दयालबाग DEI आगरा ) की डीन सुश्री शर्मिला सक्सेना जी की मेरी रिपोर्ताजनुमा संस्मरणात्मक कहानियों रपटों पर सरसरी टिप्पणी।)
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i: आपकी कहनियां वक्त के साथ मुठभेड़ करती,अपने को पहचान कर जीवन के नवीन अर्थ को खोजती प्रतीत होती हैं।
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: संस्कृति समन्वय संघर्ष एवं स्त्री विमर्श इन कहानियों की अंतर्धारा हैl
आपकी भावपूर्ण एवं प्रभावपूर्ण रचनाएँ कभी मंद मंद मंथर गति से बहती सी प्रतीत होती हैं तो कभी एक वेगवान नदी की तरह समस्त कूल किनारों को तोड़ बहने को आतुर प्रतीत होती हैं।जीवन की सच्चाई ,साफगोई इनमे साफ नज़र आती है
i: पठनीयता व रोचकता कूट कूट कर भरी है,एक बार आरम्भ करने के बाद समय का भान ही नही रहता।कब शुरू हुई और कब खतम समय का पता ही नही चलता ।
इसे अश्लीलता नही कहते ,साफगोई कहते हैं।सच्चाई कहते हैं।निश्चित रूप से भाषा प्रवाहपूर्ण व भावपूर्ण होने के साथ कुछ नवीनता लिए हुए हैl
i: ऐसा कुछ भी नही है आपकी रचनाएँ कुछ नया कहती है और नवीनता पुराने मानकों को तोड़कर अपनी राह स्वयं बना लेती है
पुराने मानक टूट रहे हैं तभी तो कुछ नया साहित्य को पाथेय में मिलेगा
इतने सुन्दर लेखन व नवीन कथानकों के विन्यास द्वारा आप निश्चित रूप से साहित्य को समृद्धि प्रदान करेंगे ।
आपका काम निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है
: अद्भुत विषय चयन ,सटीक भाषा,चुभते हुए प्रश्न, निश्चित रूप से आप एक श्रेष्ठ यायावर हैं
: अपने आप को केवल पत्रकार मत कहिये आप अपने ज्वलंत प्रश्नों की प्रश्नाकुलता से व्यथतित एक उभरते हुए युवा पत्रकार साहित्यकार हैं.
i: (दयालबाग DEI आगरा ) की डीन सुश्री शर्मिला सक्सेना जी की मेरी रिपोर्ताजनुमा संस्मरणात्मक कहानियों रपटों पर सरसरी टिप्पणी।)
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