परदेसियों से न अखियाँ मिलाना, परदेसियों को है इक दिन जाना। अपनी दौर की मशहूर और खूबसूरत अभिनेत्री नंदा का कोई जोड़ था।
इनका जन्म ८ जनवरी १९३९ को हुआ था। इनका पूरा नाम नंदा कर्नाटकी था। पिता विनायक दामोदर कर्नाटकी मराठी फिल्मों के अभिनेता, निर्माता व निर्देशक थे। नंदा फिल्मों में काम नहीं करना चाहती थीं। पर बॉलीवुड में इनकी एंट्री की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। जब ये ५ वर्ष की थीं तो इनके पिता अपनी एक फ़िल्म में इनसे एक लड़के का रोल कराना चाहते थे। पर फ़िल्म पूरी होने से पहले ही इनके पिता का देहांत हो गया। और १० साल के उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारी इन पर आ गई।
बतौर बाल कलाकार मंदिर , जग्गू,शंकराचार्य , अंगारे में अभिनय किया। दिनकर पाटिल की निर्देशित मराठी फ़िल्म ‘कुलदेवता’ के लिये नंदा को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विशेष पुरस्कार से नवाजा था। नंदा ने कुल ८ गुजराती फ़िल्मों में भी काम किया। हिंदी में नंदा ने बतौर हीरोइन १९५७ में अपने चाचा वी शांता राम की फ़िल्म 'तूफान और दिया' में काम किया था। उसके बाद नंदा फ़िल्मों में ऐसी व्यस्त हुईं कि निजी ज़िंदगी के लिय उन्हें वक़्त ही नहीं मिला।
१९५९ में नंदा ने फ़िल्म 'छोटी बहन' में बलराज साहनी की अंधी बहन का किरदार निभाया था। उनका अभिनय दर्शकों को बहुत पसंद आया। राजेंद्र कुमार के साथ उनकी अगली फ़िल्म 'धूल का फूल' सुपरहिट रही। लेकिन, बहन के रोल उनका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। नंदा एक बार फिर 1960 की फ़िल्म 'काला बाजार' में देव आनंद की बहन बनीं। नंदा ने सबसे ज्यादा ९ फ़िल्में शशिकपूर के साथ कीं। उन्होंने उनके साथ १९६१ में ‘चार दीवारी’ और १९६२ में ‘मेंहदी लगी मेरे हाथ’ जैसी फ़िल्में कीं। ‘जब जब फूल खिले’ तो एक ज़बरदस्त हिट फ़िल्म साबित हुई।
उन्होंने देव आनंद के साथ 'काला बाज़ार', 'हम दोनों', 'तीन देवियां', शशि कपूर के साथ 'नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे', राजेश खन्ना के साथ ‘इत्तेफाक’ (1९६९) में उन्होंने निगेटिव किरदार तक निभाया, लेकिन दर्शक उनका ये रूप नहीं स्वीकार सके। बहरहाल, साल १९७२-७३ के बाद नंदा की एक के बाद एक कई फ़िल्में फ्लॉप होती रहीं और इस तरह से नंदा ने खुद को इंडस्ट्री से अलग कर लिया! नंदा की आखिरी फिल्मों में 'प्रेम रोग' और 'मजदूर' थी।
वर्ष १९५७ में उन्हें फ़िल्म भाभी के लिए फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया गया। १९६० में सहायक अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड फ़िल्म अंचल के लिये मिला।
नंदा मनमोहन देसाई से बेहद प्यार करतीं थी। पर दोनों अपने प्यार का इज़हार न कर पाए। जब मनमोहन देसाई की पत्नी का निधन हो गया उसके बाद दोनों ने सगाई कर ली। उस समय मनमोहन की उम्र ५५ की और नंदा जी ५३ वर्ष की थीं। पर दो वर्ष बाद ही मनमोहन जी का निधन हो गया। मनमोहन देसाई के निधन के बाद से नंदा काफी अकेली हो गई थीं। वो किसी से ज्यादा बातें भी नहीं करती थीं। उनकी खास दोस्तों में माला सिन्हा और वहीदा रहमान थीं, जिनके साथ वो थोड़ा वक्त गुज़ार लिया करतीं। २५ मार्च २०१४ को ७५ वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।लेकिन, सिने प्रेमी उन्हें आज भी याद करते हैं।
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