गुरुवार, 17 मार्च 2011

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स्टिंग आपरेशन में सावधानी ज़रूरी

स्टिंग ऑपरेशन होने चाहिए और खूब होने चाहिए क्योंकि जनसत्ता, धनसत्ता और दूसरी तरह की सत्ताओं में फैले भ्रष्टाचार को बेनकाब करने का यही सबसे ज़्यादा धारदार और कारगर हथियार है। ये विचार स्टिंग ऑपरेशन पर ब्रॉडकास्कटर्स क्लब ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में व्यक्त किए गए। विभिन्न शिक्षा संस्थानों में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे छात्रों को स्टिंग ऑपरेशन के पाठ पढ़ाने आए तमाम विशेषज्ञों ने स्टिंग ऑपरेशन की ज़रूरत पर बल देते हुए ये भी कहा कि इस विधा का इस्तेमाल जनहित में किया जाना चाहिए और बहुत ही सोच समझकर पूरी तैयारी एवं ज़िम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए।

दिल्ली के गाँधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित ये कार्यशाला संभवत: स्टिंग ऑपरेशन पर आयोजित होने वाली देश में अपनी किस्म की पहली वर्कशाप थी। इसमें स्टिंग ऑपरेशन के सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों पक्षों से छात्रों का परिचय कराया गया। पाँच सत्रों में बंटी इस कार्यशाला की शुरूआत वैचारिक चर्चा से हुई। वरिष्ठ पत्रकार और लिंगैंया विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम कश्यप ने बहुत ही कसे हुए संबोधन में स्टिंग आपरेशन का समर्थन किया और कहा कि केवल नेताओं ो निशाना बनाना ठीक नहीं, इसका दायरा समाज के दूसरे हिस्सों तक फैलाया जाना चाहिए। सुपरिचित चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख का कहना था कि अब ये सवाल उठाना ही ग़लत है कि स्टिंग ऑपरेशन होना चाहिए या नहीं। उन्होंने स्टिंग आपरेशन का विरोध करने वालों को भी आड़े हाथों लिया। वरिष्ठ टीवी पत्रकार मुकेश कुमार ने स्टिंग आपरेशन की सीमाओं की तरफ ध्यान खींचा और इस ज़रूरत को रेखांकित किया कि स्टिंग ऑपरेशन के विधिवत प्रशिक्षण की ज़रूरत क्यों है। टाइम्स फाऊंडेशन के चीफ एक्जीक्यूटिव पी सी पांडेय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि छात्रों को स्टिंग ऑपरेशन की विधा का सही ढंग से समझना और सीखना चाहिए। सत्र का संचालन कर रहे बीसीआई के एक्ज़ीक्यूटिव प्रेसीडेंट ओंकारेश्वर पांडेय़ ने कहा कि स्टिंग आपरेशन के बारे में पत्रकारिता के छात्रों की समझ को पूरी तरह से विकसित करने की ज़रूरत है ताकि भविष्य में वे इसका सही ढंग से इस्तेमाल कर सकें।

कार्यशाला में छात्रों को स्टिंग ऑपरेशन के हर पहलू से अवगत कराया गया। सुपरिचित टीवी के एंकर मनोज रघुवंशी और इंडिया न्यूज़ के डिप्टी डायरेक्टर (न्यूज़) रह चुके अनुरंजन झा ने छात्रों को स्टिंग आपरेशन की बारीकियाँ बताईं। मनोज रघुवंशी ने बहुत सारे उदाहरण देकर बताया कि स्टिंग आपरेशन पूरी तैयारी और योजना के साथ करना चाहिए, अन्यथा लेने के देने भी पड़ सकते हैं। उन्होंने बताया कि अब तो स्टिंग आपरेशन करने के अवसर बहुत बढ़ते जा रहे हैं, क्योंकि सरकारें खुद ही कह रही हैं कि स्टिंग आपरेशन करो और इनाम लो। अनुरंजन झा ने विजुअल प्रस्तुति के ज़रिए रिपोर्टिंग के गुर तो बताए ही, साथ ही इस बात पर भी ज़ोर दिया कि रिपोर्टर को तकनीक, ख़ास तौर पर कैमरे के संचालन की जानकारी होना कितना महत्वपूर्ण है।

जयपुर से आए वॉयस ऑफ इंडिया के ब्यूरो प्रमुख श्रीपाल शक्तावत ने राज्य में किए गए कुछ बड़े स्टिंग आपरेशन के अनुभवों को छात्रों के साथ बाँटा। उन्होंने बताया कि कन्या भ्रूण परीक्षण पर स्टिंग आपरेशन करते वक्त चार जगहों पर उनकी टीम की पोल भी खुल गई थी। उन्होंने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के तांत्रिक अनुष्ठान के स्टिंग आपरेशन की पूरी प्रक्रिया का रोचक ढंग से खुलासा किया।

कई चैनलों में काम कर चुके संजीव चौहान ने भी छात्रों को अपने अनुभव बताए और कहा कि स्टिंग आपरेशन बहुत ही ठंडे दिमाग से धैर्य के साथ किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि इसमें दिल और दिमाग दोनों का काम पड़ता है और जो एक भी मामले में कमज़ोर होता है वह कामयाब नहीं हो सकता।

वर्कशाप के अंतिम सत्र में विभिन्न शिक्षा संस्थानों की नामी हस्तियाँ जुटीं। आई एम एस के पत्रकारिता विभाग के प्रमुख देवेश किशोर, जागरण पत्रकारिता संस्थान के जे एस शरण, खालसा कॉलेज के प्रो.एच.एन. गिल के अलावा इस सत्र के एक प्रमुख आकर्षण अपराध के कार्यक्रम के जाने माने एंकर राघवेंद्र मुद्गल रहे। उन्होंने बहुत ही ख़ास अंदाज़ में कुछ स्टिंग ऑपरेशन का ज़िक्र करते हुए कहा कि इसके लिए ख़ास तरह का जज़्बा चाहिए होता है। इस सत्र का संचालन कर रहे दूरदर्शन के असिस्टेंट डायरेक्टर और बीसीआई के महासचिव पी एन सिंह ने कहा कि उनका संगठन इस तरह की और भी वर्कशाप तो आयोजित करेगा ही, साथ ही एक बड़ा उत्सव भी आयोजित करेगा, जिसमें बड़े पैमाने पर पत्रकारिता के छात्रों की भागीदारी रहेगी।

देश के पंद्रह प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के करीब 125 छात्रों के लिए ये एक बहुत बड़ा अवसर था। उन्हें स्टिंग आपरेशन के बारे में टीवी जगत के जाने-माने विशेषज्ञों के ज़रिए एक साथ इतनी महत्वपूर्ण जानकारी और प्रशिक्षण मिला। शायद इसीलिए उन्होंने और उनके प्राध्यापकों ने माँग की कि इस तरह की कार्यशालाएं लगातार आयोजित

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