अनामी शरण बबल
(दोस्तों इस बार मैं
दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे दो सुपर नेता श्री मदनलाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा
के अलावा दिल्ली के खाद्य मंत्री रहे लाल बिहारी तिवारी के साथ के अपने अनुभव लिख
रहा हूं। 1998 से भाजपा का जो सितारा पस्त हुआ वह 18 साल के बाद भी ग्रहण काल में
ही है। दिल्ली के चौथे और 40 साल के बाद 1993 में विधानसभा गठन होने के बाद पहले
मुख्यमंत्री बने मदनलाल खुराना और उसके बाद भाजपा के गंवई चेहरे को परिभाषित करने
वाले जाट नेता साहिब सिंह वर्मा आज भी खुद को बेहतर सीएम साबित किय। दिल्ली के
पचासो काम आज भले ही कांग्रेस की उपलब्धि बनी मगर उन तमाम कार्यो का शिलान्यास
1994-1998 के बीच में ही किया गया। दिल्ली के सदाबहार सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों
की कतार से इनको कभी बाहर किया नहीं जा सकता। और इसी मंत्रीमंडल में खाद्य मंत्री
रहे लाल बिहारी तिवारी से बीट पत्रकार के रूप में मेरा बहुत खारा संबंध रहा, मगर
यह कहते हुए मुझे कोई संकोच नहीं कि बाद में तिवारी जैसा सर्किय और जंग लगी
व्यवस्था को सुधारने वाला फिर कोई दूसरा खाद्य मंत्री आज तक दिल्ली को नहीं मिला।
)
1
इस तरह मैं बना उनका
चहेता
एक लंबे अर्से के
बाद कई पत्रिकाओं में काम करने के बाद 1993 दिसम्बर से मैं राष्ट्रीय सहारा के साथ
जुड़ा। दिसम्बर 1993 माह के पहले ही सप्ताह में विधानसाभा चुनाव में बहुमत से
विजयी भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना को अपने मंत्रीमंडल के
साथ शपथ लेना था। चार दशक के बाद दिल्ली सरकार के गठन को लेकर भाजपा के विधायकों
से भी ज्यादा उमंग उत्साह और उतावलापन मीडिया में था। शपथ ग्रहण समारोह में देश
विदेश की सैकड़ों मीडिया और 500 से भी ज्यादा पत्रकारों का जमाव़ड़ा लगा। सारी
मीडिया खुराना को लेकर पगलाई जा रही थी। खींचतान धक्कमपेल और आपाधापी के बीच पूरे माहौल में एक अजीब तरह की उन्मादी खुशी और
उतेजना थी। पत्रकारों के इसी मेले में मैं भी था। पगलाए से पत्रकारों की भीड़ और
मंत्रियों को देखने की ललक को देखकर मैं बाहर जाने के लिए उठकर खड़ा हो गया। मेरे
मन में यही भाव उठा कि यहां पर तो बहुत भीड़ है भाई अपनी दाल गलने वाली नहीं है।
दिल्ली के सभी 70
विधायकों की सूची मेरे पास थी। इस बार चुनाव के इकलौते निर्दलीय विधायक जितेन्द्र
कुमार उर्फ कालू भैय्या और एकदम गांव देहात के गंवई विधायकों को खोजने में लगा।
संयोग से कालू भैय्या मिल गए और जब मैने अपना परिचय दिया तो वो बेचारा मेरे सामने
दंडवत सा हो गया भईया यहां पर हमलोग को तो कोई पूछ ही नहीं है। आप पहले पत्रकार हो
जो मुझे खोजते हुए आए। मैने कहा यार दिल्ली में दो ही इकलौते हैं एक तुम और दूसरा
सीएम। पर तुम मेरे लिए खुराना से भी ज्यादा बड़े हीरो हो कि अपने बूते जीते हो।
मेरी बात सुनकर वह मेरे गले लग गया। मैने कहा कि मीडिया में मैं तुमको खुराना से
ज्यदा कवर करूंगा पर इसके लिए अपने इलाके की तमाम विसंगति पूर्ण स्टोरी बतानी
होगी, मेहनत करनी होगी। हम दोनों ने फोन
नंबरो का लेनदेन किया। कालू भैय्या ने ही आस पास के बैठे चार पांच विधायकों से
मिलवाया। सबों से नंबर लेकर मे मैने सबों को हीरो बनाने का जाल फेंका। एक तरफ
खुरान एंड़ कंपनी का समारोह पूरा हुआ तो मेरे पास भी अनाम अज्ञात करीब 13 विधायकों की जन्मकुंडली आ चुकी थी। और
मैने उसी समय तय किया कि विधानसभा के गठन से क्या दिल्ली का दुख कम होगा?
इस पर काम करना है। सभी विधानसभा क्षेत्रों की सबसे बड़ी समस्या और कठिनाईयों को
फोकस करते हुए स्पेशल स्टोरी पर काम करना है।
आमतौर पर जहां
मीडिया की भीड़ लगी रहती है तो मैं वहां से परहेज करता हूं। अमूमन लोग एबीसीडी से
...जेड तक की यात्रा करते हैं मगर मैं हमेशा
अपना
सफर एक्स वाई जेड से
शुरू करता हूं क्योंकि इधर भीड मारामारी और लोगों का ध्यान नहीं जाता। एक सप्ताह के अंदर 30 से ज्यादा विधायकों से
बात भी हो गयी और एक ही दिन में कई कई बार फोन कर करके मैने अपना नाम इनलोंगों को
रटवा दिया। और कई जगह पर पेपर में कोई
टिप्पणी या सामयिक मुद्दों पर अपने प्यारे विधायको के नाम डालकर और सुबह सुबह फोन
करके बताते हुए नए विधायकों को अपने मोहजाल में बांध लिया। दिसम्बर 1993 के अंत तक
मेरे खबरों के खजाने में खबरे ही खबरें आने लगी। और 70 नंबर के जहंगीरपुरी विधानसभा
क्षेत्र से निर्दलीय विधायक से मेरा न्यूज रेल चालू हुआ। मेरे न्यूज बैंक में
लगातर खबरें बढ़ रही थी । और मैने दिल्ली पर उल्टा पिरामीड की तरह काम आरंभ कर
दिया।
एक लंबे समय के बाद
दैनिक पेपर से जुडाव के बाद मुझे खबर लिखने में बहुत दिक्कत हो रही थी, पर खबरों
की बौछार को देखते हुए संपादक राजीव सक्सेना और चीफ रिपोर्टर डा. रवीन्द्र अग्रवाल
ने इस कमी को जल्द से जल्द दूर करने का अल्टीमेटम दिय। खैर न्यूज बैंक में इतनी तरह की बेशुमार खबरें
जमा होने लगी । उधर एक माह के अंदर मैं 25-30 विधायकों को अपना बना कर दोस्ती गांठ
ली। और एक से बढकर एक दिल्ली की नाक काटने वाली बदनाम कहानियां लिखी। जिससे मेरे
अखबार नें मुझे प्रतिष्ठा के साथ मेरी एक दिल्ली की मीडिया में पहचान दिलाई। और
मैं अपने तमम बीट पर सक्रिय रहते हुए जेड टू ए का आहिस्ता आहिस्ता काम करते हुए
अपने संपंर्क मजबूत करता रहा।
अप्रैल 1994 के मध्य
तक दफ्तर में एक दिन एकाएक मुख्यमंत्री कार्यालय से मेरे लिए फोन आया। बात करने पर
बताया कि मुख्यमंत्री खुराना मुझसे मिलना चाहते है। मैने फौरन कहा केवल चौथे ही
माह में, मैं तो इस साल के अंत तक मेल
मिलाप की उम्मीद कर रहा था। उधर से पूछा कि कब आएंगे ? मैं अगले ही दिन मिलने का समय ले लिया। सचिवालय
में उनके सहयोगियों के कमरे में जा पहुंचा। मै आ गया हूं यह बात अंदर जाकर खुराना
जी को बतायी गयी, और मुझे अंदर जाने के लिए कहा गया। मैं हॉल में ज्योंहि प्रवेश
किया तो देखा कि मुझे देखते ही खुराना जी अपनी कुर्सी से उठे और मुस्कान बिखेरते
हुए दरवाजे की ओर तेजी से लपक कर आने लगे। बीच में ही मुस्कान और थूक के भरपूर
छींटों के बीच मुझे गले से लगा लिया। उलाहना और शिकायती लहजे में कहा कि मैं रोजना
अनामी को अखबर में देख रहा हूं पर सचिवालय में कभी नहीं। मैं तुमसे मिलना चाह रहा
था। अब जाकर फोन करके ही मुझे बुलाना पड़ा।
तब मैने हंसते हुए कहा कि मेरी लिस्ट मे तो आप नंबर 70 थे, और मैं तो इस
साल के अंत तक मिलने की उम्मीद कर रहा था। और शपथ ग्रहण समरोह की अपार भीड़ के बाद
अपनी बदली हुई न्यूज रणनीति की पूरी स्टोरी खुराना जी को सुना दी। मेरी कहानी
सुनकर वे हंसते हुए लोटपोट हो गएय़ हॉल के अंदर वाले निजी कमरे में उन्होने अपने
साथ ही लंच भी किया, और अपने घर के बेडरूम का एकदम पर्सनल नंबर दिया। इस सलाह के
साथ रात 10 बजे से सुबह 10 बजे तक मैं इसी नंबर पर रहता हूं। मेरी जेड न्यूज प्लान
की तारीफ की और यह भी कहा कि तुम्हारी रिपोर्ट के बाद मैने अपने सभी 70 विधायकों
को अपने इलाके की समस्याओं संकटों और जरूरतों की सूची मांगी है। तुम्हारी रिपोर्ट
की भी एक फाईल बनवा रहा हूं। तब मैंने चहक
कर कहा तो उसकी फोटोकॉपी मुझे भी चाहिए।
इस मुलाकात के बाद
खुराना जी से अक्सर फोन पर बातें हो जाती थी।
दो तीन दफा बात हुई । कभी उनकी तरफ से भी रात में मेरे पास कई बार फोन आया
और उसी दिन की छपी किसी रपट पर उन्होने मेरी तारीफ की तो कई बार उलहना किया। मगर सरकर द्वारा आवंटित गौसदन योजना पर मेरी
धुआंधार खबरों पर पहले तो काफी आपति की और बाद में मेरी बहुत सारी खबरों पर सहमति भी
प्रकट की। और अंत में मेनका गांधी समेत दिल्ली के तमाम असरदार लोगों के गौसदन
निरस्त कर दिए गए। मुलाकात की बजाय फोन पर मेरा रिश्ता ज्यादा घनिष्ठ चलता रहा।
।
1994 के बारिश के
मौसम में ही दिल्ली की समस्त सड़कों को ठीक कराने और उद्यान विभाग के कार्यो में
वृक्षारोपण हरियाली के लिए पेड़ पौधे लगाने की पूरी जानकरी देने के लिए एक प्रेस टूर रख गया। पत्रकारों को
लेकर बस चली नहीं कि मुख्यमंत्री खुराना का रूप बदल गया। वे एक टूरिस्ट गाईड बन गए। सधे हुए तेजतर्रार
गाईड की तरह करीब चार घंटे तक दिल्ली की सैकड़ो सड़कों की पूरी लंबाई के साथ विकास
निर्माण और हरियाली का खाका रखा। कितने कितने करोड़ में सड़क और बागवानी के काम
हुए हैं इसका ब्यौरा भी दिया। लगभग सारे पत्रकारों ने गाईड की भूमिक की सराहना की।
उत्कृष्ट अगवानी मेहमानबाजी के उपरांत शाम तक हम सारे पत्रकार अपने अपने दफ्तर
पहुंचे। मैने भी तीन चार खबरों की पूरी पैकेज बना दी और मेन स्टोरी सीएम बन गाईड
को फोकस कर दिया। अगले दिन इस खबर के लिए अपने अखबार की खूब चर्चा रही ,तो रात में
फोन करके खिलखिलाते हुए श्री खुराना भी इस खबर पर बार बार मोहित होकर सराहना की।
सीएम बीट नहीं होने
के कारण मेरा रोजाना उनसे सामना नहीं होता था पर वे मेरे नाम को इस कदर रट गए थे
कि कहीं दूर से भी देखने पर भी अनामी...अनामी का जाप करने लगते। और जब भाजपा की
अंदरूनी राजनीति के वे शिकार बन कर उनको अपना पद छोड़ना पडा तो सचिवालय के उनके
निजी कक्ष में मैं भी था। मुख्यमंत्री बनने से पहले विकास मंत्री साहिब सिंह का
मुख्यमंत्री बनना लगभग तय हो गया था। वर्मा के यहां आने पर सब हंसते मुस्कुराते
रहे। और अंत में मेरा हाथ पकड़कर वर्मा को थमाते हुए श्री खुराना ने कहा
पत्रकारों में यह मेरा सबसे अच्छा और प्यारा दोस्त है। मगर लिखने
में खाल नोंच लेता है । इसका ख्याल भी रखिएगा और इससे सावधान भी रहिएगा।
विकासमंत्री वर्मा मुझे पहले से भी जानते थे श्री खुराना के सामने गले लगाते हुए
तुरंत कहा बबल तो मेरा पहले से ही प्यारा मित्र है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद
भी मैं काफी समय तक संपंर्को मे रहा। यदा कदा हाल चाल पूछ भी लेता था। मगर इधर
काफी साल हो गए जब मैं इस जिंददिल और उन्मुक्त हंसी के लिए जगत विख्यात ईमानदर मगर
अपनी ही पार्टी में या (से) उपेक्षित श्री
खुराना से फिर नहीं मिला।
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शहरी पार्टी का
देहाती चेहरा
जनाधार और लोकप्रियता के मामले में दिल्ली के
ज्यादातर शहरी नेताओं को दिल्ली के पूर्व
मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा एक झटके में परास्त कर देते थे। विधायक से मंत्री और
मुख्यमंत्री के बाद सांसद और कैबिनेट मंत्री बनने वाले बाहरी दिल्ली के मुंडका
गांव के साहिब सिंह वर्मा शहरी पार्टी के रूप में मान्य भाजपा के एक देहाती गंवई चेहरा
थे। इनके भाई और बेटे ने भी इनकी विरासत को थामा है, मगर आज भी इनरी पहचान भाई या
पिता के कारण ही है। अगले साल इनके निधन के 10 साल पूरे हो जाएंगे। मगर पार्टी को
इन जैसा खेवनहार देहाती चेहरा आज तक दूसरा नहीं मिल पाया। और भाजपा को आज भी पार्टी
में एक दो दलित और गंवई नेताओं की कमी महसूस की जा रही हैं।
दिल्ली के सीएम मदनलाल खुराना के बाद नंबर टू
वर्मा ही थे। रोजाना इनके कमरे के बाहर 400-500 लोगों का मजमा लगा रहता था।
बेरोकटोक भीतर आने जाने की इजाजत के कारण दफ्त में मेला की बजाय मेला में एक दफ्तर
सा लगता था। जनता और प्रेस के सामने भले ही मनभावन सुकोमल सह्रदय और मानवीय दिखने या
दिखाने की श्री वर्मा चेष्टा करें, मगर उन्हें अपने खिलाफ कोई खबर कभी भाता नहीं
था। जान पहचान तो सारे पत्रकारों के होते है, इसका मतलब यह नहीं कि हम पत्रकार
लिखना ही छोड़ दे।
विकास और शिक्षा
मंत्री बने थे तो अपने बच्चों के नामांकन
के लिए रोजाना इनके दफ्तर से सैकड़ों पत्र संबंधित स्कूल के प्रिंसपल के नाम लिखा जाता
था, मगर पत्र के बाद भी नामांकन कहीं नहीं होता तो लोगों की भीड़ कम होने लगी।
वर्मा की घटती लोकप्रियता और लोगों में बढता गुस्सा कुछ इसी तरह की एक खबर अखबार
में मैने बनाकर छाप दी, तो वर्मा जी सिरे से उखड़ गए। कई दिनो के बाद जब मेरा
सचिवालय जाना हुआ तो वर्मा बहुतों के बीच खबर पर गुस्सा निकाला। क्या फायदा है
तुमलोग का जब एंटी न्टूज लगाना ही है तो मेरे दफ्तर में क्यों आते हो ?
मैने तुरंत वर्मा को कहा मैं किसी वर्मा के अखबार में काम नहीं करता कि आप जो चाहो
वहीं खबर छपेगी। किसी खबर पर कभी आपने मन में मनन किया या सोचा है कि ऐसा क्यों हो
रहा है या हुआ। और सही मायने में तो नेताओं के साथ लगातार रहने पर हम पत्रकार भी
मान मर्यादा में बंध जाते हैं और चाहकर भी खबर नहीं लिख पाते या बचाकर लिखनी पड़ती
है। मेरे तर्क के बाद भी वर्मा की नाराजगी बनी रही। मैंने फिर कहा कि आपके दफ्तर के
बाहर का मेला लगभग लापता हो गया इस पर नहीं सोचते ? मगर हम पत्रकार तो
खाएंगे भी स्वाद कसैला है यह बता भी देंगे। और रही आपके दफ्तर में नहीं आने की बात
तो कौन आना चाह रहा है, मंत्री हो तो आ गए नहीं तो इस भूत बंगले में आने के लिए सबसे
फालतू हम ही थोड़े है। अपनी कुर्सी से उठकर मेरे पास आकर गले लगाते हुए बोले नाराज
हो गए क्या ?
मैने तुरंत कहा अरे मैं कोई साहिब सिंह वर्मा थोड़े
हूं जो इस उम्र में भी बच्चों की तरह बात बात पर नाराज हो जाउंगा। इससे वर्मा सहित
हॉल में बैठे करीब 30-35 लोग भी ठहका लगा कर हंसने लगे। और कमरे का पूरा तनाव
काफूर हो गया। वर्मा जी ने शिकायती लहजे में कहा यदि तुमसे दिक्कत होगी तो क्या
नहीं कह सकता। यही तो हैं कि मुझे भी जब भडास निकलनी होगी तो मुडंका( वर्माजी का
पुश्तैनी गांव) न जाकर यहीं पर तो कहूंगा
भी। इस तरह की कई झड़पें हमलोग के बीच हो चुकी थी, फिर भी हम अपनापन और उलाहनों के
बंधन में थे। कई बार तो सामने मिलने पर एकदम बच्चों की तरह स्नेह भी करते या
दिखाते और की बार तो हूं हां कहकर हमलोगों से कन्नी काट निकल जाते। सबकुछ होने के
बाद भी स्वभाव में यह असंतुलन था।
बाहरी दिल्ली के
तमाम गांव और विकास संबंधी बीट होने के नाते श्री वर्मा से लगातार मिलना और फोन पर
बातें होती रहती थी। बहुत बार तो कमेंट्स लेने के लिए भी बात करता तो बहुधा हुआ कि
मेरी खबर में कुछ नयी और जानकारी देकर खबरो को और बेहतर करवा देते। हमारा इनके साथ
इस तरह का नाता हो गया था कि एक मंत्री होने के बाद भी बहुत सारी विसंगतियों वाले
इलाके की सूचना देकर काम करने का सूत्र दे देते थे।
मुख्यमंत्री बन जाने
के बाद मेरा पहले जैसा मेल जोल नहीं रहा। फोन पर भी बातें कम हो
गयी। और इनका कोई पर्सनल नंबर मेरे पस नहीं था कि सोते हुए में भी कभी भूत की तरह
जगाकर कुछ सूचना या जानकारी ले ही लूं। इस बीच गौसदनों में अनियमितता और 20 सूत्री
कार्यक्रम के तहत दलितों के जमीन आवंटन में हेराफेरी की बहुत सारी खबरों के बाबत
वर्मा जी ने कई बार दो तीन दिन इसलिए खबर रोकने का आग्रह किया कि मैं इसकी मौजूदा
हाल देखकरही कोई टिप्पणी और जानकारी दोनों
दूंगा। हमारे बीच खबरों को लेकर इतना विश्वास जम गया था कि मैं करीब एक दर्जन
खबरें छपने से पहले इनकी नजर में लाया और लेटेस्ट अपटूडेट के बाद ही खबर को छापा।
मेरे पास करोड़ों की जमीन को अवैध कब्जें से मुक्त कराने की खबर आयी। जिसको
संबंधित विभाग नें माफियाओं के कब्जे से वापस ली थी। तब मैने वर्मा से बात की तो
वे चहक गए और विभागीय कर्मचारियों को सम्मानित करते हुए इस खबर को सलाम किया।
लोकसभा चुनाव 1996 में
भाजपा के सबसे वरिष्ठतम नेताओं मे एक कृष्ण लाल शर्मा को पार्टी ने बाहरी दिल्ली
से उम्मीदवर बनाया। कह सकते हैं कि यह भी पार्टी की एक चाल थी कि शर्मा के बहाने
मुख्यमंत्री का पोस्टमॉर्टम भी हो जाएगा।
मगर वर्मा एंड पूरी पार्टी की नियोजित रणनीति के चलते कांग्रेस के दिग्गज
नेता सज्जन कुमार को हार का सामना करना पड़ा। श्री शर्मा को विजयी बनवाने के बाद
इनका रास्ता निष्कंटक हुआ। चुनाव के दौरान करीब छह सात बार इलाके का दौरा करते हुए
कार के पीछे मेरे दोनों तरफ शर्मा एंड वर्मा होते और बीच में मैं । इस दौरान सीएम
ने मुझे एक दर्जन से भी अधिक गांवों की जानकरी दी जो बाद में मेरी अच्छी रपट वनी। कह
सकते हैं कि वर्माजी से मेरा बहुत बढ़िया तालमेल हो गया था।
श्री शर्मा जी की जीत के बाद पत्रकार पार्टी थी। ( यह वही पार्टी थी जिसमें
पंचायत निदेशक के साथ गरमागरमी हुई थी।) उस समय दिल्ली विघुत बोर्ड का निजीकरण
नहीं हुआ था। दिल्ली में उस समय आईएएस सागर दपंति की बड़ी धाक थी। दिल्ली विघुत
बोर्ड के जीएम जगदीश सागर थे और इनकी पत्नी गीता सागर भी किसी मालदार विभाग की
प्रमुख थी। पत्रकार लंच समापन के बाद दिल्ली विघुत बोर्ड के चेयरमैन के नाते
मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने हम पत्रकरों के सामने बड़ी अजीब घोषणा की। सीएम
के अनुसार आज और अभी तक दिल्ली में एक भी पेडिंग कनेक्शन नहीं है। सीएम ने विभाग
की तारीफ करते हुए कहा कि यह एक बड़ी उपलब्धि है कि दिल्ली में बिजली कनेक्शन 100
फीसदी है। और अब दिल्ली में एक भी ऐसा कंज्यूमर नही है जिसने पावर के लिए फॉर्म
डाला हो और उसका कनेक्शन बकाया है। अब मैं भी क्या करूं अपनी आदत से लाचार कि मेरी
जानकरी रहते तो मेरे सामने कोई झूठ बोलकर निकल नहीं सकता। इस घोषणा के बाद मैने
ताली बजाकर सीएम से पूछा कि यह आंकड़ा सीएम की है या सागर की है या विभाग की ?
सीएम ने मेरी तरफ ताव से देखा अब क्या दिक्कत है
? मैने कहा कि वर्मा जी आप तो जमीनी आदमी हो इन
अधिकारियों के चक्कर में रहेंगे तो सागर आपको सागर में ही डूबो देंगे। मैने कहा कि मेरा डीडीए फ्लैट 1991 का है और
उसी समय कनेक्शन के लिए पैसा भी जमा किया गया था। पांच साल हो गए आज तक तो मेरा
कनेक्शन नहीं हुआ और मेरी तरह ही केवल मयूर विहर फेज-3 इलाके में सैकड़ो फ्लैट हैं
जिनके पैसा जमा होने के बाद भी आज सुबह तक तो कनेक्शन नहीं मिला है। मेरी बात
सुनकर सीएम की आंखें चौड़ी हो गयी और बोले तो क्या अंधेरे में रहते हो?
फिर मैने हंसकर कहा कि आप मुझे बिजली चोर भी मान
सकते है। आपके विजली विभाग के कर्मचारी हर घर से 50-100 रूपये हर माह वसूलते है ।
मेरे से तो बेचारा पैसा भी यदा कदा जब मैं घर पर नहीं होता हूं तब ले जाता है। यह हाल तो केवल एक डीडीए कॉलोनी की है। वर्माजी
दिल्ली में इस तरह तो लाखों लोग होंगे जिनको कनेक्शन ही नहीं दिया जा रहा है।
वर्माजी दिल्ली आपसे ज्यादा कौन घूमा है । इन नौकरशाहों के चक्कर में रहेंगे न तो
सागर साहब आपको सागर में ले डूबेंगे। सागर एंड कंपनी की पोल जो खुल गयी तो यह समझा
जा सकता है कि मुख्यमंत्री का उग्र स्वरूप कैसा रहा होगा। एक माह के अंदर सही
रिपोर्ट की मांग की और मेरे घर पर बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए खुद आने को कहा।
मैने फौरन कहा इससे गलत संदेश जाता है पर मेरा कनेक्शन कल आप जरूर लगवा दे। अगले
दिन सुबह सुबह मेरे घर पर बिजली विभाग के दर्जनों अधिकरी से लेकर मिस्त्री तक आ
गए, और अभी दोपहर तक सही मायने में बिजली
का वैध कनेक्शन लग गया।
प्यार मुहब्बत शिकवे शिकायतों के बीच आखिरकार एक दिल 1998 में ठीक
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले बगैर किसी ठोस कारण के साहिब सिंह वर्मा को भी शहीद
कर दिया गया। और दिल्ली की नयी मुख्यमंत्री बनी भाजपा की कोकिला सुषमा स्वराज। मगर
वे नैय्या को किस तरह पार लगाती। 1998 में प्याज के नाम पर भाजपा सरकार की बलि
बेदी के 18 साल हो जाने के बाद भी फिर कभी सत्ता में नहीं पा सकी।
तुनक मिजाजी ही सही मगर हमेशा कॉमन मैन से जुड़े रहने के लिए आतुर साहिब
सिंह वर्मा जीवन भर जनता और पार्टी के लिए
भागते रहे। और इसी भागदौड़ के दौरान ही 2007
में राजस्थान से दिल्ली लौटते एक सड़क हादसे के वे शिकार बन गए
3
हमेशा रही उनको मुझसे शिकायत
1993 दिसंबर में दिल्ली सरकार के गठन के
बाद मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के मंत्रिमंडल में खाद्य और आपूर्ति मंत्री
यमुनापार के विधायक लाल बिहारी तिवारी को बनाया गया। हमारे संपादक राजीव सक्सेना
ने मुझे इसी मंत्रालय को बतौर बीट दिया । काम शुरू करने से पहले एक बात मैं सबको बताना
चाहूंगा कि कि तिवारी से हमारा संबंध चाहें जैसा भी रहा हो, मगर 1993 से लेकर आज
तक 22 साल के दौरान किसी भी खाद्य मंत्री ने खुद को तिवारी से बेहतर अभी तक साबित
नहीं किया है। हां तो मैं अपने बीट पर सक्रिय होने से पहले मैं अपने राशन डीलर की
दुकान पर गया और आस पास के 10-12 दुकानों के पते लिए। राशन डीलर को किस किस तरह की
दिक्कतों समस्याओं और कमियों का सामना करना पड़ता है। सरकार से भी इनकी कुछ मांगे
हैं क्या ? इस बाबत जानकारी ली। कुछ राशन डीलर नेता सूरजमल वर्मा और शंभूदयाल
खंडेलवाल समेत आस पास के पांच विधानसभा के राशन दफ्तरों के भी हाल चाल लिए और
दिक्कतों को लेकर पूरी जानकारी ली। इस तरह एक ही दर्जनों डीलर से यारी भी हो गयी।
यानी चार पांच दिन के भीतर उचित दर दुकान में होने वाली हर उचित अनुचित काम का
ब्यौरा मिल गय। और मंत्री से मिले बगैर ही 10-12 वैसी खबरें और कुव्यवस्था की खबरें
छापी। जिसको एक चुनौती की तरह ही मंत्री तिवारी
को भवि,य में लेना होता।
मंत्री बनने के कोई 15 दिन के बाद मैने
इनके पीआरओ रामकिशन से मिला और मंत्री जी से मिलने के लिए कोई समय निकलने की बात कही।
और जब मैं तिवारी के पास बैठा तो मेरे सवालों से ज्यादा बहुत सारी उस सड़ी गली व्यवस्था
और अनियमितता और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुधारने पर तिवारी ने बात की। मंत्री
बनने से पहले लाल बिहारी तिवारी इसी राशन विभाग में काम करते थे। मंत्री बनने पर
उस समय के खाद्य आयुक्त ने मंत्री से मिलकर स्थानांतरण कराने का निवेदन किया। और
बडप्पन दिखाते हुए मंत्री तिवारी ने सीएऐम से कहकर उनको मुक्त कर दिया। मेरी पहली
मुलाकात बहुत अच्छी रही और एक ही बैठक में इस विभाग को मैने मंत्री से ही स्कैनिंग
करवाई। मुख्य समस्याओं दिक्कतों फर्जी राशनकार्डो से लेकर बहुत सारी समस्याओं पर
श्री तिवारी बक गए। जब मैं एक घंटे के बाद उनके यहां से निकला तो एक आक्रमक
इंटरव्यू के अलावा 30-35 खबरों के सूत्र भी साथ लेकर ही निकला, जो वे खुद ही दे रहे
थे। रोजाना दो एक खबरें छपने लगी। इसके अलावा राशन डीलर नेताओं की सूचनाएं और
कमीशन बढाने को लेकर देश व्यापी आंदोलन में दिल्ली को फोकस करते हुए खबरों की झड़ी
लगी रही।
शुरूआती खबरों पर तो जोरदार ठहाके लगा लगाकर
खबरों पर खुशी जाहिर करने वाले श्री तिवारी तीन चार माह के अंदर ही बौखलाने लगे।
राशन डीलरों की धांधली पर भी खबरे दी। और सबसे अचरज की बात कहे या मुख्य धांधली कि
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदाम से निकलने वाले गेहूं और चावल राशनडीलर की
दुकान तक आते आते इस कदर खराब और मिलावटी हो जाता कि इसकी गुणवत्ता पर हमेशा खबरें
बनती रही। मंत्री महोदय भी कोई ठोस रास्ता नहीं निकल सके। राशनडीलर की दुकान तक
खाद्यान्न पहुंचाने वाली दिल्ली खाद्य आर्पूति निगम भी लगातार विवादों में रही। इस
मिलावट से हमेशा एफसीआई ने अपनी भूमिका से इंकार किया। इसीमुद्दे पर एक बड़ी खबर छपी
तो एफसीआई के दिल्ली हेड आर के सिवाल का मेरे पास फोन आया कि क्या खबर छाप दे हो
अनामी। मैने उनसे कहा पहले पेपर देखिए कुछ नही छापा है। दोपहर को अंबादीप बिल्डिंग
वाले रिपोर्टिंग दफ्तर में सिवाल धमक गए। एकएक
दप्तर में सिवाल को देखकर चौंका भी मगर रिसेप्शन पर खड़े खड़े पूरी खबर पढ़ी और
संतोष जाहिर करते हुएकबर की तारीफ के साथ मेरे चाय के ऑफर को नकारते हुए चले गए।
जाते जाते सिवाल ने कहा कि मेरे पास कई फओन आ गे तब जाकर मैने सोचा कि सीधे चला
जाए। इससे पहले सुबह सुबह मेरे घर पर
तिवारी का फोन आ गया। आपको मेरे से क्या परेशानी है अनामी। मैने कहा कि मुझे क्यों
होगी विभाग की परेशानी है तो खबर बनेगी ही। मेरी बात सुनते ही कहा और कोई पेपर तो नहीं
लिख रहा है केवल आप मेरे लिए हेडक बने हो। अरे कोई नहीं लिख रहा है तो यह मेरी
समस्या नहीं है। मंत्री जी नहीं माने नहीं नहीं मैं आज ही आपके संपादक से बात
करूंगा। मैने पलटते ही अपने संपादक के घर और दफ्तर के नंबर देते हुए कहा कि अब आप
मेरे से नहीं उनसे ही बात कर लिया करें। पता नहीं मेरे संपादक राजीव सक्सेना ने
फोन पर उनकी क्या खबर ली। मेरे दप्तर जाने पर संपादक ने मुझे बुलाया और मेरे काम
की सराहना करते हुए एकदम रहम न बरतते हुए सिलसिला जारी रखने को कहा। उधर मेरी खबरों
का क्या असर पड़ता इसके लिए उनका पीआर रामकिशन और ऑफिस हेड अनिल बैजल से रोजाना
हाल चाल मिलता रहता था।
1995 में किसी एक दिन सचिवालय में मुझे
देखते ही तिवारी जी मेरे पास आए और सबों के सामने कहा कि अनामी तुम मेरे पीछे
क्यों पड़े हो भाई। इस शिकायत पर मैने फौरन कहा आप मंत्री हो मैं तो केवल बीट देख
रहा हूं खबरें लिख रहा हूं आप तो इसी डिपार्चमेंट में बाबू रहे हैं तो हालात को
सुधारिए न। में तो एकदम सामान्य घपले घोटाले कार्डधारकों को अनाज चीनी किरोसीन तेल
ना मिलने की शिकायत पर लिख रहा हूं । इलाके के अधिकरियों से कहो न कि वे हरामखोर क्या
कर रहे है? मेरी तमाम सफाईयों पर भी उनकी शिकायत बनी रही कि तुम यार मेरे पीछे
पड़े हो। आखिरकार मैने कह ही दिया कि आप कह रहे हैं न कि मैं पीछे लगा हूं तो कल
अपकी खबर लगाउंगा कि मलाई कौन चाभ रहा है ? मंत्री एकदम खामोश हो गए क्या खबर है क्या खबर है जानने की हर संभव
कोशिश की। मैने बहुत सारे पत्रकारों के
बीच में ही कह दी कि तिवारी जी 10 दिन से खबर मेरे पास थी पर अब छपेगी। अगले ही
दिन अपने घर के बाहर करीब एक लाख रूपये का शानदार गेट लगवाने वाले इसके लिए उपकार
करने वाले डीलर और अधिकारी का नाम देकर खबर छप गयी। सुबह सुबह तिवारी जी का फोन फिर
मेरे संपादक के घर पहुंच गया और उन्होने सुबकते हुए मेरी शिकायत और ब्लैकमेल करने
का आरोप लगाया। मेरे संपादक ने न जाने तिवारी जी को कितना फटकारा और क्या क्या कहा
यह तो मैं आज तक नहीं जान पाया. मगर दफ्तर में पहुंते ही खबरें लगातार लिखने का
फरमान जारी किया। और पांच सात दिन के बाद सचिवालय में तिवारी जी से मिला तो मुझे
देखते ही तिवारी जी ने हाथ जोड़ दी। अब मैं कुछ नहीं कहूंगा जो मन में आए वो लिख
दिया करे। संपादक गाली देता है और रिपोर्टर बात मानता नहीं तो जो मन में आए लिखो
भाई। मैं इनके पास बैठ गया और पूछ आप सही सही बताइए तिवारी जी क्या मेरी खबर गलत
होती है? यह सुनते ही वे फिर भड़क गए। अरे गलत नहीं होती है इसका क्या मतलब कि रोजाना
रोजाना खबर देना तो पीछे पड़ना ही तो कहेगे। मैने कहा कि चले सीएम खुराना जी के
पास यदि वो मना कर देंगे न मेरा संपादक कुछ भी कहे मैं आपके विभाग पर नहीं
लिखूंगा।
इस बीच 15 लाख से ज्यादा गैस धारको से
किरोसीन तेल का कार्ड सरेंडर कराना और बीपीएल से उपर वाले करीब 25 लाख कार्डधारको
को केवल राशन में चीनी देने का अधिकार रखते हुए गेंहू चावल की आर्पूति पर रोक लगा
दी। 1991 की जनगणना के मुतबिक दिल्ली की आबादी केवल 93 लाख की थी, मगर दिल्ली में
1994 तक डेढ करोड़ से ज्यादा यूनिट के कार्ड थे। यानी दिल्ली की आबादी राशन कार्
के अनुसार डेढ करोड थी। एक मुहिम चलाकर श्री तिवारी ने करीब 30 लाख फर्जी यूनिटों
और राशन कार्डो को भी कैंसल कराया। और इन उपलब्धियों पर राष्ट्रीय सहारा ने ही बढ
चढ़कर छापा कि किस तरह तिवरी ने इसे संभव किया।
1996 में 10 वे लोकसभा के गठन के केवल 13
माह की भाजपा सरकार के पतन के बाद 1997 में हुए उपचुनाव 98 और 1999 में 11 वें 12
वें लोकसभा चुनाव में व लगातार जीत हासिल
कर पूर्वी दिल्ली से सांसद बने। सांसद बन जाने के उपरांत एक तरह से हम दोनों में
तलाक हो गया। हालांकि वे अब हमारे सांसद थे। एक जनप्रतिनिधि के नाते तो मेरा जन
अधिकार बढ़ गया था पर हमलोग दो एक साल नहीं मिले। मगर त्रिलोकपुरी में एक राशनडीलर
खजांची लाल गोयल की बेटी की शादी में मैं भी गया था, और संयोग से सांसद लाल बिहारी
तिवारी भी अपने लाव लश्कर के साथ पहुंचे थे। खान पान के बाद चलने से पहले मैने
सोचा कि चलो सासंद से मिलते ही चला जाए। ( बतौर संसद मैं इनसे कभी मिला नहीं था)
एक खास भीड़ से घिरे तिवारी के पास मैं ज्योंहि पहुंचा तो दुआ सलाम के बाद मेरा
हाथ पकड़कर उपर उठया और अपने साथ रहने वालो को संबोधित किया ये पत्रकार जी है और
मेरे पीछे तो नहा धोकर पड़े हुए थे। रोजाना न्यूज रोजाना न्यूज। और संपादक गाली से
बात करे बाप। मुझे लगा कि इसको सबक सीखना जरूरी है। मैने फौरन कहा कि सांसद बनने
के कई साल के बाद आपसे मिल रहा हूं। कोई गैस कोटा की मांग की। नहीं तो पीछे कहां
था तिवारी जी एक पत्रकार का जो काम है वहीं कर रहा था । आप इसको पर्सनल क्यों ले
रहे है। मगर तिवारी जी अपने खुमार में थे और मुझे लगाकि वे अपने चमच्चों के बीच
मेरा उपहास करके नंबर बढाने वाले हैं। मैने कहा तिवारी जी सही मायने में तो आपके
पीछे पड़ने का असली समय तो अब आया है क्योंकि अब आप मेरे संसद है। और चुनाव में न
जानवे कितने आश्वासन दिए थे। एक वोटर होने के नाते यदि अभी आपको कॉलर पकड़ उठा भी
लूंगा न तो पुलिस मेरे खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। यह एक सांसद का अपने
वोटरों के साथ किया गया छल माना जाएगा। मेरी आवाज तेज हो गयी थी तो मेरे कई डीलर
दोस्त भी आ गए और मामले को संभाला। इसके बाद श्री तिवारी से एक और मुलकात हुई। इस बार कोई तकरार
तो नहीं हुआ पर मेरे प्रति शिकायती भाव और लहजा बरकरार रहा। अंत में जाते समय मैने
श्री तिवारी को कहा कि आप मेरी खबरों को आज उठाकर देखेंगे न तो मेरे प्रति लट्टू
हो जाएंगे। कि मैने आपको कितना फोकस किया था। आपके बेहतरीन कार्यो को हमसे ज्यादा
कौन छापा । फिर भी तिवारी जी मेरे प्रति शिकायती लहजा ना रखे । यह मेरे को बुरा
लगता है, बाकी लिखने को तो कितनों पर लिखा मगर 8-10 साल के बाद भी आपमें नाराजगी मुपझे
ठीक नहीं लगती बल्कि कचोटती है।। इस पर वे मुस्कुराने लगे। मैने फिर कहा जानते हैं
तिवारी जी जिन जिन पर मैने सबसे ज्यादा लिख है जिनकी कलई खोलने में कहीं पीछे नहीं
रहा वे लोग ही मेरे से सबसे ज्यादा मुस्कुरा कर मिलते हैं। मैं तो एक सुयोग्य
मंत्री पर लिखा है, जिसने सड़ी गली व्यवस्था में व्यापक सुधार किया। । संसद बनने
के बाद इनकी राजनीति लगभग खत्म सी ही हो गयी है और ये भी पार्टी से या ( में ) भूल
दिए गए है।
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