अनामी शरण बबल
प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रीमंडल विस्तार को लेकर राजद मुखिया और पूर्व रेल मंत्री लालू यादव को अपनी बेकारी के दिन खत्म होने के आसार बढञ गए थे। पटना से दिल्ली कूच कपरे लालू जोर आजमाईश में लग गए , ताकि किसी भी तरह बेकारी का दंश खत्म हो। सोनिया के कभी खासमखास रहे लालू ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी तक से मुलाकात करके अपनी संभावनाओं को हवा दिया।मीडिया में इसका कयास लगना भी चालू हो गया कि ममका दीदी के कोलकाता चले जाने के बाद लालू का रास्ता भी साफ हो गया है, मगर सोनिया द्वारा लालू की बजाय पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को मंत्री बनाने के प्रस्ताव को ठुकराते हुए लालू ने रघुवंश का भी पता साफ कर दिया। लालू ने रघुवंश को मलाई खाने के अपनी कुर्बानी देने से इंकार कर दिया।
रघुवंश सिंह के भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जीने रेल मंत्रालय पर से अपना कब्जा छोडना नहीं चाहती थी। हालांकि लालू ने रेल को लेकर अपनी जिदको छोड़ दी थी। वे मंत्रालय में आने के लिए किसी भी मंत्रालय को लेकर राजी हो गए थे.बताया जा रहा है कि सोनिया मैडम भी कभी सबसे भरोसेमंद रहे लालू को लाने के लिए राजी हो गई थी, मगर मैड़म की किचेन कैबिनेट ने लालू की सब्र की परीक्षा लेने के वास्ते मैड़म को राजद कोटे से केवल रघुवंश कोशरण शामिल करने का प्रस्ताव रखने का आग्रह किया। सूत्रों के अनुसार लालू की निष्ठा का यह केवल परीक्षा थी। अगर लालू रघुवंश के लिए भी तैयार हो जाते तो ठीक मंत्रीमंडल विस्तार से ठीक पहले फिर लालू को भी शामिल कर लिया जाता।
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार कांग्रेस सुप्रीमों के इस प्रस्ताव पर लालू करीब करीब भिफर पड़े, और इसे अपनी बेइज्जती मानते हुए किसी भी तरह रघुवंश के लिए राजी नहीं हुए। इस तरह अपनी तमाम संभावनाओं को खारिज करते हुए लालू यादव ने इस बार मंत्रीमंडल में आने का एक सुनहरा मौका अपने स्वार्थ के कारण गंवा दिया। उल्लेखनीय है कि 2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लालू, मुलायम और पासवान की तिकड़ी के के अलग होने यूपीए को करारा झटका लगा था। बाद में बिहार विधानसभा चुनाव में भी अलग सूर होने का खामियाजा दोनों को भुगतना पड़ा था। इन तमाम कड़वाहटों के बावजूद सोनिया लालू को लेकर भावुक हो गई थी, मगर एंटी लालू लाबी की नेक सलाह से एक ही साथ सारा खेल खत्म हो गया, और लालू का खेल फिलहाल तो खत्म सा ही हो गया है।
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