बुधवार, 8 सितंबर 2021

प्रेम*

 एक बार एक पुत्र अपने पिता से रूठ कर घर छोड़ कर दूर चला गया और फिर इधर उधर यूँही भटकता रहा। दिन बीते, महीने बीते और साल बीत गए | 

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एक दिन वह बीमार पड़ गया | *अपनी झोपडी में अकेले पड़े उसे अपने पिता के प्रेम की याद आई कि कैसे उसके पिता उसके बीमार होने पर उसकी सेवा किया करते थे |* उसे बीमारी में इतना प्रेम मिलता था कि वो स्वयं ही शीघ्र अति शीघ्र ठीक हो जाता था | उसे फिर एहसास हुआ कि उसने घर छोड़ कर बहुत बड़ी गलती की है, वो रात के अँधेरे में ही घर की और हो लिया।

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जब घर के नजदीक गया तो उसने देखा आधी रात के बाद भी दरवाज़ा खुला हुआ है | अनहोनी के डर से वो तुरंत भाग कर अंदर गया तो उसने पाया की आंगन में उसके पिता लेटे हुए हैं | उसे देखते ही उन्होंने उसका बांहे फैला कर स्वागत किया | पुत्र की आँखों में आंसू आ गए | 

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उसने पिता से पूछा "ये घर का दरवाज़ा खुला है, क्या आपको आभास था कि मैं आऊंगा?" पिता ने उत्तर दिया *"अरे पगले ये दरवाजा उस दिन से बंद ही नहीं हुआ जिस दिन से तू गया है, मैं सोचता था कि पता नहीं तू कब आ जाये और कंही ऐसा न हो कि दरवाज़ा बंद देख कर तू वापिस लौट जाये |"*

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ठीक यही स्थिति उस परमपिता परमात्मा की है | उसने भी प्रेमवश अपने भक्तो के लिए द्वार खुले रख छोड़े हैं कि पता नहीं कब भटकी हुई कोई संतान उसकी और लौट आए।i

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हमेंभी आवश्यकता है सिर्फ इतनी कि उसके प्रेम को समझे और उसकी और बढ़ चलें।



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