शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

मदनलाल खुराना से अपनी याराना






इस तरह मैं बना उनका चहेता

अनामी शरण बबल


एक लंबे अर्से के बाद कई पत्रिकाओं में काम करने के बाद 1993 दिसम्बर से मैं राष्ट्रीय सहारा के साथ जुड़ा। दिसम्बर 1993 माह के पहले ही सप्ताह में विधानसाभा चुनाव में बहुमत से विजयी भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना को अपने मंत्रीमंडल के साथ शपथ लेना था। चार दशक के बाद दिल्ली सरकार के गठन को लेकर भाजपा के विधायकों से भी ज्यादा उमंग उत्साह और उतावलापन मीडिया में था। शपथ ग्रहण समारोह में देश विदेश की सैकड़ों मीडिया और 500 से भी ज्यादा पत्रकारों का जमाव़ड़ा लगा। सारी मीडिया खुराना को लेकर पगलाई जा रही थी। खींचतान धक्कमपेल और आपाधापी के बीच पूरे माहौल में एक अजीब तरह की उन्मादी खुशी और उतेजना थी। पत्रकारों के इसी मेले में मैं भी था। पगलाए से पत्रकारों की भीड़ और मंत्रियों को देखने की ललक को देखकर मैं बाहर जाने के लिए उठकर खड़ा हो गया। मेरे मन में यही भाव उठा कि यहां पर तो बहुत भीड़ है भाई है अपनी दाल गलने वाली नहीं है।
दिल्ली के सभी 70 विधायकों की सूची मेरे पास थी। इस बार चुनाव के इकलौते निर्दलीय विधायक जितेन्द्र कुमार उर्फ कालू भैय्या और एकदम गांव देहात के गंवई विधायकों को खोजने में लगा। संयोग से कालू भैय्या मिल गए और जब मैने अपना परिचय दिया तो वो बेचारा मेरे सामने दंडवत सा हो गया भईया यहां पर हमलोग को तो कोई पूछ ही नहीं है। आप पहले पत्रकार हो जो मुझे खोजते हुए आए। मैने कहा यार दिल्ली में दो ही इकलौते हैं एक तुम और दूसरा सीएम। पर तुम मेरे लिए खुराना से भी ज्यादा बड़े हीरो हो कि अपने बूते जीते हो। मेरी बात सुनकर वह मेरे गले लग गया। मैने कहा कि मीडिया में मैं तुमको खुराना से ज्यदा कवर करूंगा पर इसके लिए अपने इलाके की तमाम विसंगति पूर्ण स्टोरी बतानी होगी, मेहनत करनी होगी। हम दोनों ने फोन नंबरो का लेनदेन किया। कालू भैय्या ने ही आस पास के बैठे चार पांच विधायकों से मिलवाया। सबों से नंबर लेकर मे मैने सबों को हीरो बनाने का जाल फेंका। एक तरफ खुरान एंड़ कंपनी का समारोह पूरा हुआ तो मेरे पास भी अनाम अज्ञात करीब 13 विधायकों की जन्मकुंडली आ चुकी थी। और मैने उसी समय तय किया कि विधानसभा के गठन से क्या दिल्ली का दुख कम होगा? इस पर काम करना है। सभी विधानसभा क्षेत्रों की सबसे बड़ी समस्या और कठिनाईयों को फोकस करते हुए स्पेशल स्टोरी पर काम करना है।
आमतौर पर जहां मीडिया की भीड़ लगी रहती है तो मैं वहां से परहेज करता हूं। अमूमन लोग एबीसीडी से ...जेड तक की यात्रा करते हैं मगर मैं हमेशा अपना
सफर एक्स वाई जेड से शुरू करता हूं क्योंकि इधर भीड मारामारी और लोगों का ध्यान नहीं जाता। एक सप्ताह के अंदर 30 से ज्यादा विधायकों से बात भी हो गयी और एक ही दिन में कई कई बार फोन कर करके मैने अपना नाम इनलोंगों को रटवा दिया। और कई जगह पर पेपर में कोई टिप्पणी या सामयिक मुद्दों पर अपने प्यारे विधायको के नाम डालकर और सुबह सुबह फोन करके बताते हुए नए विधायकों को अपने मोहजाल में बांध लिया। दिसम्बर 1993 के अंत तक मेरे खबरों के खजाने में खबरे ही खबरें आने लगी। और 70 नंबर के जहंगीरपुरी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक से मेरा न्यूज रेल चालू हुआ। मेरे न्यूज बैंक में लगातर खबरें बढ़ रही थी । और मैने दिल्ली पर उल्टा पिरामीड की तरह काम आरंभ कर दिया।
एक लंबे समय के बाद दैनिक पेपर से जुडाव के बाद मुझे खबर लिखने में बहुत दिक्कत हो रही थी, पर खबरों की बौछार को देखते हुए संपादक राजीव सक्सेना और चीफ रिपोर्टर डा. रवीन्द्र अग्रवाल ने इस कमी को जल्द से जल्द दूर करने का अल्टीमेटम दिय। खैर न्यूज बैंक में इतनी तरह की बेशुमार खबरें जमा होने लगी । उधर एक माह के अंदर मैं 25-30 विधायकों को अपना बना कर दोस्ती गांठ ली। और एक से बढकर एक दिल्ली की नाक काटने वाली बदनाम कहानियां लिखी। जिससे मेरे अखबार नें मुझे प्रतिष्ठा के साथ मेरी एक दिल्ली की मीडिया में पहचान दिलाई। और मैं अपने तमम बीट पर सक्रिय रहते हुए जेड टू ए का आहिस्ता आहिस्ता काम करते हुए अपने संपंर्क मजबूत करता रहा।
अप्रैल 1994 के मध्य तक दफ्तर में एक दिन एकाएक मुख्यमंत्री कार्यालय से मेरे लिए फोन आया। बात करने पर बताया कि मुख्यमंत्री खुराना मुझसे मिलना चाहते है। मैने फौरन कहा केवल चौथे ही माह में, मैं तो इस साल के अंत तक मेल मिलाप की उम्मीद कर रहा था। उधर से पूछा कि कब आएंगे ? मैं अगले ही दिन मिलने का समय ले लिया। सचिवालय में उनके सहयोगियों के कमरे में जा पहुंचा। मै आ गया हूं यह बात अंदर जाकर खुराना जी को बतायी गयी, और मुझे अंदर जाने के लिए कहा गया। मैं हॉल में ज्योंहि प्रवेश किया तो देखा कि मुझे देखते ही खुराना जी अपनी कुर्सी से उठे और मुस्कान बिखेरते हुए दरवाजे की ओर तेजी से लपक कर आने लगे। बीच में ही मुस्कान और थूक के भरपूर छींटों के बीच मुझे गले से लगा लिया। उलाहना और शिकायती लहजे में कहा कि मैं रोजना अनामी को अखबर में देख रहा हूं पर सचिवालय में कभी नहीं। मैं तुमसे मिलना चाह रहा था। अब जाकर फोन करके ही मुझे बुलाना पड़ा। तब मैने हंसते हुए कहा कि मेरी लिस्ट मे तो आप नंबर 70 थे, और मैं तो इस साल के अंत तक मिलने की उम्मीद कर रहा था। और शपथ ग्रहण समरोह की अपार भीड़ के बाद अपनी बदली हुई न्यूज रणनीति की पूरी स्टोरी खुराना जी को सुना दी। मेरी कहानी सुनकर वे हंसते हुए लोटपोट हो गएय़ हॉल के अंदर वाले निजी कमरे में उन्होने अपने साथ ही लंच भी किया, और अपने घर के बेडरूम का एकदम पर्सनल नंबर दिया। इस सलाह के साथ रात 10 बजे से सुबह 10 बजे तक मैं इसी नंबर पर रहता हूं। मेरी जेड न्यूज प्लान की तारीफ की और यह भी कहा कि तुम्हारी रिपोर्ट के बाद मैने अपने सभी 70 विधायकों को अपने इलाके की समस्याओं संकटों और जरूरतों की सूची मांगी है। तुम्हारी रिपोर्ट की भी एक फाईल बनवा रहा हूं। तब मैंने चहक कर कहा तो उसकी फोटोकॉपी मुझे भी चाहिए।
इस मुलाकात के बाद खुराना जी से अक्सर फोन पर बातें हो जाती थी। दो तीन दफा बात हुई । कभी उनकी तरफ से भी रात में मेरे पास कई बार फोन आया और उसी दिन की छपी किसी रपट पर उन्होने मेरी तारीफ की तो कई बार उलहना किया। मगर सरकर द्वारा आवंटित गौसदन योजना पर मेरी धुआंधार खबरों पर पहले तो काफी आपति की और बाद में मेरी बहुत सारी खबरों पर सहमति भी प्रकट की। और अंत में मेनका गांधी समेत दिल्ली के तमाम असरदार लोगों के गौसदन निरस्त कर दिए गए। मुलाकात की बजाय फोन पर मेरा रिश्ता ज्यादा घनिष्ठ चलता रहा। ।
1994 के बारिश के मौसम में ही दिल्ली की समस्त सड़कों को ठीक कराने और उद्यान विभाग के कार्यो में वृक्षारोपण हरियाली के लिए पेड़ पौधे लगाने की पूरी जानकरी देने के लिए एक प्रेस टूर रख गया। पत्रकारों को लेकर बस चली नहीं कि मुख्यमंत्री खुराना का रूप बदल गया। वे एक टूरिस्ट गाईड बन गए। सधे हुए तेजतर्रार गाईड की तरह करीब चार घंटे तक दिल्ली की सैकड़ो सड़कों की पूरी लंबाई के साथ विकास निर्माण और हरियाली का खाका रखा। कितने कितने करोड़ में सड़क और बागवानी के काम हुए हैं इसका ब्यौरा भी दिया। लगभग सारे पत्रकारों ने गाईड की भूमिक की सराहना की। उत्कृष्ट अगवानी मेहमानबाजी के उपरांत शाम तक हम सारे पत्रकार अपने अपने दफ्तर पहुंचे। मैने भी तीन चार खबरों की पूरी पैकेज बना दी और मेन स्टोरी सीएम बन गाईड को फोकस कर दिया। अगले दिन इस खबर के लिए अपने अखबार की खूब चर्चा रही ,तो रात में फोन करके खिलखिलाते हुए श्री खुराना भी इस खबर पर बार बार मोहित होकर सराहना की।
सीएम बीट नहीं होने के कारण मेरा रोजाना उनसे सामना नहीं होता था पर वे मेरे नाम को इस कदर रट गए थे कि कहीं दूर से भी देखने पर भी अनामी...अनामी का जाप करने लगते। और जब भाजपा की अंदरूनी राजनीति के वे शिकार बन कर उनको अपना पद छोड़ना पडा तो सचिवालय के उनके निजी कक्ष में मैं भी था। मुख्यमंत्री बनने से पहले विकास मंत्री साहिब सिंह का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय हो गया था। वर्मा के यहां आने पर सब हंसते मुस्कुराते रहे। और अंत में मेरा हाथ पकड़कर वर्मा को थमाते हुए श्री खुराना ने कहा पत्रकारों में यह मेरा सबसे अच्छा और प्यारा दोस्त है। मगर लिखने में खाल नोंच लेता है । इसका ख्याल भी रखिएगा और इससे सावधान भी रहिएगा। विकासमंत्री वर्मा मुझे पहले से भी जानते थे श्री खुराना के सामने गले लगाते हुए तुरंत कहा बबल तो मेरा पहले से ही प्यारा मित्र है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी मैं काफी समय तक संपंर्को मे रहा। यदा कदा हाल चाल पूछ भी लेता था। मगर इधर काफी साल हो गए जब मैं इस जिंददिल और उन्मुक्त हंसी के लिए जगत विख्यात ईमानदर मगर अपनी ही पार्टी में या (से) उपेक्षित श्री खुराना से फिर नहीं मिला।

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