गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

अनामी रिपोर्ट/ 5




 





अनामी शरण बबल
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ग्रामीणों के भरोसे चल रहा है एक रेलवे स्टेशन


  सीकर राजस्थान के रशीदपुरा खोरी रेलवे स्टेशन भारत का सबसे अनोखा स्टेशन है। रेलवे की बजाय  गांव वाले ही इसकी देखभाल करते है। यहां रेलवे का कोई भी वेतनधारी अधिकारी या कर्मचारी नहीं है, फिर भी यहां रोजाना दर्जनों ट्रेनें रुकती हैं।. यात्रियों के लिए टिकट भी कटती हैं और पैसा भी रेलवे के  खाते में जमा भी होता है।. जयपुर-चूरू रास्ते में सीकर सके बाद रशीदपुरा खोरी स्टेशन आता है । जिसकी.तमाम संचालन व्यवस्था सुरक्षा का जिम्मा गांव वालों के हवाले है । एक सौ से ज्यादा ग्रामीम ही शिफ्ट में स्टेशन मास्टर से लेकर टिकट चेकर बुकिंग क्लर्क और प्लेटफॉर्म की सुरक्षा करते है। घाटे के चलते 2005 में स्टेशन को बंद कर दिया गया था। .जिससे आस-पास के  करीब बीस हजार ग्रामीणों के सामने आवा गमन का संकट खड़ा हो गया। कई साल तक रेलवे के दफ्तरों में दौड़-धूप के 2009 में स्टेशन को दोबारा शुरू करने के लिए  रेलवे ने तीन लाख रुपए की मासिक टिकट ब्रिकी की गारंटी मांगी।.रेलवे के टार्गेट को पूरा करवे के लिए एक एक आदमी ने एक के बदले 10-10 टिकट खरीदा। पिछले छह साल से यह अनूठा रेलवे स्टेशन ग्रामीणों के भरोसे चल रहा है.। हर माह इसकी कमाई भी अब पांच लाख से ज्यादा हो गयी है। ग्रामीणों के जज्बे को सलाम करते हुए रेलवे ने  भी अब कई स्पेशल सवारी गाडी को रशीदपुर खोरी में  हॉल्ट दे दिया है।.


..और अपने ख़र्चे पर बनाया  स्टेशन
देश की राजधानी दिल्ली के बाहरी दिल्ली इलाके के गांव ताजनगर के लोगों के ख़र्च पर बने रेलवे हॉल्ट पर अब एक दर्जन से अधिक ट्रेनें रुकने लगी है।  ताजनगर रेलवे हॉल्ट पर  रोज़ाना दिल्ली रेवाडी की तरफ से आने जाने वाली 14  रेल रूकती है। यहां पर रेलवे स्टेशन बनाने की 25 साल से लगातार मांग को जब रेलवे प्रशासन  ने नकार दिया तो गांववालों ने एक कमेटी बनाई और ख़ुद अपने ही खर्चो पर स्टेशन बनाने में लग गए। यह काम पांच साल पहले शुरू हुआ, मगर दो साल तो रेलवे से अनुमति लेने में और बाक़ी के तीन साल कागज़ी कार्यवाहीमें लग गए। बाद में ग्रामीणों ने पैसा इकट्ठा कर स्टेशन का निर्माण शुरू कर दिया। लोगों के जज्बे को देखकर भारतीय रेल ने भी स्टेशन के लिए जगह और तकनीकी मदद शुरू कर दी। हज़ार फ़ुट लंबे और 18 फ़ुट चौड़े इस नवनिर्मित रेलवे हाल्ट पर ट्रेनों का ठहराव शुरू होने से आसपास के दर्जनों गांव  के हजारों लोगों को दिल्ली और रेवाड़ी की तरफ़ आना जाना काफ़ी सुगम हो गया।


 

खंडवा रेलवे स्टेशन पार्किंग का हाल

सौ चाबियों से खुलता है एक ताला


 क्या किसी ताले के बारे में सना है  जिसकी सौ से अधिक चाबियां हो और रोजाना इसे  दो सौ से अधिक बार बंद या खोला जाता हो। हम आपको। इस  इकलौते ताले और इसके सौ से अधिक मालिकों के बारे में बता रहे है। जो अपनी -अपनी चाबियां अपने पास ही रखते है। मध्यप्रदेश के खंडवा रेलवे जंकशन पर  जहाँ  रेलवे कर्मचारियों  के लिए बन पार्किंग स्थल के गेट पर दुनिया का सबसे अनोखा ताला  लगा है. जो देखने में तो आम तालो की तरह ही है। फिर भी इसके सैकड़ो चाभीवाले मालिक है। जिससे यह ताला दुनिया क सबसे अनोखे ताल बना गया है। जंक्शन के बाहरी परिसर में दो पहियां वाहन की पार्किंग है। कुछ माह पूर्व तक इस पार्किंग का उपयोग यात्री और रेलवे कर्मचारी मिलकर करते थे। लेकिन इस पार्किंग से कई वाहन चोरी होने लगे।  रेलवे कर्मचारियों की शिफ्ट अनुसार अलग-अलग समय में ड्युटी होती है। तब  सभी रेल कर्मियों ने  इस ताले की चाबी बनवा कर अपने  अपने पास रखा। बस फिर क्या था । इस ताले की सौ से अधिक चाबी बनवा कर सभी रेल कर्मियों ने आपस में रख कर कलह खत्म किया।



बस्तर वन्य क्षेत्र में थी एक"जंगल की रेल"

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छतीसगढ का वनक्षेत्र आज साधन सुविधा और रेलवे मार्गविहीन इलाका है।, मगर करीब सौ साल पहले  प्रथम विश्व युद्ध के समय अंग्रेजी राज में आदिवासी बहुल अंचल बस्तर में  पहली वन ट्राम सेवा थी। उत्तरी बस्तर से प़डोसी प्रांत ओडिशा तक विस्तारित इस ट्राम सेवा को बस्तर के आदिवासी "जंगल की रेल" भी कहा करते  थे। करीब 125 किलोमीटर लंबी ट्राम सेवा से ज्यादातर लक़डी की ढुलाई होती थी, पर दो डिब्बा यात्रियों के लिए भी था।  दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों को जब इराक से तेल की मंगवाने जरूरत प़डी तो  उन्होंने इस मार्ग की पटरियों,  लोकोयार्ड और अन्य रेलवे के सामान को उखाड़ उखाडकर इराक की राजधानी बगदाद भेज दिया। अभी हालत यह है कि बस्तर के सात में से पांच जिले रेल सुविधा से वंचित हैं। लगभग 100 साल पुराने रेल मार्ग को फिर शुरू करने की मांग 50 साल से उठ रही है, मगरघाटे का सौदा मानकर रेलवे इसपर विचार तक नहीं करती

 

1500 युवा अविवाहित बेचारों की






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मराठवाडा में सूखे के चलते किसानों के हाल बेहाल हैं। सूखे की वजह से इलाके कोई भी लड़की या लड़के की शादी नहीं हो पा रही है। उस्मानाबाद जिले के कलंब तालुका में ऐसा ही एक गांव है खामसवाड़ी। जहां करीब 200  कुंवारे लड़के और 150 से भी अधिक युवतियां शादी के लिए रिश्ते की बाट जोह रहे हैं। उनकी उम्र बढ़ती ही जा रही है, लेकिन ब्याह नहीं हो पा रहा है।

खामसवाड़ी गांव के नागरिकों का कहना है कि सिर्फ हमारे गांव में 25 से लेकर 35 साल उम्र के 200 कुंवारे हैं, जो स्नातक हैं। इतने पढ़े-लिखे होने के बावजूद इस गांव में कोई अपनी बेटी नहीं ब्याहना चाहता। इनका कहना है कि केवल खामसवाड़ी ही नहीं आसपास के गांवों में भी करीब 1500 युवा कुंवारे हैं जिनकी शादी नहीं हो रही है।


 एक गांव जहां है सैकड़ों जुड़वां
देश  के लाखों गांवों की तरह  यूपी के इलाहाबाद के समीप स्थित मोहम्मदपुर उमरी गांव भी एक अभावग्रस्त गांव है। . छह हजार की आबादी वाले इस गांव में दूसरे ढेरों गांवों की तरह न तो कोई स्कूल है, न सड़क। लेकिन एक सौ से भी अधिक जुड़वा संतान  होने  की खासियत ने इस गांव की महिमा बढा दी है। जुडवा गांव के रूप में इसकी चर्चा होने लगी है। देश विदेश के कई अखबारों ने जुड़वा संतानों की परम्परा पर लगातार कई रोचक रिपोर्ट प्रकाशित किए है।  पिछले दस वर्षों के दौरान गांव में सौ से ज्यादा जुड़वे बच्चे पैदा हुए।. पास के गांव धूमनगंज के बाशिंदों का कहना है कि अगर मोहम्मदपुर उमरी में अस्पताल होता तो यह संख्या शायद दो सौ से भी अधिक हो सकती थी। आस पास के इलाके में इस गांव को लेकर उत्कंठा है तो डॉक्टरों में हैरानी,भी। इसके बावजूद इस बाबत कोई जांच परख नहीं की जा रही है।






















संस्कृत ही जीवन है

ऐसा गांव जहां हर कोई संस्कृत में बोलता हैं   अंग्रेजी की चमक दमक और धमक से संस्कृत तो दूर आज भारत में राष्ट्र भाषा हिंदी के सामने भी पहचान का संकट से हैं।  वही कर्नाटक के शिमोगा शहर से लगभग दस किलोमीटर दूर किमी दूर मुत्तुरु और होसाहल्ली, तुंग नदी के किनारे बसे इन गाँवों में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है। यहां लगभग 90 प्रतिशत लोग संस्कृत में ही बात करते हैं। भाषा पर किसी धर्म और समाज का अधिकार नहीं होता तभी तो गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवार के लोग भी संस्कृत उतनी ही सहजता से बोलते हैं जैसे दूसरे लोग।.ज्यादातर लोग और भी भाषा जानते हैं, मगर संस्कृत ही इनकी आत्मा में है। सबसे सहजता के साथ ये लोग संस्कृत में ही वार्तालाप करते है. देश विदेश के ज्यादातर संस्कृत के विद्वानों की नजर इस गांव के प्रकांड विद्वान बालकों पर है। 




केवल टमाटर से अरबों  की कमाई
यूपी का एक गांव सलारपुर खालसा अपनी मेहनत लगन सामूहिक एकता और मिलीभगत के कारण पूरे देश में पहचाना जाता है। अमरोहा जनपद के इस गांव का नाम है सलारपुर खालसा. जोया विकास खंड  क्षेत्र का एक छोटा सा गांव है। इस गांव की जनसंख्या 3500 है। इस गांव को   टमाटर ने इतना मशहूर बना दिया है। इस गांव में टमाटर की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। देश का शायद ही कोई कोना होगा, जहां पर सलारपुर खालसा की जमीन पर पैदा हुआ टमाटर न जाता हो।.यहां के टमाटरों की इतनी मांग है कि यहां के किसान दिन रात मेहनत करके रबों की कमाई करने के बाद भी मांग को पूरा नहीं कर पाते.. टमाटरो ने इस गांव को प्रदेश का मीर गांव तो बनाया तो है मगर यहां के किसानों की एकता और नियोजित खपत प्रणाली ने मुनापे पर चार चांद लगा दिया है।   



हमशक्लों का गांव

केरल के मलप्पुरम जिले का एक गांव है कोडिन्ही.। जो हमशक्ल संतानों  के गांव के तौर पर  पूरे इलाके में जाना जाता है। इस समय यहां पर करीब 350  संतानों मेंकोई जुडवा तो कोई हमशक्ल से है। जिनमे नवजात शिशु से लेकर 65 साल के बुजुर्ग तक शामिल है। विश्व स्तर पर तो हर 1000 बच्चों में केवल 4 बच्चें ही हमशक्ल से होते है. लेकिन इस गांव में हर 1000 बच्चों पर 145 बच्चे या तो जुड़वा पैदा होते है या अलग अलग मैं से पैदा होने के बाद भी इनकी शक्ल कदम मिलती जुलती है.  इस गांव में मुस्लिम की संख्या ज्यादा है। यहां पर हर जगह एक ही शक्ल के कई बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर जगह मिल और देखे जाते है। ईश्वर की इस लीलासे गांव समेत आस पास के लोग भी अचंभित है। .

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