गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

संबंध में आजादी

प्रस्तुति- दर्शनलाल

By | Source भास्कर न्यूज

भारत....अजब-गजब परंपराओं का देश रहा है। हर प्रांत, हर क्षेत्र...जितना वृहद उतनी ही अलग वहां की परंपराएं और संस्कृति....यहां चप्पे-चप्पे पर बिखरी पड़ी हैं एक से लेकर एक मान्यताएं...कुछ अच्छी तो कुछ काफी विचित्र...इस देश में जहां एक ओर सेक्स को लेकर काफी दोयम दर्जे के ख्यालात मौजूद हैं, वही कुछ स्थान ऐसे भी हैं, जहां सेक्स को लेकर स्वच्छंद माहौल है। 

आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी ही जगह के बारे में, जहां भारत के सो-कॉल्ड मॉडर्न सोसाइटी से भी काफी स्वतंत्रता है। मगर इसी स्वतंत्रता के बीच ही व्याप्त है एक ऐसी मान्यता, जिसे अगर विचित्र कहा जाए तो गलत नहीं होगा। 

मानवीय अंगों के विकास और उनसे जुड़ी भ्रांति किसी भी आदिम समाज में होना आम बात है, मगर इन सबके बीच मौजूद दंतकथाएं भी काफी रोचक हैं। कुछ जनजातियों में जहां मानव लिंग की कल्पना एक विशाल अंग के तौर पर की गई, जो अपने दम पर पूरा जंगल साफ करने में सक्षम था, वहीं कुछ जनजातियों में आज भी ये मान्यता है नारी योनि में कभी दांत हुआ करते थे। योनि और मासिक स्राव को लेकर तो और भी रोचक सिद्धांत मौजूद हैं यहां। साथ ही, खुली छूट है अपना जीवनसाथी खुद चुनने की। 
आखिर कौन-सी है ये जगह, क्या है यहां की भ्रांतियां और कैसे लोगों को मान्यताओं के नाम पर मिली हुई है संबंध बनाने की विशेष छूट, जानिए आगे डेमो तस्वीरों के झरोखे से...
बात हो रही है महाराष्ट्र के मादिया गोंड जनजाति की। नागपुर से सटते चंद्रपुर और गढ़चिरोली जिला के घने जंगलों के बीच गुजर-बसर करने वाली इस जनजाति के बीच कई मान्यताएं व्याप्त हैं। नक्सलवाद से जूझते एवं आधुनिक संसाधनों से दूर इस जगह की इन जनजातियों के बीच ऐसी कई मान्यताएं हैं, जो काफी रोचक और कभी-कभी विचित्र लगती हैं। 
आम तौर पर गोंड आदिवासियों में कई प्रकार की मान्यताएं प्रचलित हैं। मसलन कहीं पुरुष लैंगिक अंगों से जुड़ी काफी रोचक मान्यताएं होती हैं, वहीं यहां महिलाओं से जुड़ी भी कई अजीबोगरीब मान्यताएं हैं। 
यहां की एक किंवदंति के अनुसार महिलाओं की योनि को लेकर काफी भ्रांतियां हैं। यहां के बाशिंदों का मानना है कि महिला की योनि पहले ठीक मुंह की तरह थी। 
योनि में पहले दांत भी हुआ करते थे, इससे उस वक्त मैथुन करने में भी काफी दिक्कतें आती थी। अंतः एक ईश्वरीय श्राप के कारण योनि से दांतों का टूट-टूटकर गिरने का सिलसिला जारी हुआ। 
इस क्रम में योनि से खून आता है, जिसे मासिक स्राव के रूप में जाना जाता है। धीरे-धीरे पीढ़ी-दर-पीढ़ी इन दांतों की संख्या कम हो गई। आखिरकार, योनि के दांत गिर गए, मगर आज भी मासिक स्राव के समय रक्त का बहाव होता है। 
अब चूंकि योनि से जुड़े श्राप के कारण यहां महिलाओं को मासिक स्राव के दौरान बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है। उन्हें किसी मांगलिक कार्य में शरीक होने की इजाजत नहीं होती। और तो और, मासिक स्राव के दौरान किसी महिला को देख लेना भी बड़ा अशुभ माना जाता है।
मगर इन कुछ चीजों को छोड़ दें तो यहां वैसे महिलाओं को काफी स्वतंत्रता होती है। वे न सिर्फ अपनी मर्जी से संबंध बना सकती हैं, बल्कि पति भी खुद चुनने की स्वतंत्रता होती है।
और तो और, यदि किसी स्त्री का पति उसे संतुष्ट न कर पाता हो या फिर उसे किसी तरह की दिक्कत हो तो फिर वो अपने पति को त्याग कर किसी दूसरे पुरुष के साथ अपनी मर्जी से संबंध बना सकती है और रह सकती है।
घने जंगलों के बीच गुजर-बसर करने वाले इन जनजातियों में साक्षरता की कमी, मौजूदा संसाधनों का अभाव और सरकारी मदद का न पहुंच पाना एक अहम कारण रहा, जिसके कारण काफी समय तक ये जनजातियां उपेक्षित रहीं।  धीरे-धीरे यहां भी बदलाव की बयार बहनी शुरू हो गई है।
समय के साथ यहां धीरे-धीरे साक्षरता का प्रसार भी हो रहा है और अब ये जनजातियां अपने पारंपरिक परिवेश को त्याग कर आधुनिक चीजों को अपनाने लगी हैं। 
 

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