सुरेश्वर त्रिपाठी: प्रिय भाई सुरेश्वर,
कल तुम पर केंद्रित 'सृजन मूल्यांकन' पत्रिका का लोकार्पण होना है।
मैं उसमें आ तो नहीं पा रहा, पर निश्चित समझो, मेरा मन वहीं उपस्थित रहेगा।
इस अवसर पर कुछ शब्द लिख भेजता हूँ।
ठीक समझो, तो किसी से पढ़वा देना।
.... ... ...
प्रिय मित्रो,
यह हम सबके लिए बड़े गर्व और आनंद की बात है कि
भाई सुरेश्वर पर केंद्रित 'सृजन मूल्यांकन' पत्रिका का लोकार्पण
एक बड़े आत्मीयता भरे अंतरंग कार्यक्रम में हो रहा है।
पत्रिका बड़े खूबसूरत ढंग से निकली है, जिसके आवरण की छवि
ही मुग्ध कर देने वाली है। फिर प्रिय अनामीशरण और भाई सूर्यनाथ जी
का सुरुचिपूर्ण संपादन, साथ ही कुशल डिजाइनर उमेश कुमार की सज्जा
इसे बड़ा अऩुपम और स्मरणीय बना देती है।
मैं इस कार्यक्रम में आ तो नहीं पा रहा, पर मेरा मन वहीं सुरेश्वर
और आप सबके निकट उमड़ता-घुमड़ता हुआ, कार्यक्रम का
रस-आनंद ले रहा होगा।
इसलिए कि सुरेश्वर मेरे अपने, बहुत अपने हैं। बल्कि कहूँ, वे
हम सभी के बहुत अपने हैं। यारों के यार और बेहद दिलखुश इनसान।
साथ ही विलक्षण भी। वे कब क्या कर गुजरेंगे, कोई नहीं जानता।
मगर जब जिस रंग में वे नजर आएँ, समझिए कि उसकी हदों को
वे जरूर छूकर आएँगे।
पत्रिकारिता में गए तो बनारस के सारे दस नंबरी पत्रकारों
को ठिकाने लगा दिया। फोटोग्राफी में उतरे तो ऐसी उस्तादाना छवियाँ
अपने कैमरे में कैद कर लाए कि फोटोग्राफी की आधी दुनिया के
वे महागुरु हैं। और साहित्य में उतरे तो ऐसी कहानियाँ, कविताएँ
और यात्रा-वृत्तांत लिखे, जिनके शब्द-शब्द में सुरेश्वर की छाप है।
सोचता हूँ, उन्हें सुरेश्वर न लिखता तो भला कौन लिख पाता?
फिर पक्षियों को अपने कैमरे में उतारने की उनकी अपरंपार जिद
और उसके लिए लंबी-लंबी, बीहड़ यात्राएँ, उनका साहस, उनकी दिलेरी,
अपनी पर आ जाएँ तो कुछ भी कर दिखाने का उनका अपार हौसला ऐसा है
कि मेरा मन बार-बार उऩ्हें सलाम कहता है।
कभी-कभी सोचता हूँ, जयशंकर प्रसाद ने जब अपनी चर्चित कहानी
'गुंडा' लिखी होगी, तो उन्हें बिल्कुल इल्म न होगा कि उनकी कहानी से निकलकर
एक गुंडा सचमुच बनारस से निकलकर फऱीदाबाद की धरती पर आ विराजेगा,
और वह साथ ही साथ इतना भला, दिलेर और हरफनमौला भी होगा,
जैसा सिर्फ वही हो सकता है।
यह खुशी की बात है कि ऐसे बाँके और विलक्षण सुरेश्वर भाई
बनारस से चले, तो हमारा यह फरीदाबाद
उन्हें इस कदर रास आ गया कि वे बनारसी के साथ-साथ फरीदाबादी
भी हो गए।
इस नाते आज उनका सम्मान फरीदाबाद के साहित्य-जगत का
सम्मान भी है।
और मेरे लिए तो यह ऐसा आनंद है कि मैं उसे किसी से
बाँट ही नहीं सकता। इसलिए जब आप लोग अपने-अपने ढंग से
उनकी चर्चा कर रहे होंगे, तो मैं खुश-खुश मुसकराता हुआ,
प्यार से उनके सिर पर हाथ फेर रहा होऊँगा, और मन ही मन कह रहा होऊँगा
कि यह सुख मेरे जीवन का अनिर्वचनीय सुख है।...
बहुत-बहुत प्यार और शुभकामनाओं सहित,
प्रकाश मनु
[3/7, 13:26] Anami: नमस्कार सृजन मूल्यांकन के सुरेश्वर त्रिपाठी अंक पर आज लोकार्पण और विचार गोष्ठी का आयोजन हो रहा है और मैं उपस्थित नहीं हूँ. कुछ ऐसा संयोग रहा की पत्नी का ऑपरेशन पांच मार्च को हुआ है और कल देर शाम को घर लाया गया. उनकी स्थिति और घर में केवल बेटी के भरोसे छोड़ा नहीं जा सकता था. इस कारण माफ krenge🙏 सृजन का कोई भी आयोजन मेरा अपना पारिवारिक कार्यक्रम सा होता है और उसमें ना होने की पीड़ा को समझा जा सकता है.
सुरेश्वर जी पर अंक आपके सामने है और यहां पर कुछ बातें बताना चाहूंगा की सुरेश्वर जी से मेरा नाता विशुद्ध लेखक पत्रकार पाठक वाला है. सुरेश्वर जी का नाम आते ही मेरे मन में काशी प्रतिमान की छवि प्रकट होती है. इसके 3-4 अंक कोई 20-21 साल पहले काशी प्रतिमान के जरिये हुआ. और इस परिचय के सूत्रधार बने आदरणीय प्रकाश मनु जी. उनसे ही काशी प्रतिमान और सुरेश्वर जी के दबंग व्यक्तित्व के बारे में सुना था. काशी प्रतिमान के सौजन्य मनु जी वो सारे अंक असजद भी मेरी पुस्तकालय की शोभा है. लंबे समयबके बाद करीब 15 साल की गुमनामी से सृजन को बाहर निकाला और मनुजी पर अंक लाया गया. उसी दौरान एक बार फिर मन में यादों में सो गये सुरेश्वर त्रिपाठी जी जीवित हो गये. फिर मनुजी ने ही उनके बारे में uptodate जानकारी दो और यह भी बताया की सुरेश्वर जी फरीदाबाद े ही रहते है. यह सूचना मेरे लिए नयी और अनोखी थी मेरे मन में उनसे मिलने की इच्छा जगी मगर मुलाक़ात का योग संयोग सृजन मूल्यांकन के मनु जी पर केंद्रित अंक के लोकार्पण समारोह में ही संभव हो पाया मनुजी के घर पर आयोजित समारोह में लम्बे चौड़े विराट व्यक्तित्व े एक सज्जन का कैमरा लेकर फोटो खींचते देखा और वक्ताओ में ज़ब सुरेश्वर जी की पारी आने पर वही विराट कद काठी के छायाकार प्रकट हो गये. तब जस्ना की ये तो सुरेश्वर जी है. मेरी उत्सुकता उनसे मिलने की हुई और तब जाकर उनसे मेरी पहली मुलाक़ात हुई. वाकई गुरु मजा आ गया करीब तीन चार मुलाक़ात में ही जाना की ऊपर से दबंग लगने वाले सुरेश्वर जी अंदर से कितने भावुक सरल संवेदन शील सहयोगी और हर आदमी के लिए खड़ा हो जाने वालेकितने दुर्लभ आदमी हैं. साहित्य के मथाधिशो के खिलाफ आवाज़ उठाने और सच को सामने लाने वाले सुरेश्वर जी को इसका आजीवन नुकसान भी उठाना पड़ा. इसके बावजूद इनके दबंग व्यक्तित्व के आभा मंडल पर कोई असर नहीं पड़ा. इनके तेवर और सच के प्रति दृढ़ता में कोई कमी नहीं आयी. शायद यही तेज इनके व्यक्तित्व की गरिमा का सबसे सुंदर पक्ष हैं.
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