथा ललितपूर में मात्र 21 दिन ही जरूरतमंद लोंगों को काम मिला ।
बात केवल मनरेगा की ही क्यों।क्रषि,उधोग तथा अन्य त्क्षेत्रों में भी कमोबेश यही हालत है।आज हमलोग 21 व 22 शदी की बात करते है।चंद्रमा पर पानी के व्यवस्था की बात कर रहे हैं।जबकि यह क्षेत्र पिछले 10 सालों से पानी की कमी का मार झेल रहा है।सन् 1887 से 2009 तक कुल 17 बार बुंदेलखंड में सूखा पडा।जिसमें 2005-06 का भयावह अकाल भी शामिल है।सवाल यह है कि क्या इससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता है।यह कैसी विडम्बना है कि एक ओर जहां हरिदव्ार से दिल्ली तक गंगा के पानी को भेजने में सरकार को कोई कठिनाई नहीं हो रही है।ईरान से भारत तक पाइप लाइन दव्ारा गैंस लाने पर विचार हो रहा है।लेकिन यहीं पानी के बिना मृतप्राय बुंदेलखंड की इतनी उपेक्षा।बेहतर तो यह होता कि बिहार तथा अन्य पडोसी राज्यों के बाढ के पानी को सुनियोजित तरीके से बुंदेलखंड लाया जाता तो इस योजना का दोहरा लाभ मिलता। प्रथम तो यह कि बिहार में प्रत्येक वर्ष होनेवाली तबाही(बाढ से) रूक जाती और दिव्तीय बुंदेलखंड को पानी के लिए तरसना नहीं पडता।
बुंदेलखंड के क्षेत्रों में आज भी मानक से कम वर्षा होती है।यहाँ एक वर्ष मेंमात्र 100 घंटे ही वर्षा होती है।इन सबका दुष्परिणाम यहाँ की भूमि तथा कृषि को भुगतना पड रहा है।यही कारण है की यहा पर सिंचित भूमि की प्रतिशतता में ह्रास हो रहा है।चित्रकूट तथा ललितपूर में तो यह ह्रास 50प्रतिशत तक पहुँच गई है।छतरपूर तथा टीकमगढ में मात्र35 प्रतिशत ही सिंचित भूमि शेष बची है।यह जानकर हैरत होगी कि भारत सरकार के एक आकडें के अनुसार बुंदेलखंड में कुल बोयी हुई भूमि का मात्र 42.3 प्रतिशत हिस्से की ही सिंचाई हो पाती है।जो कि राज्य के औसत से कम है।
अत्यंत दुख की बात है कि कभी बुंदेलखंडकी 70 प्रतिशत जनसंख्या को जीवित रखने वाली कृषि आज इतनी बुढी हो गई है किआम जनता तथा किसान आत्महत्या कर रहे है।आज बुंदेलखंड में कृषि तथा सिंचाई के उन्नत साधन नहीं है तो इसका दोष शासन को जाता है।क्योंकि उतरप्रदेश के अन्य जिलों यथासीतापुर,लखीमपुर,उन्नाव आदि में सिंचाई की आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है परन्तु बुंदेलखं के साथ दोहरा व्यवहार किया जा रहा है।यदि सरकार के कृषि तथा सिंचाई संबंधी योजनाओं को बुंदेलखंड से जोड दिया जाय तो हालात सुधरते देर नहीं लगेगी।यदि बुंदेलखंड की पारंपरिक खती चंदेला,बुंदेला या पेशवा टैंक तथाहवेली पदध्ती को पुनर्जिवित कर दिया जाय तो पुनः यह क्षेत्र पूर्व की भातिं हरा-भरा दिखने लगेगा।उधोगों का दौर पुनः वापस आ जाएगा।यह सर्वविदित है कि सन् 1857 तक बुंदेलखंड में बहुत से उधोग धंधे थे। लेकिन इसके बाद की स्थिति निरंतर बिगडती चली गई और 2008 तक मात्र दो प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग यूनिटें शेष बचीं हैं।एक बीएचईएल तथा दूसरा बिरला समूह की सीमेंट प्लांट। ये दोनों समूह ऐसे है जिनसे बुंदेलवासियों को कोई विशेष लाभ नहीं मिल रहा है क्योंकि इसमें अधिकतर उच्च् शिक्षित तथा तकनीक डिग्री धारकों के लिए ही रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।बीडी उधोग ही एकमात्र ऐसा गैर कृषि उधोग है जो प्रत्यक्ष रूप से दो लाख लोगों को रोजगार देने में समर्थ है।बुंदेलखंड की आर्थिक स्थिति का अनुमान उतरप्रदेश योजना आयोग की विकास रिपोर्ट,2007 से लगाया जा सकता है जिसमें कहा गया है किइस क्षेत्र का योगदान राज्य के उधोग में 1 प्रतिशत से भी कम है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंघन के प्रथम शासनकाल में विपक्षी दलों ने एक स्वर में यह माँग की थी कि बुंदेलखंड के विकास के लिए एक स्वतंत्र निकाय केन्द्रीय बुंदेलखंड विकास प्राधकरण का गठन किया जाय लेकिन उस समय सरकार ने उस माँग कोखारिज कर दिया था।आज बुंदेलखंड के विकास के नाम पर केन्द्र व राज्य की सरकारें राजनीति कर रही है।एक जहाँउतरप्रदेश सताधारी दल बुंदेलखंड के विकास के लिए एक प्रखक राज्य के रूप में गठित करने का पक्षधर है वहीं दूसरी ओर केन्द्र सरकार वोट की कीमत पर।बेहतर यह होगा कि सरकारें वोट के स्वार्थ को भुलाकर बुंदेलखंड के विकास पर अपना ध्यान केंन्द्रित करें।सताधारी दल विकास की राजनीति करें न कि वोट की।अन्यथा यही स्थिति रही तो बुंदेलखंड की धरती बाँझ होने के साथ -साथ मानवविहीन भी हो जाएगी।
लेखक-सर्वेश कुमार
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psudharao के द्वारा
July 30, 2011
बूंद बूंद पानी के लिए बुन्देलखण्ड ही नही पूरा भारत तरसेगा. यदि इस मूल समस्या को शीघ्र ही दूर न किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब पानी सिर्फ सत्ताधारियों व धनाड्यों की जागीर बन कर रह जाएगी. नेता या सत्ताधारी कुछ नहीं कर रहे हैं यह सच है. वे स्वार्थी एवं भ्रष्टाचारी हैं यह भी सच है किन्तु क्या हम आम जनता व पढ़े लिखे लोगों का कुछ कर्तव्य नहीं है? क्या पानी के संचय व संरक्षण के बारे में हम कुछ कर रहे हैं ? नहीं न. तो चलिए आज से ही इसकी शुरुआत घर से करें आस पास व अपने जाने माने लोगो से भी पानी के सरक्षण की याचना करे. बूंद बूंद पानी बचाकर अपने आने वाली पीढी की सुरक्षा करें
आपने लोगों के बारे में इतना सोचा पढकर अच्छा लगा स्वार्थ की इस अंधी दौड़ में. कतिपय लोग ही दूसरों के बारे में सोचते है.
12.7.2011 के लेख “धरती प्यासी मानुस प्यासा पानी पानी रे ” लेख (इसी ब्लॉग में ) यदि समय मिले अवश्य पढियेगा पानी के संरक्षण तथा संचय के बारे में कुछ पॉइंट्स मिल जाएंगे जिससे पानी की सुरक्षा व बचत के प्रसार में कुछ आसानी हो जाएगी
धन्यवाद
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