सरकारी नहीं, ‘असर-कारी’ होंगे सीएम राइज स्कूल/ मनोज कुमार
राज्य के आखिरी छोर पर बसे किसी गांव के बच्चे के लिए किसी महंगे प्रायवेट स्कूल में पढऩे की लालसा एक अधूरे सपने की तरह है. दिल्ली दूर है कि तर्ज पर वह अपनी शिक्षा उस खंडहरनुमा भवन में पूरा करने के लिए मजबूर था जिसे सरकारी स्कूल कह कर बुलाया जाता था. बच्चों के इन सपनों की बुनियाद पर प्रायवेट स्कूलों का मकडज़ाल बुना गया और सुनियोजित ढंग से सरकारी स्कूलों के खिलाफ माहौल बनाया गया. शिक्षा की गुणवत्ता को ताक पर रखकर भौतिक सुविधाओं के मोहपाश में बांध कर ऊंची बड़ी इमारतों को पब्लिक स्कूल कहा गया. सरकारें भी आती-जाती रही लेकिन सरकारी स्कूल उनकी प्राथमिकता में नहीं रहा. परिवर्तन के इस दौर में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने राज्य में ऐसे स्कूलों की कल्पना की जो प्रायवेट पब्लिक स्कूलों से कमतर ना हों. मुख्यमंत्री चौहान की इस सोच में प्रायवेट पब्लिक स्कूलों से अलग अपने बच्चों के सपनों को जमीन पर उतारने के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है. इसी सोच और भरोसे की बांहें थामे मध्यप्रदेश के सुदूर गांवों से लेकर जनपदीय क्षेत्र में ‘सीएम राइज स्कूल’ की कल्पना साकार होने जा रही है. अनादिकाल से गुरुकुल भारतीय शिक्षा का आधार रहा है लेकिन समय के साथ परिवर्तन भी प्रकृति का नियम है. इन दिनों शिक्षा की गुणवत्ता पर चिंता करते हुए गुरुकुल शिक्षा पद्धति का हवाला दिया जाता है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में गुरुकुल नए संदर्भ और नयी दृष्टि के साथ आकार ले रहा है. सरकारी शब्द के साथ ही हमारी सोच बदल जाती है और हम निजी व्यवस्था पर भरोसा करते हैं. हमें लगता है कि सरकारी कभी असर-कारी नहीं होता है. इस धारणा को तोड़ते हुए मध्यप्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता के साथ नवाचार करने के लिए ‘सीएम राइज स्कूल’ सरकारी से ‘असरकारी’ होने की कल्पना के जल्द ही वास्तविकता की जमीन पर खड़ा होगा.
वर्तमान में राज्य के स्कूलों पर नजर डालें तो एक बात स्पष्ट होती है कि पूर्ववर्ती सरकारों ने असंतोष को दूर करने के लिए स्कूलों की भीड़ लगा दी. किसी स्कूल में दो बच्चे तो किसी स्कूल में पांच और कहीं-कहीं तो महीनों से ताला डला है. कागज पर स्कूल चल रहे हैं लेकिन हकीकत में इन स्कूलों पर केवल बजट खर्च हो रहा है. ऐसे में एक बड़ी सोच के साथ शिवराजसिंह सरकार ने एक सर्वे करा कर यह तय किया कि फिलहाल एक लाख से ऊपर ऐसे स्कूलों को एकजाई कर ‘सीएम राइज स्कूल’ शुरू किया जाए. योजना के मुताबिक अभी 9200 ‘सीएम राइज स्कूल’ शुरू होंगे. 15 से 20 किलोमीटर की परिधि में संचालित होने वाले इन स्कूलों में शिक्षा का माध्यम हिन्दी और अंग्रेजी दोनों होगा. आवागमन की सुविधा के लिए सरकार बस और वैन की सुविधा भी दे रही है. बच्चों, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को अकल्पनीय सुविधायें इस स्कूल में होगी. मसलन स्वीमिंग पूल, बैंकिंग काउंटर, डिजिटल स्टूडियो, कैफेटेरिया, जिम, थिंकिंग एरिया होगी जो अभी तक प्रायवेट पब्लिक स्कूल में भी ठीक से नहीं है. प्री-नर्सरी से हायर सेकंडरी की कक्षा वाले ‘सीएम राइज स्कूल’ आने वाले 2023 तक पूरे राज्य में शुरू हो चुके होंगे.
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के बच्चे पढ़ाई के मामले में सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के बच्चों से मुकाबला कर सकें, इसलिए सरकार प्रत्येक स्कूल पर 20 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करेगी. योजना के अनुरूप स्कूल चार स्तर (संकुल से नीचे, संकुल, ब्लॉक और जिला) पर तैयार होंगे। इन स्कूलों में बच्चों को ड्रेस कोड भी निजी स्कूलों जैसा रखने की योजना है.मध्यप्रदेश में अक्टूबर से अस्तित्व में आ रहे सीएम राइज स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षकों को लिखित और मौखिक परीक्षा देनी होगी। इसमें पढ़ाने के प्रति उनकी रुचि, पढ़ाने का तरीका और विषय पर पकड़ देखी जाएगी। वर्तमान में सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षकों में से ही सीएम राइज स्कूलों के लिए शिक्षकों का चयन होगा, पर उन्हें लंबी चयन परीक्षा से गुजरना पड़ेगा. लिखित और मौखिक परीक्षा के अलावा जिस कक्षा के लिए उनका चयन होना है, उसमें पढ़ाकर भी दिखाना होगा ताकिसुनिश्चित किया जा सके कि योग्य शिक्षक का चयन हुआ है. उन्हें विधिवत नियुक्ति दी जाएगी. इन स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षकों को परीक्षा देनी होगी और उन्हें नियमित शिक्षकों की तुलना में ज्यादा वेतन दिया जाएगा. शिक्षकों को स्कूल परिसर में ही मकान भी मिलेगा, ताकि उनके अप-डाउन में उलझने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो. सीएम राइज योजना के लिए चयनित स्कूलों में अक्टूबर से पढ़ाई का तरीका बदल जाएगा। जैसे ही ये स्कूल खुलेंगे, सरकारी स्कूलों की परंपरागत पढ़ाई से इतर नए तरीके से पढ़ाई कराई जाएगी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें