गुरुवार, 5 अगस्त 2021

अनामी शरण बबल / ग्राहक बनकर कमरे में बैठा रहा

 जब ग्राहक बनकर कमरे में बैठा रहा / अनामी शरण बबल




 यह अपने बिंदासपन और एक पत्रकार होने के कारण ही मैंने नगर सुदंरियों के हाव भाव और जीवन को जानने की ललक की आपबीती लिखी। अभी तक छह किस्तों में अपने मेलजोल की लीला को मस्त तबीयत के साथ बखान भी किया । यदि मैं पत्रकार नहीं होता तो निसंदेह एक सामन्य नागरिक की तरह ही मैं भी अपनी इमेज और इज्जत (?) बचाने की जुगत में ही 24 घंटे लगा रहता। यदि मैं इन सुदंरियों और कोठे का दीवाना भी रहा होता तो भी अपनी इस बहादुरी पर पूरी बेशर्मी से ही पर्दा डालकर शराफत का नकाब पहने रहता। मगर किसी भी अपने सच को लंबे समय तक छिपाना मेरे लिए असंभव है। यह अलग बात हैं कि मेरे भीतर मेरे बहुत सारे दोस्तों के जीवन का काला सच छिपा है। मेरे उपर भरोसा करने वाले इन तमाम लोगों या परिचितों का मैं शुक्रगुजार हूं कि बातूनी स्वभाव के बाद भी मेरे उपर यकीन किय। और मैं भी जानता हूं कि इनका सच भी मेरे शव के साथ ही लोप हो जाएगा। अपने इन मित्रों ( जिनमें कई अब कहां हैं यह भी नहीं जानता) मेरे दो टूक बोल देने या साफगोई के कारण ही कोई महिला मित्र मेरे को नसीब नहीं हुई। और जो मेरी जीवनसाथी है वो भी अक्सर मेरी इसी साफगोई से ही तंग परेशान रहती है।
यहां पर मैं चाहता तो सुदंरियों की एक और किस्त बढा सकता था जिसमें दिल्ली के उन इलाकों की खबर ली जाती, जिसमें लड़किया औरतें ही खुलेआम सड़कों पर यारों की तलाश करती है। मगर इन इलाकों में मैं पिछले काफी समय से गुजरा नहीं हूं लिहाजा जमाना बदलने के साथ साथ और क्या क्या नफासत और ट्रेंड बदला या जुड़ा है इसकी अप टू ड़ेट रपट नहीं दी जा सकती थी। लिहाजा इसे कभी श्रृंखला 8 के लिए रख छोड़ते है। आज श्रृंखला सात में मैं खुद को ही नंगा कर रहा हूं। दूसरों को तो नंगा या बेनकाब करना तो सरल होता हैं मगर खुद को बेनकाब करना आसान नहीं होता। वेश्याओं के बारे में जब मैने जमकर रसीली बातें की हैं तो जरा अपना भी तो रस निकले। इस खबर कहें या रपट कहें या जो नाम दें जिसको मैं आज लिख रह हूं तो इसी के साथ मेरे मां पापा मेरी पत्नी बेटी सहित मेरे सभी छोटे भाईयों और इनकी पत्नी सहित बच्चों को भी पता चलेगा कि बड़े पापा क्या वाकई आदर इज्जत और सम्मान के लायक है ?  मेरे परिवार के सभी मेरे बड़े पापा चाचा मामा मामी  मेरे बड़े भैय्या भाभी और बच्चों समेत मेरी सास मां सहित मेरे भरे पूरे परिवार में भी मेरे  इस नंगई  का पर्दाफाश होगा कि पत्रकारिता का यह कौन सा चेहरा है ?अपने पाठकों सहित सभी चाहने वालों से यह उम्मीद करता हूं कि वे अपनी नाराजगी ही सही मगर अपने आक्रोश को जरूर जाहिर करे ताकि अगली बार इसी तरह की कोई रिपोर्ट करने के खतरे को भांपकर मैं ठहर जाउं। खुद को रोक लूं या अपने उपर काबू कर सकू कि हर हिम्मत सामाजिक तौर पर सही नही  होता। मैं अपने समस्त परिचितों से क्षमा मांगते हुए श्रृंखला सात को प्रस्तुत कर रहा हूं। आप चाहें तो कोई टिप्पणी नहीं भी कर सकते हैं क्योंकि कोई भी बहादुरी या सूरमा बनने के लिए जब किसी की सहमति अनुमति नहीं ली हैं तो फिर कमेंट्स के लिए प्रार्थना क्यों  ? 

यह घटना 2003 की है। वेश्याओं पर इतनी और बहुत सारे कोण से खबर करने और उनके दुख सुख नियति पीड़ा और दुर्भाग्य को जानने के बाद भी मुझे लगा कि अभी भी इन पर एक कोण से रपट नहीं किया जा सका है, और इसके बगैर इन लिखी गयी किसी भी बात का शब्दार्थ नहीं है। तभी मुझे लगा कि एक ग्राहक बनकर अकेले में उसके हाव भाव लीला को जाने बिना तमाम किस्तें बेमनी और केवल शब्दों की रासलीला में अपनी चमक दमक दिखाने से ज्यादा कुछ नहीं है। सूरमा बनकर तो बहुतों से बात की और रसीली नशीली बातें करके तो  मैं इन कोठेवालियों को भी मुग्ध कर डाला, मगर अपनी असली परीक्षा अब होने वाली थी। बहुत सारे कोठे और वेश्याओं और उनके घर को जानने के बाद भी ग्राहक बन कर कहां चला जाए ?इस समस्या के समाधान के लिए मैंने शाहदरा के एक पोलिटिकल मित्र को साथ चलने के ले राजी किया। इस किस्त को लिखने को लिखने से पहले मैं खास तौर पर शाहदरा में जाकर उसे मिला और नाम लिखने को बाबत पूछा।एक पल में ही सहर्ष राजी होते हुए उसने कहा अरे अनामी भाई जब तुम अपना नाम दे रहे हो तो कहीं पर भी मेरा नाम डाल सकते हो। उसके इस प्रोत्साहन पर मैं एकदम नत मस्तक हो गया तो हंसते हुए मेरा मित्र दर्शनलाल ने कहा कि मेरी पत्नी को मुझसे ज्यादा तुम पर भरोसा है कि जब अनामी भैय्या होंगे तो मैं चाहकर भी बहक नहीं सकता। 


अब समस्या थी कि जाए तो कहां जाए ?मेरे मित्र अपने कुछ रंगीन दोस्तों से सलाह मशविरा करने लगा। कईयों ने हम दोनों की खिल्ली भी उड़ाई कि अब कोठा पर जाने का जमाना कहां रह गय है। जब चाहो और  जहां चाहों किसी भी जगह कॉलगर्ल आ जाएगी। मैने कहा कि कॉलगर्ल कहां मिलेगी क्या इसकी जानकारी केवल उसी को हैं मगर हमें कोठे पर ही जाना है वेश्याओं कहो या रंड़ियों के पास। हाई फाई मौजी लड़कियों पर कभी काम किया तो बाद में मगर अभी केवल कोठा पर जाना है। मेरे मित्र दर्शनलाल ने कई दिनों के होमवर्क के बाद जीबीरोड के कुछ कोठे का हाल चाल पता लगा लिया। इस पर मैंने उन दो चार कोठे पर नहीं जाने के लिए कहा जहां पर कुछ  वेश्याओं नें मुझे गर्भवती बताकर ले गयी थी। दर्शनलाल ने यह कह रखा था कि कमरे में केवल तुम्हें जाना हैं, मैं बाहर बैठकर तब तक आंटियों और खाली लड़कियों को कुछ खिलाउंगा ।  छत पर जाने के साथ ही एक आंटी सामने थी।  मेरे मित्र ने कह कि यह मेरा दोस्त हैं और पहली बार यहां आया हैं सो इसकी हिम्मत नहीं हो रही थी तो मैं केवल साथ भर हूं। आंटी निराश सी हो गयी तो मेरे मित्र ने कहा तू उदास क्यों हो रही हैं कीमत से ज्यादा मैं खर्च मैं तुमलोग के साथ चाय पानी पर करूंगा।  मेरे समने हर तरह की करीब 10 वेश्याएं आकर खड़ी हो गयी। कुछ तो वाकई बहुत सुदंर चपल चंचल तेज और मर्दमार सी ही दिख रही थी। मगर इन्ही भीड़ में ही एक सबसे सामान्य संवली नाटी और किसी भी मामले में अपनी साथिनों के बीच नहीं ठहरने वाली मायूस और मासूम सी उदास लड़की दिखी।  मैने उसकी तरफ अंगूली कर दी, तो सारी लड़कियं एक साथ ठठाकर हंस पड़ी।  दो एक उस लड़की पर कटाक्ष किया अरे वंदना तू भी किसी की पसंद बन सकती है। आंटी मेरी तरफ देखने लगी और बोली हो जाता है हो जाता है तू चाहे तो फिर किसी को पसंद कर ले। मैने फौरन कहा क्यों ?  क्या कमी है इसमें । इसमें जितना सौंदर्य और आकर्षण हैं यहां पर खड़ी और किसी में कहॉ ?  सब आंख नाक मुंह और छाती उठाकर अपने को बिकाउ होने का बाजा बजा रही थी। मगर यहां पर यही तो केवल एक इस तरह की मिली जो एकदम शांत और अपने शारीरिक मानसिक सुदंरता का बाजार नहीं लगा रही थी।  आंटी ने 30 मिनट का समय और ढाई सौ रूपये कीमत का ऐलान किया। मेरे दोस्त नें पांच सौ रुपये का एक नोट निकाला और आंटी की गोद में यह कहते हुए डाल दिया कि बाकी रूपये का तुमलोग चाय पानी पी सकती हो। इस पर आंटी तुरंत मुझसे बोल पड़ी कि तू चाहे तो और ज्यादा समय तक भी अंदर रह सकता है। मैं और दर्शनलाल ने एक दूसरे को देखा और मैं अंदर जाने के लिए तैयार हो गया। मेरी पसंद वाली लड़की का उदास चेहरा एकदम खिल सा गया था, और एकदम चहकती हुई मेरा हाथ पकड़कर मेरे साथ एक कमरे में घुस गयी। कमरे में एक सिंगल बेड लगा था,और दीवारों पर कई उतेजक कैलेण्डरों के बीच भगवान शंकर और हनुमान जी के कैलेण्डर टंगे हुए थे। कमरे के बाहर ही मैं अपने जूते उतार दिए थे। कमरे का मुआयना करते हुए मैने कहा कि यहां पर इन भगवानों के कैलेण्डर क्यों टांग रखी हो ?इस पर वो खिलखिला पड़ी और चहकते हुए बोली कि यहां के हर कमरे में किसी न किसी भगवान का कैलेण्डर जरूर मिलेगा। मैं भी इस भक्ति पर हंस पडा कमाल है तुमलोग ने तो भगवान को भी अपने गुट के साथ शामिल कर ऱखी हो। छोटे से कमरे मे घुसते ही मैं चौकी पर जा बैठा। कमरे में हल्की खुश्बू और रौशनी थी, मगर मेरे बैठने पर वो चौंक सी गयी। अपने हाथ उठाकर कपड़े उतरने के लिए तैयार सी थी। मैने फट से कहा अरे अरे अभी रुको जरा।  मुझे कोई जल्दी नहीं है। अभी बैठो तो सही मैंने तो अभी तुमको ठीक से देखा तक नहीं है कि तुम उतावली सी होने लगी। मेरी बात सुनते ही वो हंस पड़ी। अऱे कमरे के भीतर बात नहीं मुलाकात की जाती है। लोग तो साले कमरे के बाहर ही हाथ डाल देते हैं और तुम यहां पर आकर भी सिद्धांत मार रहा है। अरे यार और लोग कैसे होते हैं यह तो मैं नहीं जानता मगर मैं वैसा ही पागल रहूं यह कोई जरूरी है क्या ?वो हंसने लगी तू क्या सोचता हैं कि यहां पर कोई आदमी आता है सारे सिरफिरे बेईमन और पागल ही हम रंडियों को गले लगाने आते है। फौरन मैं बोल पडा जैसा कि मैं भी तो एक पागल बेईमान, मूर्ख सिरफिरा और चरित्रहीन एय्याश यहं पर आया हूं। मेरी बातों को काटते हे वह बोल पड़ी नहीं रे तू ऐसा नहीं लगता हैं नहीं तो मुझे कभी पंसद नहीं करता। मेरे को माह दो माह में ही कोई तुम्हरी तरह का पागल ही पसंद करता है या जिसकी जेब में रूपए कम होते है। मगर तेरे साथ तो ऐसा कुछ नहीं है फिर भी मुझे क्यों चुना ?मैं उन नौटंकीबाज नखरेवालियों को जानता हूं मगर तू एकदम शांत बेभाव खड़ी थी तो लगा कि तुम अलग हो। बात करते करते करीब 15 मिनट गुजर गए थे। वो एकाएक व्यग्र सी हो उठी। अब उठो तो बतियाते बतियते ही समय खत्म हो जाएगी। तो हो जाने दो न फिर कभी आ जाउंगा। मेरी बात सुनकर वो भड़क उठी। साले मैं सुदंर नहीं हूं इस कारण तेरा मन नहीं कर रहा हैं तो तू हमें उल्लू बना रहा है । इस पर मैं हंसते हुए बोला तू पागल है । अब वो पहले से ज्यादा उग्र होकर बोली तो तू कौन सा सही है। तू भी तो पागल ही है कि पैसा खर्च करके रंडी की पूजा करने आया है। मैने कहा कि तू चाहे जितना बक बक कर ले मै 30 मिनट के बाद ही यहां से निकलूंगा। तो 30 मिनट क्यों अभी निकल और दो चार गंदी गंदी गालियों के साथ नपुंसक हिजडा छक्का आदि आदि मुझे तगमा देने लगी। दो चार मिनट तक शांत भाव से गालियां खाने के बाद मैं फिर बोल पड़ा कहां गयी तेरी गालियां। बस खत्म हो गया स्टॉक। मैने कहा चल मेरे साथ गाली बकने की बाजी लगा एक सांस में एक सौ गाली देकर ही ठहरूंगा। मेरी बाते सुनकर वो हंसने ली। मेरे मूड को देखकर वो अपने कपड़े ठीक कर ली। मैने अपने बैग से नमकीन और बिस्कुट  के पैकेट निकालकर दिए कि चल खा मेरे साथ। इन सामानो को देखकर वो फिर बमक गयी।  साला बच्चा समझता है कि पटाने के लिए ई सब थैला में रखकर घूमता है। ये छैला टाईप के लौंडिया बाज लोग ही करते हैं कि जहां देखे वहीं पटाने या मेल जोल बढने में लग गए। उसकी बाते सुनकर मैं खिलखिला पड़ा अरे यार तूने तो मेरी आंखे ही खोल दी मैं तो अपने बैग में जरूर कुछ न कुछ सामान अमूमन रखता हूं। इस पर वो हंसते हुए बोली तो तू कौन सा बड़ा ईमानदर है। मैने कहा कि ये लो जी आरोप लगाने लगी। फिर बौखलाते हुए बोली कि साला यहां पर आकर अपने आप को पाक दिखाने की कोशिश करना सबसे बड़ी कुत्तागिरी होती है। मैं बाहर जा रही हूं तेरे वश में कुछ नहीं है हरामखोर और रोते हुए कमरे से बाहर निकल गयी। उसके जाने बाद मैं भी बिस्तर पर पालथी मारकर बैठे आसन से उठा और दोनों हाथ उपर करके अपने बदन को सीधा किया। दरवाजे पर ही खडा होकर जूता पहनकर हॉल की तपऱ बढ गया। मेरे को देखते ही आंटी बोली भाग गयी क्या फिर बुलाउं ? मैने तुरंत कहा नहीं नहीं नहीं नहीं । आंटी भौंचक सी होकर मेरी तरफ देखने लगी। मेरा मित्र भी थोडा अचकचासा रहा था। मैने कहा कि तुमलोग चाय पी लिए क्या ?आंटी ने कहा हां जी बेटा इधर आते रहना। मैने भी आंटी को हाथ जोड़कर नमस्ते की और अपने दोस्त दर्शनलाल के साथ कोठे से बाहर जाने लगा।                 

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