गुरुवार, 20 जनवरी 2011

य़पीएम साहब ... कब तक बंशी बजाते रहेंगे ...?


पीएम साहब इस्‍तीफा दे दीजिए, कब तक बंशी बजाते रहेंगे

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मदन विदेश में जमा रकम वालों का नाम बताना विदेशी बैंकों के साथ हुये एकरारनामें का उल्लंघन है। विदेशी बैंकों से प्राप्त सूचना का उपयोग सिर्फ़ टैक्स वसूलने के लिये ही किया जा सकता है। यह बयान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का है। एक दूसरा ब्यान भी दिया है, महंगाई कब कम होगी नहीं बता सकता, मैं ज्योतिषी नहीं हूं। यह पढ़कर लगा कि प्रधानमंत्री गहरी हताशा से गुजर रहे हैं। भ्रष्ट्राचार पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं। मैंने उनके ई-मेल पर एक पत्र लिखकर कुछ सवाल उठाते हुये, बड़े सम्मान के साथ बताया कि विदेशी बैंकों के साथ, काला धन जमाकर्ताओं के नाम न बताने की शर्त अर्थहीन है। कर वसूलने की प्रक्रिया के तहत संबधित विभाग को नोटिस निर्गत करना होगा तथा उसे विभाग के डाक रजिस्टर में दर्ज भी करना होगा, इसके अलावा जिस व्यक्ति से कर वसूलना है उसे स्वंय या अधिवक्ता के माध्यम से, अगर कोई है तो, दर्ज करने की अनुमति भी देनी होगी।
मतलब साफ़ है की किसी न किसी स्तर पर उक्त ब्लैक मनी वाले का नाम सामने आयेगा ही, फ़िर विदेशी बैंक से हुये नाम न खोलने वाली शर्त का तो कोई औचित्य ही नहीं रह जाता। प्रधानमंत्री जी को मैंने यह भी लिखा है कि कोई भी व्यक्ति थोडी संजीदगी के साथ भ्रष्ट साधनों का उपयोग करके टैक्स विभाग या डाक विभाग से जानकारी हासिल कर सकता है। सबसे मजेदार पहलू जो प्रधानमंत्री के बयान का है, वह है विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर टैक्स वसूलने की। टैक्स सिर्फ़ ज्ञात सूत्रों से हुई आय पर ही लिया जा सकता है। अगर किसी ने डकैती करके आय अर्जित की है तो वह जब्‍त की जायेगी, न की उसपर टैक्स वसूला जायेगा।
महंगाई पर काबू पाने में असमर्थता प्रकट करना उनकी निराशा को दर्शाता है। मैं पहले भी उन्हें त्यागपत्र देने की सलाह दे चुका हूं, परिस्थितियां भी यही संकेत कर रही हैं। आखिर कब तक देश निरो की बांसुरी सुनेगा।
नीचे समाचार है और उसके बाद मेरे भेजे गये ई-मेल की प्रति। आप सबको अगर मेरी बात ठीक लगे तो खुद भी एक ई-मेल भेजें, शायद पीएम को सदबुद्धि आ जाये और भ्रष्टाचारियों के खाते का राज खोल दें।

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