व्यंग्य/महंगाई डायन के नाम एक खुला खत
गिरीश पंकज

हे रहस्यलोक की विश्व सुंदरी, हम लोगों के दर्द को तुझसे बेहतर भला और कौन समझ सकता है। सरकार भी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए। हर कोई सरकार को कोस रहा है। नेताओं को गरिया रहा है। बेचारे अपना मुँह छिपाए फिर रहे हैं। ये घोटालेवीर चैन से घोटाले भी नहीं कर पा रहे हैं। जब देखो जनता महंगाई-महंगाई चिल्लाती रहती है। कुरसी का जीना हराम हो गया है। इसलिए वह भी तुझे कोस रही है। हे सुमुखी, (पाठको, ऐसा कहना पड़ता है वरना और अधिक नाराज हो गई तो दिक्कत में भी परेशानी वाली बात हो जाएगी…) तेरे कारण समाज में अब वर्गभेद पनपने लगा है। लोग अपनी अमीरी का खुले आम प्रदर्शन करके दूसरे को जला रहे हैं। लोग प्याज खरीदते हैं और उसे अपने पारदर्शी झोले में रख कर लाते हैं। पहले मोहल्ले में दो-तीन चक्कर लगाते हैं फिर घर के भीतर प्रवेश करते हैं ताकि वे रौब गाँठ सकें कि देखो, इस कमरतोड़ महंगाई के दौर में भी हम प्याज खा रहे हैं। रोज प्याज खरीदने वाले की सामाजिक हैसियत बढ़ गई है। लोग समझ जाते हैं, कि अगले के पास कोई गढ़ा खजाना हाथ लगा है, तभी तो प्याज खरीदता रहता है। लोग एक-दूसरे का जलाने-कुढ़ाने का काम करने लगे हैं और यह सब तेरे कारण हो रहा है।
हे बदनउघारू हीरोइन की सगी बहन और महान विषकन्या, हम समझ रहे हैं, कि तू किनके इशारे पर खेल कर रही है। उन लोगों सेभी इस देश की जनता निपटेगी, मगर उसके लिए अभी समय नहीं आया है। राजनीति कलमुँही ऐसा ही करती है। जब आम चुनाव से बहुत दूर रहती है तब जनता की छाती पर सवार हो जाती है। तरह-तरह के अत्याचार करती है। तेरे साथ रोमांस जारी रहता है। यानी महंगाई बढ़ती है तो बढऩे दो। पुलिस अत्याचार होता है तो होने दो। घोटाले होते रहते हैं। सकल करम होते हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव की पावन बेला आती है, लोकलुभावन नारे सामने आने लगते हैं। महंगाई कम होने लगती है। तू जालिम कहीं जा कर छिप जाती है। इस कुरसी और तेरे खेल बड़े निराले हैं। ये सब खेल चलते रहेंगे, मगर तुझसे गुजारिश है कि हम पर रहम कर, बहुत हो गया। अब तो कहीं और जा कर मुँह काला कर। हमारी बात का बुरा मत मान। जब दिल दुखी रहता है तो जीभ बहकने लगती है।अगर हमने तुझे ऐसा-वैसा कुछ कह दिया है तो तू नाराज होकर और निर्वसन नृत्य करने लगना। तू अब पलायन कर जा। वरना इस देश में लूट-पाट की नौबत आ जायेगी। चोर लोग प्याज की बोरियाँ चुराने लगे हैं। दहेज में प्याज का ट्रक माँगा जा रहा है। तो हे महँगाई माई, तुझे डायन कहना ठीक नहीं, इसलिए हे महंगाईदेवी तुझसे करबद्ध प्रार्थना है कि अब तू किसी पतली गली से निकल और हमें चैन से जीने-खाने दे। एक घर छोड़ दे, तू ये देश छोड़ दे। एक बार तो हमारा कहा मान ले।
विनीत-
हम सब महंगाई-पीड़ित आमजन/
गिरीशपंकज
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें