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उर्दू पत्रकारिता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
भोपाल,22 जनवरी, 2010। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ बेग का कहना है कि उर्दू अपने घर में ही बेगानी हो चुकी है। सियासत ने इन सालों में सिर्फ देश को तोड़ने का काम किया है। अब भारतीय भाषाओं का काम है कि वे देश को जोड़ने का काम करें। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में उर्दू पत्रकारिताः चुनौतियां और अपेक्षाएं विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ सत्र में मुख्यअतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। उनका कहना था कि देश को जोड़ने वाले सूत्रों की तलाश करनी पड़ेगी, भाषाई पत्रकारिता इसमें सबसे खास भूमिका निभा सकती है।
आयोजन के मुख्य वक्ता प्रमुख उर्दू अखबार सियासत (हैदराबाद) के संपादक अमीर अली खान ने कहा कि उर्दू अखबार सबसे ज्यादा धर्म निरपेक्ष होते हैं। उर्दू पत्रकारिता का अपना एक रुतबा है। लोकिन उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या अच्छे अनुवादकों की कमी है। संगोष्ठी में स्वागत उदबोधन करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि इस संगोष्ठी का लक्ष्य उर्दू पत्रकारिता के बारे में एक समान कार्ययोजना का मसौदा तैयार करना है। उर्दू किसी तबके , लोगों की जबान नहीं बल्कि मुल्क की जबान है। मुल्क की तरक्की में उर्दू की महती भूमिका है। वरिष्ठ पत्रकार एवं सेकुलर कयादत के संपादक कारी मुहम्मद मियां मोहम्मद मजहरी (दिल्ली) ने कहा कि उर्दू पत्रकारिता गंगा-जमनी तहजीब की प्रतीक है।
प्रथम सत्र में उर्दू पत्रकारिता की समस्याएं और समाधान पर बोलते हुए दैनिक जागरण भोपाल के समाचार संपादक सर्वदमन पाठक ने कहा कि उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या पाठकों व संसाधनों की कमी है। उर्दू – हिंदी पत्रकारों में तो समन्वय है परंतु इन दोनों भाषायी अखबारों में समन्वय की भारी कमी है। आकाशवाणी भोपाल के सवांददाता शारिक नूर ने कहा कि एक समय में भोपाल की सरकारी जबान उर्दू थी व भोपाल उर्दू का गढ़ था। उर्दू सहाफत(पत्रकारिता) को बढ़ाना है तो उर्दू की स्कूली तालीम को बढ़ावा देना होगा। स्टार न्यूज एजेंसी, हिसार की संपादक सुश्री फि़रदौस ख़ान ने कहा कि हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी अखबारों की सोच में बुनियादी फर्क है, उर्दू भाषा की तरक्की उर्दू मातृभाषी लोगों व सरकार दोनों पर निर्भर है।
जदीद खबर, दिल्ली के संपादक मासूम मुरादाबादी ने कहा कि जबानों का कोई मजहब नहीं होता, मजहब को जबानों की जरुरत होती है। किसी भी भाषा की आत्मा उसकी लिपि होती है जबकि उर्दू भाषा की लिपि मर रही है इसे बचाने की जरूरत है। बरकतउल्ला विवि, भोपाल की डा. मरजिए आरिफ ने कहा की उर्दू पत्रकारिता में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। उन्होंने उर्दू पत्रकारिता का पाठ्यक्रम शुरु करने की आवश्यकता बताई। वरिष्ठ पत्रकार तहसीन मुनव्वर (दिल्ली) ने कहा की उर्दू अखबारों में प्रमुख समस्या संसाधनों भारी कमी है। उर्दू अखबारों में मालिक, संपादक, रिपोर्टर, सरकुलेशन मैनेजर व विज्ञापन व्यवस्थापक कई बार सब एक ही आदमी होता है। सहारा उर्दू रोजनामा (नई दिल्ली) के ब्यूरो चीफ असद रजा ने कहा कि हिंदी व उर्दू पत्रकारिता करने के लिए दोनों भाषाओं को जानना चाहिए। उर्दू अखबारों को अद्यतन तकनीकी के साथ साथ अद्यतन विपणन ( लेटेस्ट मार्केटिंग) को भी अपनाना चाहिए। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात हिंदी आलोचक डॉ. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि देश में शक्तिशाली लोगों को केवल अंग्रेजी ही पसंद है। हिंदी व उर्दू को ये लोग देखना नहीं चाहते और यही लोग दूसरे लोगों के बच्चों को मदरसे बुलाते हैं परंतु अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजते हैं।
संगोष्ठी के समापन सत्र में उर्दू पत्रकारिता शिक्षण की वर्तमान स्थिति और अपेक्षाएं विषय पर बोलते हुए मुख्य वक्ता प्रो.जेड यू हक (दिल्ली) ने उर्दू पत्रकारिता पर रोजगार की भाषा बनाए जाने के रास्ते में आने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उर्दू में प्रशिक्षित पत्रकारों की कमी है। इसके अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में उर्दू के गलत शब्दों के उच्चारण पर भी उन्होंने चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि उर्दू अखबारों की समस्या उसकी बिखरी हुई रीडरशिप है इसका समाधान कर इनका प्रसार बढाने की जरुरत है। मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में मासकम्युनिकेशन के रीडर एहतेशाम अहमद ने उर्दू अखबारों के आर्थिक बदहाली पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज उर्दू पत्रकारिता में रुचि रखने वालों की कमी नहीं बल्कि संसाधनों की समस्या अधिक है। उन्होंने अन्य बड़े मीडिया घरानों द्वारा उर्दू अखबार निकालने की वकालत की।कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि, रायपुर के डॉ शाहिद अली ने कहा कि देश में उर्दू पत्रकारिता के शिक्षण संस्थानों की कमी रही है अब इस दिशा में प्रयास हो रहे है जो सराहनीय है। इस सत्र में डा. श्रीकांत सिंह औरडा. रामजी त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने उर्दू में एक सक्षम न्यूज एजेंसी की स्थापना पर बल दिया और अंग्रेजियत से मुक्त होने की अपील की। उन्होंने घोषणा कि पत्रकारिता विवि में मास्टर कोर्स में वैकल्पिक विषय के रूप में उर्दू पत्रकारिता पढ़ाने का प्रस्ताव वे अपनी महापरिषद में रखेंगें। साथ ही उर्दू मीडिया संस्थानों को प्रशिक्षित करने के लिए वे सहयोग देने के लिए तैयार हैं। विवि मप्र मदरसा बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम बनाने और संचालित करने में मदद करेगा। सत्रों में आभार प्रदर्शन राघवेंद्र सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव एवं प्रो. आशीष जोशी ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार रेक्टर चैतन्य पुरुषोत्म अग्रवाल, आरिफ अजीज प्रो. एसके त्रिवेदी, दीपक शर्मा, शिवअनुराग पटैरया, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. माजिद हुसैन, मोहम्मद बिलाल, सौरभ मालवीय, लालबहादुर ओझा, डा. राखी तिवारी आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन और संयोजन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
आयोजन के मुख्य वक्ता प्रमुख उर्दू अखबार सियासत (हैदराबाद) के संपादक अमीर अली खान ने कहा कि उर्दू अखबार सबसे ज्यादा धर्म निरपेक्ष होते हैं। उर्दू पत्रकारिता का अपना एक रुतबा है। लोकिन उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या अच्छे अनुवादकों की कमी है। संगोष्ठी में स्वागत उदबोधन करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि इस संगोष्ठी का लक्ष्य उर्दू पत्रकारिता के बारे में एक समान कार्ययोजना का मसौदा तैयार करना है। उर्दू किसी तबके , लोगों की जबान नहीं बल्कि मुल्क की जबान है। मुल्क की तरक्की में उर्दू की महती भूमिका है। वरिष्ठ पत्रकार एवं सेकुलर कयादत के संपादक कारी मुहम्मद मियां मोहम्मद मजहरी (दिल्ली) ने कहा कि उर्दू पत्रकारिता गंगा-जमनी तहजीब की प्रतीक है।
प्रथम सत्र में उर्दू पत्रकारिता की समस्याएं और समाधान पर बोलते हुए दैनिक जागरण भोपाल के समाचार संपादक सर्वदमन पाठक ने कहा कि उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या पाठकों व संसाधनों की कमी है। उर्दू – हिंदी पत्रकारों में तो समन्वय है परंतु इन दोनों भाषायी अखबारों में समन्वय की भारी कमी है। आकाशवाणी भोपाल के सवांददाता शारिक नूर ने कहा कि एक समय में भोपाल की सरकारी जबान उर्दू थी व भोपाल उर्दू का गढ़ था। उर्दू सहाफत(पत्रकारिता) को बढ़ाना है तो उर्दू की स्कूली तालीम को बढ़ावा देना होगा। स्टार न्यूज एजेंसी, हिसार की संपादक सुश्री फि़रदौस ख़ान ने कहा कि हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी अखबारों की सोच में बुनियादी फर्क है, उर्दू भाषा की तरक्की उर्दू मातृभाषी लोगों व सरकार दोनों पर निर्भर है।
जदीद खबर, दिल्ली के संपादक मासूम मुरादाबादी ने कहा कि जबानों का कोई मजहब नहीं होता, मजहब को जबानों की जरुरत होती है। किसी भी भाषा की आत्मा उसकी लिपि होती है जबकि उर्दू भाषा की लिपि मर रही है इसे बचाने की जरूरत है। बरकतउल्ला विवि, भोपाल की डा. मरजिए आरिफ ने कहा की उर्दू पत्रकारिता में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। उन्होंने उर्दू पत्रकारिता का पाठ्यक्रम शुरु करने की आवश्यकता बताई। वरिष्ठ पत्रकार तहसीन मुनव्वर (दिल्ली) ने कहा की उर्दू अखबारों में प्रमुख समस्या संसाधनों भारी कमी है। उर्दू अखबारों में मालिक, संपादक, रिपोर्टर, सरकुलेशन मैनेजर व विज्ञापन व्यवस्थापक कई बार सब एक ही आदमी होता है। सहारा उर्दू रोजनामा (नई दिल्ली) के ब्यूरो चीफ असद रजा ने कहा कि हिंदी व उर्दू पत्रकारिता करने के लिए दोनों भाषाओं को जानना चाहिए। उर्दू अखबारों को अद्यतन तकनीकी के साथ साथ अद्यतन विपणन ( लेटेस्ट मार्केटिंग) को भी अपनाना चाहिए। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात हिंदी आलोचक डॉ. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि देश में शक्तिशाली लोगों को केवल अंग्रेजी ही पसंद है। हिंदी व उर्दू को ये लोग देखना नहीं चाहते और यही लोग दूसरे लोगों के बच्चों को मदरसे बुलाते हैं परंतु अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजते हैं।
संगोष्ठी के समापन सत्र में उर्दू पत्रकारिता शिक्षण की वर्तमान स्थिति और अपेक्षाएं विषय पर बोलते हुए मुख्य वक्ता प्रो.जेड यू हक (दिल्ली) ने उर्दू पत्रकारिता पर रोजगार की भाषा बनाए जाने के रास्ते में आने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उर्दू में प्रशिक्षित पत्रकारों की कमी है। इसके अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में उर्दू के गलत शब्दों के उच्चारण पर भी उन्होंने चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि उर्दू अखबारों की समस्या उसकी बिखरी हुई रीडरशिप है इसका समाधान कर इनका प्रसार बढाने की जरुरत है। मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में मासकम्युनिकेशन के रीडर एहतेशाम अहमद ने उर्दू अखबारों के आर्थिक बदहाली पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज उर्दू पत्रकारिता में रुचि रखने वालों की कमी नहीं बल्कि संसाधनों की समस्या अधिक है। उन्होंने अन्य बड़े मीडिया घरानों द्वारा उर्दू अखबार निकालने की वकालत की।कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि, रायपुर के डॉ शाहिद अली ने कहा कि देश में उर्दू पत्रकारिता के शिक्षण संस्थानों की कमी रही है अब इस दिशा में प्रयास हो रहे है जो सराहनीय है। इस सत्र में डा. श्रीकांत सिंह औरडा. रामजी त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने उर्दू में एक सक्षम न्यूज एजेंसी की स्थापना पर बल दिया और अंग्रेजियत से मुक्त होने की अपील की। उन्होंने घोषणा कि पत्रकारिता विवि में मास्टर कोर्स में वैकल्पिक विषय के रूप में उर्दू पत्रकारिता पढ़ाने का प्रस्ताव वे अपनी महापरिषद में रखेंगें। साथ ही उर्दू मीडिया संस्थानों को प्रशिक्षित करने के लिए वे सहयोग देने के लिए तैयार हैं। विवि मप्र मदरसा बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम बनाने और संचालित करने में मदद करेगा। सत्रों में आभार प्रदर्शन राघवेंद्र सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव एवं प्रो. आशीष जोशी ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार रेक्टर चैतन्य पुरुषोत्म अग्रवाल, आरिफ अजीज प्रो. एसके त्रिवेदी, दीपक शर्मा, शिवअनुराग पटैरया, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. माजिद हुसैन, मोहम्मद बिलाल, सौरभ मालवीय, लालबहादुर ओझा, डा. राखी तिवारी आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन और संयोजन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविधालय में उर्दू पत्रकारिता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविधालय, भोपाल में 22 जनवरी को उर्दू पत्रकारिता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। संगोष्ठी ‘उर्दू पत्रकारिताः चुनौतियां और अपेक्षाएं’ में उर्दू पत्रकारिता के सामने क्या चुनौतियां हैं? वह किस तरह, स्वयं को संभालकर आज के समय को संबोधित करते हुए जनाकांक्षाओं की पूर्ति कर सकती है, जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।
इस बारे में बात करते हुए, विश्वविधालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने बताया, “आजादी के आंदोलन से लेकर, भारत के नव-निर्माण में उर्दू के पत्रकारों एवं उर्दू पत्रकारिता ने अपना योगदान देकर एक बड़ा मुकाम बनाया है। आज, जबकि देश की तमाम भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता प्रगति कर रही है और अपने पाठक वर्ग का निरंतर विस्तार कर रही है। उर्दू पत्रकारिता इस दौड़ में पिछड़ती दिख रही है। नए जमाने की चुनौतियों और अपनी उपयोगिता के हिसाब से ही भाषाएं अपनी जगह बनाती हैं। ऐसे में, उर्दू पत्रकारिता के सामने क्या चुनौतियां हैं? वह किस तरह, स्वयं को संभालकर आज के समय को संबोधित करते हुए, जनाकांक्षाओं की पूर्ति कर सकती है। इन प्रश्नों पर संवाद बहुत प्रासंगिक है।”
संगोष्ठी में देश के जाने-माने और सीनियर उर्दू जर्नलिस्ट सहित कई पत्रकारिता शिक्षक शामिल होने जा रहे हैं। इस संगोष्ठी को तीन भागों में बांटा गया है। पहले सत्र में, ‘उर्दू पत्रकारिता : चुनौतियां और अपेक्षाएं’। दूसरे सत्र में, ‘उर्दू पत्रकारिता की समस्याएं और समाधान’ और तीसरे सत्र में, ‘उर्दू पत्रकारिता शिक्षण की वर्तमान स्थिति और
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इस बारे में बात करते हुए, विश्वविधालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने बताया, “आजादी के आंदोलन से लेकर, भारत के नव-निर्माण में उर्दू के पत्रकारों एवं उर्दू पत्रकारिता ने अपना योगदान देकर एक बड़ा मुकाम बनाया है। आज, जबकि देश की तमाम भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता प्रगति कर रही है और अपने पाठक वर्ग का निरंतर विस्तार कर रही है। उर्दू पत्रकारिता इस दौड़ में पिछड़ती दिख रही है। नए जमाने की चुनौतियों और अपनी उपयोगिता के हिसाब से ही भाषाएं अपनी जगह बनाती हैं। ऐसे में, उर्दू पत्रकारिता के सामने क्या चुनौतियां हैं? वह किस तरह, स्वयं को संभालकर आज के समय को संबोधित करते हुए, जनाकांक्षाओं की पूर्ति कर सकती है। इन प्रश्नों पर संवाद बहुत प्रासंगिक है।”
संगोष्ठी में देश के जाने-माने और सीनियर उर्दू जर्नलिस्ट सहित कई पत्रकारिता शिक्षक शामिल होने जा रहे हैं। इस संगोष्ठी को तीन भागों में बांटा गया है। पहले सत्र में, ‘उर्दू पत्रकारिता : चुनौतियां और अपेक्षाएं’। दूसरे सत्र में, ‘उर्दू पत्रकारिता की समस्याएं और समाधान’ और तीसरे सत्र में, ‘उर्दू पत्रकारिता शिक्षण की वर्तमान स्थिति और
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पत्रकारिता विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय प्रेस दिवस का आयोजन
भोपाल, 16 नवंबर,2010।माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में 16 नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्यअतिथि मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष कैलाशचंद्र पंत तथा मुख्यवक्ता वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने की।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने कहा कि पत्रकारिता के सामने आज कई तरह की चुनौतियां हैं जिनसे युवा पत्रकारों को ही निपटकर रास्ता खोजना होगा। पत्रकारिता में मूल्यबोध की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संवेदनशीलता और मूल्यों की रक्षा से ही लेखन को सार्थकता मिलती है।
साहित्यकार एवं चिंतक कैलाशचंद्र पंत ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ पत्रकारिता बहुत सक्षम तरीके से लड़ाई लड़ रही है। सामान्य सा पत्रकार भी अगर चाह ले तो सत्ता को सीधा संदेश दे सकता है। भ्रष्टाचार की कथाएं प्रायः पत्रकार ही सामने लेकर आते हैं। इससे समाज में पत्रकारिता के प्रति भरोसा जगता है, आरोपियों की नींद हराम होती है। उन्होंने कहा यह विश्वास हमने सालों की तपस्या से अर्जित किया है, उसे बचाए रखने की जरूरत है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने प्रेस कौंसिल को अधिकार संपन्न बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि मीडिया के सामने आज चुनौतियां किसी भी समय से ज्यादा है। मीडिया में आचार संहिता की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि इससे ही जनविश्वास और शुचिता की रक्षा हो सकेगी। प्रो. कुठियाला ने कहा कि विश्वविद्यालय शिक्षाविदों, मीडिया कर्मियों और संचार क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ मिलकर आचार संहिता बनाने का काम करेगा और उसे मीडिया के विचारार्थ प्रस्तुत करेगा। संचालन विश्वविद्यालय के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी राघवेन्द्र सिंह ने तथा आभार प्रदर्शन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर वर्किग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा, रेक्टर प्रो. सी.पी. अग्रवाल, रजिस्ट्रार एस.के. त्रिवेदी, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, सौरभ मालवीय, डा. अविनाश वाजपेयी, डॉ. मोनिका वर्मा, डा. आरती सारंग, जया सुरजानी, लालबहादुर ओझा प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने कहा कि पत्रकारिता के सामने आज कई तरह की चुनौतियां हैं जिनसे युवा पत्रकारों को ही निपटकर रास्ता खोजना होगा। पत्रकारिता में मूल्यबोध की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संवेदनशीलता और मूल्यों की रक्षा से ही लेखन को सार्थकता मिलती है।
साहित्यकार एवं चिंतक कैलाशचंद्र पंत ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ पत्रकारिता बहुत सक्षम तरीके से लड़ाई लड़ रही है। सामान्य सा पत्रकार भी अगर चाह ले तो सत्ता को सीधा संदेश दे सकता है। भ्रष्टाचार की कथाएं प्रायः पत्रकार ही सामने लेकर आते हैं। इससे समाज में पत्रकारिता के प्रति भरोसा जगता है, आरोपियों की नींद हराम होती है। उन्होंने कहा यह विश्वास हमने सालों की तपस्या से अर्जित किया है, उसे बचाए रखने की जरूरत है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने प्रेस कौंसिल को अधिकार संपन्न बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि मीडिया के सामने आज चुनौतियां किसी भी समय से ज्यादा है। मीडिया में आचार संहिता की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि इससे ही जनविश्वास और शुचिता की रक्षा हो सकेगी। प्रो. कुठियाला ने कहा कि विश्वविद्यालय शिक्षाविदों, मीडिया कर्मियों और संचार क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ मिलकर आचार संहिता बनाने का काम करेगा और उसे मीडिया के विचारार्थ प्रस्तुत करेगा। संचालन विश्वविद्यालय के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी राघवेन्द्र सिंह ने तथा आभार प्रदर्शन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर वर्किग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा, रेक्टर प्रो. सी.पी. अग्रवाल, रजिस्ट्रार एस.के. त्रिवेदी, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, सौरभ मालवीय, डा. अविनाश वाजपेयी, डॉ. मोनिका वर्मा, डा. आरती सारंग, जया सुरजानी, लालबहादुर ओझा प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
उर्दू पत्रकारिता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
भोपाल,22 जनवरी, 2010। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ बेग का कहना है कि उर्दू अपने घर में ही बेगानी हो चुकी है। सियासत ने इन सालों में सिर्फ देश को तोड़ने का काम किया है। अब भारतीय भाषाओं का काम है कि वे देश को जोड़ने का काम करें। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में उर्दू पत्रकारिताः चुनौतियां और अपेक्षाएं विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ सत्र में मुख्यअतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। उनका कहना था कि देश को जोड़ने वाले सूत्रों की तलाश करनी पड़ेगी, भाषाई पत्रकारिता इसमें सबसे खास भूमिका निभा सकती है।
आयोजन के मुख्य वक्ता प्रमुख उर्दू अखबार सियासत (हैदराबाद) के संपादक अमीर अली खान ने कहा कि उर्दू अखबार सबसे ज्यादा धर्म निरपेक्ष होते हैं। उर्दू पत्रकारिता का अपना एक रुतबा है। लोकिन उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या अच्छे अनुवादकों की कमी है। संगोष्ठी में स्वागत उदबोधन करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि इस संगोष्ठी का लक्ष्य उर्दू पत्रकारिता के बारे में एक समान कार्ययोजना का मसौदा तैयार करना है। उर्दू किसी तबके , लोगों की जबान नहीं बल्कि मुल्क की जबान है। मुल्क की तरक्की में उर्दू की महती भूमिका है। वरिष्ठ पत्रकार एवं सेकुलर कयादत के संपादक कारी मुहम्मद मियां मोहम्मद मजहरी (दिल्ली) ने कहा कि उर्दू पत्रकारिता गंगा-जमनी तहजीब की प्रतीक है।
प्रथम सत्र में उर्दू पत्रकारिता की समस्याएं और समाधान पर बोलते हुए दैनिक जागरण भोपाल के समाचार संपादक सर्वदमन पाठक ने कहा कि उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या पाठकों व संसाधनों की कमी है। उर्दू – हिंदी पत्रकारों में तो समन्वय है परंतु इन दोनों भाषायी अखबारों में समन्वय की भारी कमी है। आकाशवाणी भोपाल के सवांददाता शारिक नूर ने कहा कि एक समय में भोपाल की सरकारी जबान उर्दू थी व भोपाल उर्दू का गढ़ था। उर्दू सहाफत(पत्रकारिता) को बढ़ाना है तो उर्दू की स्कूली तालीम को बढ़ावा देना होगा। स्टार न्यूज एजेंसी, हिसार की संपादक सुश्री फि़रदौस ख़ान ने कहा कि हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी अखबारों की सोच में बुनियादी फर्क है, उर्दू भाषा की तरक्की उर्दू मातृभाषी लोगों व सरकार दोनों पर निर्भर है।
जदीद खबर, दिल्ली के संपादक मासूम मुरादाबादी ने कहा कि जबानों का कोई मजहब नहीं होता, मजहब को जबानों की जरुरत होती है। किसी भी भाषा की आत्मा उसकी लिपि होती है जबकि उर्दू भाषा की लिपि मर रही है इसे बचाने की जरूरत है। बरकतउल्ला विवि, भोपाल की डा. मरजिए आरिफ ने कहा की उर्दू पत्रकारिता में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। उन्होंने उर्दू पत्रकारिता का पाठ्यक्रम शुरु करने की आवश्यकता बताई। वरिष्ठ पत्रकार तहसीन मुनव्वर (दिल्ली) ने कहा की उर्दू अखबारों में प्रमुख समस्या संसाधनों भारी कमी है। उर्दू अखबारों में मालिक, संपादक, रिपोर्टर, सरकुलेशन मैनेजर व विज्ञापन व्यवस्थापक कई बार सब एक ही आदमी होता है। सहारा उर्दू रोजनामा (नई दिल्ली) के ब्यूरो चीफ असद रजा ने कहा कि हिंदी व उर्दू पत्रकारिता करने के लिए दोनों भाषाओं को जानना चाहिए। उर्दू अखबारों को अद्यतन तकनीकी के साथ साथ अद्यतन विपणन ( लेटेस्ट मार्केटिंग) को भी अपनाना चाहिए। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात हिंदी आलोचक डॉ. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि देश में शक्तिशाली लोगों को केवल अंग्रेजी ही पसंद है। हिंदी व उर्दू को ये लोग देखना नहीं चाहते और यही लोग दूसरे लोगों के बच्चों को मदरसे बुलाते हैं परंतु अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजते हैं।
संगोष्ठी के समापन सत्र में उर्दू पत्रकारिता शिक्षण की वर्तमान स्थिति और अपेक्षाएं विषय पर बोलते हुए मुख्य वक्ता प्रो.जेड यू हक (दिल्ली) ने उर्दू पत्रकारिता पर रोजगार की भाषा बनाए जाने के रास्ते में आने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उर्दू में प्रशिक्षित पत्रकारों की कमी है। इसके अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में उर्दू के गलत शब्दों के उच्चारण पर भी उन्होंने चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि उर्दू अखबारों की समस्या उसकी बिखरी हुई रीडरशिप है इसका समाधान कर इनका प्रसार बढाने की जरुरत है। मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में मासकम्युनिकेशन के रीडर एहतेशाम अहमद ने उर्दू अखबारों के आर्थिक बदहाली पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज उर्दू पत्रकारिता में रुचि रखने वालों की कमी नहीं बल्कि संसाधनों की समस्या अधिक है। उन्होंने अन्य बड़े मीडिया घरानों द्वारा उर्दू अखबार निकालने की वकालत की।कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि, रायपुर के डॉ शाहिद अली ने कहा कि देश में उर्दू पत्रकारिता के शिक्षण संस्थानों की कमी रही है अब इस दिशा में प्रयास हो रहे है जो सराहनीय है। इस सत्र में डा. श्रीकांत सिंह औरडा. रामजी त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने उर्दू में एक सक्षम न्यूज एजेंसी की स्थापना पर बल दिया और अंग्रेजियत से मुक्त होने की अपील की। उन्होंने घोषणा कि पत्रकारिता विवि में मास्टर कोर्स में वैकल्पिक विषय के रूप में उर्दू पत्रकारिता पढ़ाने का प्रस्ताव वे अपनी महापरिषद में रखेंगें। साथ ही उर्दू मीडिया संस्थानों को प्रशिक्षित करने के लिए वे सहयोग देने के लिए तैयार हैं। विवि मप्र मदरसा बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम बनाने और संचालित करने में मदद करेगा। सत्रों में आभार प्रदर्शन राघवेंद्र सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव एवं प्रो. आशीष जोशी ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार रेक्टर चैतन्य पुरुषोत्म अग्रवाल, आरिफ अजीज प्रो. एसके त्रिवेदी, दीपक शर्मा, शिवअनुराग पटैरया, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. माजिद हुसैन, मोहम्मद बिलाल, सौरभ मालवीय, लालबहादुर ओझा, डा. राखी तिवारी आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन और संयोजन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
आयोजन के मुख्य वक्ता प्रमुख उर्दू अखबार सियासत (हैदराबाद) के संपादक अमीर अली खान ने कहा कि उर्दू अखबार सबसे ज्यादा धर्म निरपेक्ष होते हैं। उर्दू पत्रकारिता का अपना एक रुतबा है। लोकिन उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या अच्छे अनुवादकों की कमी है। संगोष्ठी में स्वागत उदबोधन करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि इस संगोष्ठी का लक्ष्य उर्दू पत्रकारिता के बारे में एक समान कार्ययोजना का मसौदा तैयार करना है। उर्दू किसी तबके , लोगों की जबान नहीं बल्कि मुल्क की जबान है। मुल्क की तरक्की में उर्दू की महती भूमिका है। वरिष्ठ पत्रकार एवं सेकुलर कयादत के संपादक कारी मुहम्मद मियां मोहम्मद मजहरी (दिल्ली) ने कहा कि उर्दू पत्रकारिता गंगा-जमनी तहजीब की प्रतीक है।
प्रथम सत्र में उर्दू पत्रकारिता की समस्याएं और समाधान पर बोलते हुए दैनिक जागरण भोपाल के समाचार संपादक सर्वदमन पाठक ने कहा कि उर्दू अखबारों की प्रमुख समस्या पाठकों व संसाधनों की कमी है। उर्दू – हिंदी पत्रकारों में तो समन्वय है परंतु इन दोनों भाषायी अखबारों में समन्वय की भारी कमी है। आकाशवाणी भोपाल के सवांददाता शारिक नूर ने कहा कि एक समय में भोपाल की सरकारी जबान उर्दू थी व भोपाल उर्दू का गढ़ था। उर्दू सहाफत(पत्रकारिता) को बढ़ाना है तो उर्दू की स्कूली तालीम को बढ़ावा देना होगा। स्टार न्यूज एजेंसी, हिसार की संपादक सुश्री फि़रदौस ख़ान ने कहा कि हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी अखबारों की सोच में बुनियादी फर्क है, उर्दू भाषा की तरक्की उर्दू मातृभाषी लोगों व सरकार दोनों पर निर्भर है।
जदीद खबर, दिल्ली के संपादक मासूम मुरादाबादी ने कहा कि जबानों का कोई मजहब नहीं होता, मजहब को जबानों की जरुरत होती है। किसी भी भाषा की आत्मा उसकी लिपि होती है जबकि उर्दू भाषा की लिपि मर रही है इसे बचाने की जरूरत है। बरकतउल्ला विवि, भोपाल की डा. मरजिए आरिफ ने कहा की उर्दू पत्रकारिता में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। उन्होंने उर्दू पत्रकारिता का पाठ्यक्रम शुरु करने की आवश्यकता बताई। वरिष्ठ पत्रकार तहसीन मुनव्वर (दिल्ली) ने कहा की उर्दू अखबारों में प्रमुख समस्या संसाधनों भारी कमी है। उर्दू अखबारों में मालिक, संपादक, रिपोर्टर, सरकुलेशन मैनेजर व विज्ञापन व्यवस्थापक कई बार सब एक ही आदमी होता है। सहारा उर्दू रोजनामा (नई दिल्ली) के ब्यूरो चीफ असद रजा ने कहा कि हिंदी व उर्दू पत्रकारिता करने के लिए दोनों भाषाओं को जानना चाहिए। उर्दू अखबारों को अद्यतन तकनीकी के साथ साथ अद्यतन विपणन ( लेटेस्ट मार्केटिंग) को भी अपनाना चाहिए। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात हिंदी आलोचक डॉ. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि देश में शक्तिशाली लोगों को केवल अंग्रेजी ही पसंद है। हिंदी व उर्दू को ये लोग देखना नहीं चाहते और यही लोग दूसरे लोगों के बच्चों को मदरसे बुलाते हैं परंतु अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजते हैं।
संगोष्ठी के समापन सत्र में उर्दू पत्रकारिता शिक्षण की वर्तमान स्थिति और अपेक्षाएं विषय पर बोलते हुए मुख्य वक्ता प्रो.जेड यू हक (दिल्ली) ने उर्दू पत्रकारिता पर रोजगार की भाषा बनाए जाने के रास्ते में आने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उर्दू में प्रशिक्षित पत्रकारों की कमी है। इसके अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में उर्दू के गलत शब्दों के उच्चारण पर भी उन्होंने चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि उर्दू अखबारों की समस्या उसकी बिखरी हुई रीडरशिप है इसका समाधान कर इनका प्रसार बढाने की जरुरत है। मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में मासकम्युनिकेशन के रीडर एहतेशाम अहमद ने उर्दू अखबारों के आर्थिक बदहाली पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज उर्दू पत्रकारिता में रुचि रखने वालों की कमी नहीं बल्कि संसाधनों की समस्या अधिक है। उन्होंने अन्य बड़े मीडिया घरानों द्वारा उर्दू अखबार निकालने की वकालत की।कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि, रायपुर के डॉ शाहिद अली ने कहा कि देश में उर्दू पत्रकारिता के शिक्षण संस्थानों की कमी रही है अब इस दिशा में प्रयास हो रहे है जो सराहनीय है। इस सत्र में डा. श्रीकांत सिंह औरडा. रामजी त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने उर्दू में एक सक्षम न्यूज एजेंसी की स्थापना पर बल दिया और अंग्रेजियत से मुक्त होने की अपील की। उन्होंने घोषणा कि पत्रकारिता विवि में मास्टर कोर्स में वैकल्पिक विषय के रूप में उर्दू पत्रकारिता पढ़ाने का प्रस्ताव वे अपनी महापरिषद में रखेंगें। साथ ही उर्दू मीडिया संस्थानों को प्रशिक्षित करने के लिए वे सहयोग देने के लिए तैयार हैं। विवि मप्र मदरसा बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम बनाने और संचालित करने में मदद करेगा। सत्रों में आभार प्रदर्शन राघवेंद्र सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव एवं प्रो. आशीष जोशी ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार रेक्टर चैतन्य पुरुषोत्म अग्रवाल, आरिफ अजीज प्रो. एसके त्रिवेदी, दीपक शर्मा, शिवअनुराग पटैरया, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. माजिद हुसैन, मोहम्मद बिलाल, सौरभ मालवीय, लालबहादुर ओझा, डा. राखी तिवारी आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन और संयोजन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
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