लोकतंत्र का मतलब : प्रो. तुलसीराम
: वर्धा में 'इस्लामिक देशों में लोकतंत्र का भविष्य' विषय पर चर्चा : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के फैकल्टी एण्ड ऑफिसर्स क्लब द्वारा 'इस्लामिक देशों में लोकतंत्र का भविष्य' विषय पर आयोजित चर्चा के दौरान जनवादी व दलित चिंतक और जेएनयू, नई दिल्ली के प्रो. तुलसीराम ने कहा कि आज डेमोक्रसी मोबोक्रेसी में बदल गया है। अमेरिका अपनी नीतियों को मनवाने के लिए डेमोक्रेसी के नाम पर जनता की भीड़ को सड़क पर उतार देता है। जहां-जहां उनके समर्थक सत्ता में आ जाते हैं उसे ही वे डेमोक्रेसी कहते हैं। आज डेमोक्रेसी से तात्पर्य हो गया है कि हम अमेरिका की विदेश नीति को मानें।
लीबिया में कई जनहित कार्यक्रम चलाए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लीबिया में जेल नाम की संस्था को हटाया गया, क्योंकि उनका कहना था कि हमारे यहां कोई क्राइम नहीं है लेकिन मीडिया ने उसे नोटिस में नहीं लिया। लीबिया हमेशा अमेरिका का विरोध करता था। इस्लामिक देशों में अमेरिका तेल के कुंओं पर कब्जा करना चाहता है। अमेरिका डिस्टेबिलाईजेशन थ्योरी के तहत सीआईए के माध्यम से जहां भी कोलोनियल विरोधी आंदोलन चल रहा था, उसे अलोकतांत्रिक करार देकर लोकतंत्र की बहाली के नाम पर सुनियोजित तरीके से लोगों को सड़क पर उतार देता है। इसमें अमेरिका बड़े पैमाने पर विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों का सहारा लेता है। अमेरिका का कहना है कि हम इस्लामिक फंडामेंटलिस्टों के विरोध में लड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हटिंगटन ‘क्लैश ऑफ सिविलाईजेशन’ में लिखते हैं कि यूरोप अमेरिका को पश्चिमी सिविलाईजेशन कहता है औरों की सिविलाईजेशन को धर्म से जोड़ता है। वे मानते हैं कि पश्चिमी ही क्या कहें पूरी सिविलाईजेशन के खिलाफ इस्लामिक सिविलाईजेशन है, इसलिए हमें इस्लामिक सिविलाईजेशन का विरोध करना चाहिए। वे तो मानते हैं कि अगर दुश्मन नहीं है तो पैदा करो। इसी नीति पर पश्चिम के देश सारी दुनिया पर आधिपत्य कायम करना चाहते हैं। शांतिप्रिय देश इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन, अमेरिकी नीतियों को नहीं मानते थे। अमेरिका ने कहा कि इराक के पास ‘विपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन’ है, इस नाम से अमेरिका ने इराक पर हमला किया, तकरीबन 20 लाख लोग मारे गए, अब अमेरिकन सरकार वहां तेल निकाल रही है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका के निशाने पर उत्तर कोरिया व इराक दोनों ही थे, चूंकि उत्तर कोरिया में प्राकृतिक तेल नहीं था इसलिए अमेरिका ने इराक पर हमला कर तेल क्षेत्र को अपने कब्जे में कर लिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने 2004 में लोकतंत्र की बहाली के नाम पर जार्जिया पर हस्तक्षेप किया और एक अमेरिकी नागरिक को वहां सत्ता में बिठा दिया।
लोकतंत्र का मतलब सिर्फ 5 साल में चुनाव करना ही नहीं है : प्रख्यात साहित्य आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय ने कहा कि लोकतंत्र का मतलब सिर्फ 5 साल में चुनाव करना ही नहीं है। अब्राहम लिंकन ने जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन व्यवस्था को लोकतंत्र बताया है। भारत में अधिकांश जनता शासन व्यवस्था से अलग है। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस देश में जो शिक्षा व्यवस्था चल रही है, यह किसी शिक्षाशास्त्री ने नहीं बनायी अपितु इसमें तो अंबानी, मित्तल जैसे कार्पोरेटवाले घुसे हैं।
उन्होंने कहा कि दुनियाभर के सत्ताधारियों की बुनियादी मांग होती है स्थिरता। जनांदोलनों को वे स्थिरता में बाधा मानते हैं। हाल में इस्लामिक देशों में हुए जन-उभार लोकतंत्र के लिए जगाने वाले हैं। आज लोकतंत्र वही है जिसे अमेरिका बताए। सारे मुसलमानों के प्रति अमेरिका द्वारा यह भ्रम फैलाया गया है कि सारे मुस्लिम कट्टरपंथी जड़ किस्म के तथा लोकतंत्र विरोधी हैं। फूकोयामा के वक्तव्यों के हवाले से उन्होंने कहा कि इतिहास का अंत हो गया, जबकि आज इतिहास के इतिहास का अंत हो गया है।
मिस्र में हुए जनांदोलन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जहां असंतोष को अभिव्यक्ति का जरिया नहीं मिलता वहां विध्वंस होता है। इतने बड़े पैमाने पर लूट, झूठ और तबाही का सारा आलम था मिस्र में। मिस्र में हुस्नी मुबारक को 93 प्रतिशत मतों से जीतने का मतलब था कि जनता को लगने लगा कि अब वहां भी हमारी आवाजें उठने वाली नहीं है। वहां जो आंदोलन हुआ है वह सिर्फ अचानक विस्फोट से नहीं हुआ है बल्कि 8 वर्षों से इसकी ज्वाला धधक रही थी। वहां के जनांदोलन में प्रौद्योगिकी का बड़ा योगदान रहा है, नई पीढी ने फेसबुक व इंटरनेट के माध्यम से सबको एकत्रित किया।
उन्होंने कहा कि दुनियाभर में जो परिवर्तनगामी लोग होते हैं वे आंदोलन से सत्ता परिवर्तित करने में विश्वास रखते हैं। ट्यूनीशिया की घटना ने मिस्र की जनता में विश्वास पैदा किया कि जनांदोलन कर व्यापक परिवर्तन कर सकते हैं। इतिहास आम जनता की मदद करता है और सिखाता है कि कैसे इतिहास बनाए और आगे बढें। चर्चा में उठे सवाल कि क्या इस्लाम और डेमोक्रेसी एक साथ चल सकती है के जवाब में मैनेजर पाण्डेय ने कहा कि हर नागरिक को कुछ मामले में अधिकार मिलना चाहिए।
इस पर अध्यक्षीय वक्तव्य में विश्वविद्यालय के कुलपति व वरिष्ठ कथाकार विभूति नारायण राय ने कहा कि हर मामले में समान अधिकार क्यों नहीं दिया जाना चाहिए तो मैनेजर पाण्डेय ने कहा कि थोकभाव में दलितों को जला रहे हैं, क्या ये लोकतंत्र है। कुलपति राय ने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सकारात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि जब लोकतंत्र है तो राज्य करने का अधिकार सबको होगा। आज इक्कीसवीं सदी में हथियार से राज्य करना उचित नहीं होगा। विमर्श को आगे बढाते हुए वरिष्ठ पत्रकार डॉ. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि तसलीमा नसरीन के सन्दर्भ में हम देख सकते हैं कि भारत में लोकतंत्र कितना कमजोर हो गया है। चर्चा सत्र में विवि के प्रतिकुलपति प्रो. ए अरविंदाक्षन मंचस्थ थे।
चर्चा सत्र का संचालन फैकल्टी एण्ड ऑफिसर्स क्लब के सचिव अमरेन्द्र कुमार शर्मा ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के राइटर इन रेजिडेंस आलोक धन्वा, वित्ताधिकारी एमएस खान, प्रो. अनिल के राय ‘अंकित’, प्रो. संतोष भदौरिया सहित विवि के अध्यापक बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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