फेरबदल से दिल्ली का पोलिटिकल तापमान गरमाया
अनामी शरण बबल / देवेश श्रीवास्तव
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सामने दिल्ली के तमाम मंत्रियों की बोलती बंद रहती है। शीला जिसे जैसे और जब , जिस तरह चलाए,इसके लिए भी शीला को सारा अधिकार प्राप्त है। दिल्ली सरकार के ताजा फेरबदल में शीला ने एक ही निशाने से कईय़ों को पूरी तरह चित करके अपने आपको सुपर पावर की तरह फिर से श्थापित कर लिया है। क़ामनवेल्थ गेम में व्याप्त करप्शन के बावजूद शीला की सेहत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। गांधीवादी नेता मंगत राम सिंघल को चलता करके शीला ने अपने खासमखास चमच्चा पूर्व पत्रकार को मंत्रींड़ल में रख कर कई नाराज विधायकों को खुली चुनौती भी दे डाली है। सीला ने अपना पता तो चल दिया है, मगर ज्यादातर नाराज विधायकों की पोलिटिकल जड़ों पर ही मठ्ठा डालने का प्लान शीला के दिमाग में है। वहीं गृहमंत्री से मुलाकात करके शीला ने अपने खासमखास अधिकारियों के तबादलों पर रोक लगाकर शीला ने यह साबित भी कर दिया है कि सोनिया दरबार मे( भले ही इनकी पुछ घटलगई है) अभी रूतवा बरकरार है।
मंत्रियों के फेरबदल को लेकर किसी को हैरानी नहीं हो रही है, खासकर मंगतराम सिंघल को लेकर तो तब से ही क्यास लगना चालू हो गया था, जब वे शीला की तूसरी पारी में भी टीम में शमिल हो गए थे। मंगत के बदलाव को लेकर सभी आश्वस्त थे। मगर, रमाकांत गोस्वामी के चयन को लेकर लोगों की एकमत नहीं थी। कमसे कम एक दर्जन नामों की संभावित सूची में बाजी गोस्वामी का मार लेना कईयों को अभी तक पच नहीं रहा है। हालांकि सज्जन के दरबारी होने के साथ साथ शीला के भी विश्वासपात्र बने रहना काफी कठिन है, मगर तुला को संतुलित रखने में कामयाब रहे गोस्वामी को इस बार शीला ने पुरस्कार में मंत्री की कुर्सी तो थमा दी , मगर वे एक ही साथ अज. माकन पर वार करके कमजोर करने का खेल चालू कर द्या।
शीला की नजर में कांटे की तरह चूभन चूभने वाले डा. ए.के वालिया को पावरहीन करके बस मंत्री बनाए रखने की अपनी मजबूरी दिखा दी। स्वास्थ्य विभाग छीनकर डा. किरण वालिया को महत्वहीन सा डिब्बा थमा दिया है।रमाकांत पर भल ेही शीला की मेहरबानी रही, मगर मंत्रालय देने में शीला ने पूरी कंजूसी दिखाई है। गोस्वामी को मंत्री बनने का लाभ क्या होगा यह तो सभी जान रहे है, मगर पोलिटिकल इमेज का भारी नुकसान गोस्वामी को झेलना ही होगा।
अपने तीन वफादारों के प्रति हमेशा खुश रहने वाली शीला का लगता है कि अरविन्दर सिंह लवली से केमेस्ट्री गड़बड़ा रही है। हारून युसूफ को फिर से नाकाबलियत या निकम्मेपन का इनाम देते हुए पावर विभाग सौंप दिया। वहीं दिन रात खटने वाले राजकुमार पर शीला की मेहरबानियों का दौर अभी जारी है। हालांकि अपने प्यारों को पावरफुल बनाने के बाद भी शीला के पास विभागों का खजाना भरा पड़ा है। वित मंत्रालय से लेकर तमाम महत्वपूर्ण विभाग पर शीला की नजर लगी है। अपने साथी मंत्रियों को नाकाबिल दिखाकर मलाईदार सारे विभागों की काला कुंजी पूंजी अपने हाथ में संभाल रखी है। रिमोट कंट्रोल पर अपनी पकड़ को पुख्ता दिखाने में भले ही शीला कामयाब रही है, मगर साल 2013 विधानसभा चुनाव से पहले अपने भीतरघातियों ले निपटना आसान नहीं रहेगा। फेरबदल से शीला ने अपना दांव तो फेंक दिया है, मगर देखना है कि इनके तमाम विरोधियों की बाजी कैसी होगी। हालांकि शीला राज में नौकरशाहों की चांदी है। ब्यूरोक्रैट का इस कदर हावी हो जाना कि ज्यादातर विधायकों की बाते बेमतलब सी रह जाती है। हालांकि प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने लरकार पर नकरशाहों की बढ़ती धमक पर चिंता जाहिर की है, तो बीजेपी के जगदीश मुखी ने शीला के करप्शन को लेकर केंद्र सरकार की नीयत पर संदेह जताया है। नाम ना छापने की शर्त पर कई विधायकों ने अगले चार माह के भीतर शीला सरकार के पतन और कामन वेल्थ करप्शन गेम से शीला का पता तटने का दावा किया है। यानी दिल्ली का पोलिटिकल तापमान गरमा सा गया है, जिसे गरम रखने की चेष्टा जारी रखी जा सकती है।
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