वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र यादव ने कहा है कि “प्रवासी” लेखक तेजेंन्द्र शर्मा की कहानियां कई बारीक स्तरों पर पहचान की खोज की कहानियां हैं और साथ ही ये पहचान के स्थानांतरण की बात भी करती हैं। तेजेन्द्र की कहानियां सधी और तराशी हुई हैं। श्री यादव ने ये बातें सामयिक प्रकाशन और समाज संस्था के संयुक्त आयोजन में कहीं जहां तेजेंद्र शर्मा के कहानी संग्रह कब्र का मुनाफा के दूसरे संस्करण और विशेषांक रचना समय का लोकार्पण किया गया ।
कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा द्वारा जब खुद को प्रवासी लेखक कहे और माने जाने पर असहजता जताई तो श्री यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि किसी लेखक को प्रवासी इसलिए नहीं कहा जाता कि उसे अपमानित करना है, या अलग बिरादरी का दिखाना है बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हिंदी कहानी पचासों टुकड़ों में बंटी हुई है। मिसाल के तौर पर किसी ने पहाड़ी कहानी का झंडा उठाया है और या किसी कहानी को आंचलिक खांचे में रख दिया जाता है। दरअसल, ऐसा विभाजन करने के लिए कहा जाता है। यह विभाजन इसलिए किया जाता है ताकि कहानी को संपूर्णता में समझा-देखा जा सके। अपनी बात में श्री यादव ने तेजेंन्द्र शर्मा से ही पूछा कि अगर प्रवासी न कहा जाए तो आप ही बताइए कि आपको क्या कहा जाए।
इस मौके पर तेजेन्द्र शर्मा ने कहा कि मैं प्रवासी हुआ तो मेरी कहानियां और साहित्य भी प्रवासी हो गया। उन्होंने सवाल किया कि लेखक प्रवासी हो सकता है पर उसका साहित्य कैसे हो सकता है ? श्री शर्मी ने प्रवासी लेखकों से कहा कि आप लिखिए और जरूर लिखिए मगर पढ़िए जरूर। एक कहानी लिखने से पहले पंद्रह कहानियां जरूर पढ़ें। उन्होंने आह्वान किया कि हमें नए मुहावरे गढ़ने होंगे। इस अवसर पर भारत भारद्वाज, सुशील सिद्धार्थ, विजय शर्मा और साधना अग्रवाल ने भी तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों और उनके लेखन पर अपनी बातें रखीं। वक्ताओं ने उनकी कहानियां को मार्मिक, पास-परिवेश की घटनाओं से भरा-पूरा और विविधतापूर्ण बताया। वक्ताओं के मुताबिक शर्मा की कहानियां अतीत (भारत) और वर्तमान (लंदन) के सामाजिक हालात में गुथी हुई हैं । कार्यक्रम में तेजेन्द्र शर्मा के अध्यापक और मित्रों के अलावा कथा यूके सम्मान से नवाजे गए विकास कुमार झा और वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत भी मौजूद थे।
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