मुलायम की सिफारिश पर रामविलास पर सोनिया मेहरबान
अनामी शरण बबल
नयी दिल्ली। उतर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सुपुत्र और इंडियन लोकदल के मुखिया अजीत सिंह के साथ ही दलित बिहारी नेता रामविलास पासवान की किस्मत की लाटरी खुलने जा रही है। यूपी में विधानसभा की चुनावी लहर तेज होने के साथ ही मायावती के काट के लिए कांग्रेसी पंडितों ने रामविलास पासवान और अजीत सिंह पर डोरे डालना चालू कर दिया था। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार जन लोकपाल विधेयक और माया के दलित काट के लिए रामविलास को आगे किया जा रहा है। जाट मतदाताओं को काबू में रखने और प्रस्तावित हरित प्रदेश के गठन पर अजीत के साथ सत्ता सुख के लिए भी कांग्रेस और अजीत की दोस्ती का यूपी चुनाव पर खासा असर पडेगा। यूपी में कांग्रेस के खोए जनाधार की वापसी के लिए कांग्रेसी युवराज बेकरार है। पार्टी की तरफ से राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए यूपी में बेहतर परिणाम की आस है.
जन लोकपाल में दलित आरक्षण और प्रतिनिधित्व का मामला उठाकर रामविलास अभी से अन्ना हजारे की हवा निकालने में जुट गए है। लोक जनशक्ति पार्टी की तरफ से 6 दिसंबर को एक बड़ी दलित रैली की जा रही है। लोजपा सहयोगी दलित सेना की बजाय इसे लोजपा द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इस रैली के बहाने एक ही साथ रामविलास अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढाहे जाने के खिलाफ भाजपा की हवा निकालने और दलित कार्ड को फिर से लहराते हुए माया वती और जनलोकपाल बिल में दलितों की उपेक्षा के मुद्दे का गरमाना चाह रहे है। पिछले ढाई साल से गुमनामी और पार्टी के खराब प्रदर्शन से बेहाल रामविलास को कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी के पड़ोसी होने का फायदा आखिरकार मिल ही गया।
गौरतलब हो कि 10 जनपथ सोनिया गांधी और 12 जनपथ रामविलास पासवान का सरकारी आवास है।दोनों बंगले को अलग करने वाली एक ही दीवार है। बिहार में लालू प्रसाद यादव और यूपी में मुलायम सिंह के दलित कब्जे पर सेंध लगाने के ले ही कांग्रेस ने इस बार रामविलास को अपनाया है। देश के कई राज्यों में होने वाले चुनाव में भी रामविलास को दलित फेस की तरह सामने रशा जा सकता है। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष
मीरा कुमार इसे ज्यादा पसंद नहीं कर रही है, मगर पद की गरिमा के चलते वे चुनाव में पार्टी प्रचार के लिए उपलब्ध नहीं रह सकती। खूब बोलने के लिए मशहूर वाचाल रामविलास इस दौरान कांग्रेस के लिए दलित मुखौटा बनकर वोट बटोरन् में शायद कामयाब रहे।
उल्लेखनीय है कि यदि कांग्रेस की उम्मीदों पर यदि रामविलास खरा साबित हे तो उन्हें सोनिया के सबसे विश्वस्त सलाहकारों की मंड़लीं में जगह मिल जाएगी। संभावना है कि लालू जैसा संरक्षक बनने का भी सपना रामविलास का पूरा हो जाए। लालू और सोनिया के बीच गजब के तालमेल से सोनिया के ज्यादातर निकटस्थ भी उपेक्षित से हो गए थे, वही लालू पर सोनिया का पूरा भरोसा जम गया था, मगर लालू मुलायम और पासवान की दिलत यादव और पिछड़ों के महागठबंधन के साथ ही सोनिया दरबार से लालू के बाहर निकलने से सोनिया एकदम हैरान रह गयी। अब सोनिया को लालू पर भरोसा नहीं हो रहा है।
नए सिपहसालार के रूप में इस बार कांग्रेस रामविलास को गोद ले रही है जो लालू से कम सख्त होने के बावजूद कई राज्यों में दलित कार्ड बनकर ज्यादा फायदेमंद हो सकते है। कांग्रेस और रामविलास के तालमेस के साथ ही राजनीति के अमर अकबर और एंथोनी के रूप में उभरे लालू मुलायम और रामविलास पासवान की जोड़ी के अंत का भी समय आ गया है।वहीं विरान से पड़े रामविलास की कोठी 12 पर फिर से रौनक बढ़ गयी है। हालांकि कार्यकर्त्ताओं की इस भीड़ को लोजपा की तरफ से राली की तैयारी का नाम दिया जा रहा है। इस रैली के पीछे पूरी तरह कांग्रेस खड़ी है। इसकी सफलता का पूरा फायदा दो कांग्रेस के मिलेगी। एक ही तीर से बीजेपी और मायावती को आहत करने के नाम पर कांग्रेस लोजपा की इस रैली को कामयाब बनाने में लगी है।
अजीत सिंह की पूरी टोली यूपी चुनाव में माया और बीजेपी की काट के लिए दम लगा रही है। अजीत की सफलता पर ही बीजेपी और माया को सत्ता से बेदखल किया जा सकता है। भीतरी सूत्रों को माने तो रामविलास पर कांग्रेस की यह दरियादिल्ली मुलायम की सलाह पर ही मुमकिन हो पाया है। यूपी को बाहर से साथ दे रहे मुलायम ने ही देश भर के दलितों को अपनी झोली में रखने के लिए रामविलास को गोद लेने की सलाह दी थी। कांग्रेस के पास एक दलित चेहरे की कमी थी जिसे वो रामविलास के जरिए पूरा करेगी। एकतरह से तय सा है कि बीजेपी और बसपा से टक्कर लेने के लिए कांग्रेस, सपा इनेलो और लोजपा एक साथ ना होकर भी एकसाथ एक ही भावी रणनीति के तहत चुनावी मैदान में है।
मनमोहन सरकार के कैबिनेट में जल्द ही इन दोनों को लाने की औपचारिकताएं पूरी होने की संभावना है।अब सबों को यह देखना दिलचस्प होगा कि ढाई साल से रामविलास के साथ ही बेकारी झेल रहे लालू प्रसाद यादव का क्या होगा। हालांकि पार्टी ग्रामीण विकास मंत्रालय के ले रघुवंश प्रसाद सिंह को अभी भी पसंद कर रही है। सोनिया को लगता है कि मल्टीटैलेंट जयराम रमेश का इससे बेहतर यूज मुमकिन है, मगर देखना है कि हाईकमान क्या लालू को लेकर उदार होती है।मगर ताजे हालात में फिलहाल लालू कांग्रेस के लिए उपयोगी नहीं दिख रहे है, और खासकर सोनिया के सिपहसालारों के साथ साथ मुलायम भी अपने यादव बंधु लालू को सत्तानशीन होते नहीं देखना चाह रहे है। यानी मुलायम और रामविलास तो एक तरह से शोले के जय वीरू बनकर गब्बर सिंह रूपी मायावती को मारने की मुहिम मे जुटने जा रहे है। इनके साथ जाट रे जाट तेरे सिर पर खाट की तर्ज पर अजीत का हमसफर होना भी सपा कांग्रेस और इनेलो के पक्ष को कद्दावर बना सकता है। यानी तीनों के हित में रामविलास को लेकर चलना हितकर दिख रहा है। हालांकि रामविलास पासवान मीडिया के सामने कुछ भी बोलने से परहेज कर रहे है, मगर चेहरे की चमक और उस पर खिलता आत्मविश्वास .ह साफ कर रहा है कि खिचड़ी पक गई है। यानी दलित नेता रामविलास पासवान एक बार फिर से नए संग्राम के लिए खुद को आगाह करते हे तैयार कर रहे है।
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