अनामी शरण बबल
यह घटना या हादसा जो
भी कहें या नाम दें यह 21 साल पहले 1995
की है। एकदम सही सही माह और दिनांक तो याद नहीं हैं। मैं उन दिनों राष्ट्रीय सहारा में था। किसी
सामयिक मुद्दे पर एक लघु साक्षात्कार या
टिप्पणी के लिए मैं शाम के समय विख्यात साहित्यकार और कादिम्बनी पत्रिका के जगत
विख्यात संपादक राजेन्द्र अवस्थी जी के दफ्तर में जा पहुंचा। उनके कमरे में एक
42-43 साल की महिला पहले से ही बैठी हुई थी।
मैं अवस्थी जी से कोई 20 मिनट में काम निपटा कर जाने के लिए खड़ा हो गया। तब उन्होने
चाय का आदेश एक शर्त पर देते हुए मुझसे कहा कि आपको अभी मेरा एक काम करके ही दफ्तर
जाना होगा। मैने बड़ी खुशी के साथ जब हां कह दी तो वे मेरे साथ में बैठी हुई महिला
से मेरा परिचय कराया। ये बहुत अच्ची लेखिका के साथ साथ बहुत जिंदादिल भी है। ये
अपने भाई के साथ दिल्ली आई हैं पर इनके भाई कहीं बाहर गए हैं तो आप इनके साथ मंदिर
मार्ग के गेस्टहाउस में जाकर इनको छोड़ दीजिए। ये दिल्ली को ज्यादा नहीं जानती है।
श्रीअवस्थी जी के आदेश को टालना अब मेरे लिए मुमकिन नहीं था। तब अवस्थी जी ने
महिला से मेरे बारे मे कहा कि ये पत्रकार और साहित्य प्रेमी लेखक हैं। अपनी किताबें इनको देंगी तो ये बेबाक
समीक्ष भी अपने पेपर में छपवा देंगे। उन्होने मुस्कन फेंकते हुए किताबें फिर अगली
बार देने का वादा की। अवस्थी जी की शर्तो वाली चाय आ गयी तो हमलोग चाय के बाद
नमस्कार की और महिला लेखिका भी मेरे साथ ही कमरे से बाहर हो गयी।
याद तो मुझे लेखिका के
नाम समेत शहर और राज्य का भी है मगर नाम में क्या रखा है । हिन्दी क्षेत्र की करीब
42-43 साल की लेखिका को लेकर मैं हिन्दुस्तान टाईम्स की बिल्डिंग से बाहर निकला तो
उन्होने कस्तूरबा गांधी मार्ग और जनपथ को जोड़ने वाली लेन तक पैदल चलने के लिए कहा।
उन्होने बताया कि यहां की कुल्फी बर्फी बहुत अच्छी होती है, क्या तुमने कभी खाई है
। इस पर मैं हंस पड़ा दिल्ली में रहता तो मैं
हूं और कहां का क्या मशहूर है यह सब जानती आप है। मैं तो कभी सुना भी नहीं थ। चलो
यार आज मेरे साथ खाओ जब भी इस गली से गुजरोगे न तो तुमको मेरी याद जरूर आएगी। मैं
भी इनके कुछ खुलेपन पर थोड़ा चकित था। फिर भी मैंने मजाक में कहा कि आप तो अवस्थी
जी के दिल में रहती है उसके बाद भला हम छोटे मोटे लेखकों के लिए कोई जगह कहां है। इस
पर वे मुस्कुराती रही और उनके सौजन्य से कुल्फी का मजा लिया गया। बेशक इस गली से
हजार दफा गुजरने के बाद भी प्रेम मोटर्स की तरफ जाने वाली गली के मुहाने पर लगी
मिठाई की छोटी सी दुकान की कुल्फी से अब तक मैं अनभिज्ञ ही था।
कस्तूरबा गांधी मार्ग से ही हमलोग ऑटो से मंदिर
मार्ग पहुंचे ऑटो का किराया उन्होने दिया और हमलोग मंदिर कैंपस में बने गेस्टहाउस
में आ गए। एक कमरे का ताला खोलकर वे अंदर गयी। मैं बाहर से ही नमस्ते करके जब मैं जाने
की अनुमति मांगी तो वे चौंक सी गयी। अरे अभी कहां अभी तो कुछ पीकर जाना होगा। अभी
तो न नंबल ली न नाम जानती हूं । चाय लोगे या कुछ और...। मै उनको याद दिलाय कि चाय तो
अभी अभी साथ ही पीकर आए हैं। कुल्फी का स्वाद मुहं में है । अभी कुछ नहीं बस जाने
की इजाजत दे। लौटने के प्रति मेरे उतावलेपन से वे व्यग्र हो गयी। अरे अभी तो तुम पहले
बैठो फिर जाना तो है ही। मेरे बारे में तो कुछ जाना ही नहीं। थोड़ी बात करते हैं
तो फिर कभी दिल्ली आई तो तुमको बता कर बुला लूंगी। उन्होने अपने शहर में आने का भी
न्यौता भी इस शर्त पर दी कि मेरे घर पर ही रूकना होगा। मैने उनसे कहा कि इतना दूर
कौन जाएगा और ज्यादा घूमने में मेरा दिल नहीं लगता।
मैं कमरे में बैठा
कुछ किताबें देख रह था। तभी वे न जाने कब बाथरूम में गयी और कपड़ा चेंज कर नाईटी
में बाहर आयी। बाथरुम से बाहर आते ही बहुत गर्मी है दिल्ली की गरमी सही नहीं जाती
कहती हुई दोनों हाथ उठाकर योग मुद्रा में खुद को रिलैक्स करने लगी। मैं पीछे
मुड़कर देखा तो गजब एक तौलिय हाथ में लिए पूरे उतेजक हाव भाव के साथ मौसम को कोस
रही थी। मैने जब उनकी तरफ देखने लगा तो वे पीछे मुड़कर पानी लगे बदन पर तौलिया फेरने
लगी। अपनापन जताते हुए उन्होने बैक मुद्रा मे ही कहा यदि चाहो तो बबल तुम भी
बाथरूम में जाकर हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जाओ। मैं इस लेखिका के हाव भाव को देखते
ही मंशा भले ना समझा हो पर इतनी घनिष्ठता पर एकदम हैरान सा महसूस करने लगा था।
मैने फौरन कहा अरे नहीं नहीं हमलोग को तो दिल्ली के मौसम की आदत्त है । मैं एकदम
ठीक हूं। यह कहकर मैं फिर से बेड पर अस्त व्यस्त रखी पत्र पत्रिकों को झुककर देखने
लगा।
बिस्तर पर झुककर
बैठा मैं किसी पत्रिकाओं को देख ही रहा था कि एकाएक वे एकाएक मुझ पर जानबूझ कर
गिरने का ड्रामा किया या पैर फिसलने का बहाना गढ़ लिया पर एक बारगी पेट के बल
बिस्तर पर पूरी तरह मैं क्या गिरा कि उनका पूरा बदन ही मेरे पीठ के उपर आ पड़ा।
एकाएक इस हमले के लिए मैं कत्तई तैयार नहीं था। एक दो मिनट तो मेरे पूरे शरीर पर
ही अपने पूरे बदन का भार डालकर संभलने का अभिनय करने लगी। उनकी बांहें पीछे से ही
मेरे को पूरे बल के साथ दबोचे थी। दो चार पल में ही मैं संभल सा गया। नीचे गिरने
और अपने उपर कम से कम 70-72 किलो के भारी वजन को पीछे धकेलते हुए जिससे वे पेट के
बल बिस्तर पर उलट सी गयी। दो पल में ही मैं उनको अपने से दूर धकेलते हुए बिस्तर से
उठ फर्श कहे या जमीन पर खड़ा हो गया। वे दो चार पल तो बिस्तर पर निढाल पड़ी रही। कुछ
समय के बाद भी उठने की बजाय बिस्तर पर ही लेटी मुद्रा में ही कहा मैं अभी देखती हूं किधर चोट
लगी है तुम्हें। बारम्बार गिरने के बारे में असंतुलित होने का तर्क देती रही। उनको
उसी हाल में छोड़कर मैं कुर्सी पर पैर फैलाकर बैठ उनके खड़े होने का इंतजार करता
रहा।
मैं सिगरेट पीता तो नहीं हूं पर टेबल पर रखे
सिगरेट पैकेट को देखकर मैने एक सिगरेट सुलगा ली और बिना कोई कश लिए अपने हाथों में
जलते सिगरेट को घूमाता रहा। जब आधी से ज्यादा सिगरेट जल गयी तो फिर मैं यह कहते
हुए बाकी बचे सिगरेट को एस्ट्रे मे फेंक दिया माफ करना सिगरेट भाई कि मैं पीने के
लिए नहीं बल्कि अपने हाथ में सुलगते सिगरेटों को केवल देखने के लिए ही तेरा हवन कर
रहा था। वे खड़ी हो गयी और मेरे बदन पर हाथ फेरते हुए व्यग्रता से बोली जरा मैं
देखूं कहीं चोट तो नहीं लगी है। मैने रूखे स्वर में कहा कि बस बच गया नहीं तो घाव
हो ही जाता। मेरी बात सुनकर वे हंसने लगी।
चोट से तो घाव ठीक हो जाते है यह कहते हुए उन्होने फिर एक बार फिर मुझे
आलिंगनबद्ध् करने की असफल कोशिश की। मैने जोर से कहा आपका दिमाग खराब है क्या?
क्या कर रही हैं आप। एकदम सीधे बैठे और
कोई शरारत नहीं। आपको शर्म आनी चाहिए कि अभी मिले 10 मिनट हुए नहीं कि आप अपनी
औकात पर आ गयी।
अरे कुछ नहीं तो
अवस्थी जी का ही लिहाज रखती। यदि उन्होने कहा नहीं होता तो क्या मैं किसी भी कीमत
पर आपके साथ आ सकता था। मैं अपनी मर्यादा
के चलते किसी का भी रेप नहीं कर सकता पर मैं किसी को अपना रेप भी तो नहीं करने दे सकता । यह सुनकर वे खिलखिला पड़ी, यह रेप है।
मैने सख्त लहजे में कहा कि क्या रेप केवल आप औरतों का ही हो सकता है कि सती
सावित्री बनकर जमाने को सिर पर उठा ले । यह शारीरिक हिंसा क्या मेरे लिए उससे कम
है। यह सब चाहत मन और लगाव के बाद ही संभव होता है। जहां पर प्यार नेह का संतोष और
प्यार की गरिमा बढती है। आप तो इस उम्र में भी एकदम कुतिया की तरह मुंह मारती है।
मेरे यह कहते ही वे बौखला सी गयी। तमीज से बात करो मैं कॉलेज में रीडर हूं और तुम
बकवास किए जा रहे हो। मैं पुलिस भी बुला सकती हूं। मैने कहा तो रोका कौन है मैं तो
खुद दिल्ली का क्राईम रिपोर्टर हूं। कहिए किसको बुलाकर आपको जगत न्यूज बनवा दूं। मैने
उनसे कहा कि कल मैं अवस्थी जी को यह बात जरूर बताउंगा। बताइए क्या इरादा है पुलिस
थाना मेरे साथ चलेंगी या फिर मैं अभी थोड़ी देर तक और बैटकर आपको नॉर्मल होने का
इंतजार करूं। मेरे मन में भी भीतर से डर था कि कहीं यह लेखिका महारानी सनक गयी और किसी पुलिस वाले को बुला ली या मेरे
जाने के बाद भी बुला ली तो हंगामा ही खड़ा हो जाएगा,। मगर पत्रकार होने का एक
अतिरिक्त आत्मविश्वास हमेशा और लगभग हर मुश्किल घड़ी में संबल बन जाता है। सिर आई
बला को टाल तू की तर्ज पर मैने उनको सांत्वना दी। उन्होने अपना सूर बदलते हुए कहा
कि तू मेरा दोस्त है न ? जब कभी भी
मैं दिल्ली आई और तुमसे मिलना चाही तो तुम आओगे न ? मैने भी हां हूं
कहकर भरोसे में लिया। फिर मैने कहा कि खाली ही रखेंगी कि अब कुछ चाय आदि
मंगवाएंगी। मैने चाय पी और चाय लाने वाले छोटू का नाम पूछा और 10 रूपए टीप दे दी
ताकि वो गवाह की तरह कभी काम आ सके। फिर
मैने उनसे कहा बाहर तक चलिए ऑटो तो ले लूं। मैने ऑटो ले ली और मेरे बैठते ही
उन्होने ऑटो वाले को 50 रूपये का नोट थमा दी। मेरे तमाम विरोध के बाद भी वे बोली
कि आप मुझे छोडने आए थे तो यह मेरा दायित्व है।
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