अनामी
रिपोर्ट- 6
मातृभाषा2
1
पहले
राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू के बैंक खातेमें केवल 1432 रूपये
अगर
किसी देश के राष्ट्र्पति की कुल पूंजी केवल रू. १४३२रूपए की हो सकती है। मगर भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र
प्रसाद के बैंक में बस्स इतनी ही नगदी थी। यह खाता किसी और का नहीं बल्कि हमारे
देश के प्रथम राष्ट्र्पति डा.
राजेन्द्र प्रसाद जी का है। यह बचत खाता संख्या ३०६८, पंजाब नेशनल बैंक, एग्ज़ीबिशन रोड, पटना में है। जिसे बैंक ने डेड काता
करने की बजाय गौरवपूर्ण याद के रूप में पिछले
50 वर्षों से चालू रखा है यह छोटी सी जमा राशि
दर्शाती है कि राजेन्द्र बाबू कितने ईमानदार थे। बैंक
द्वारा इस खाते को राजेन्द्र बाबू के
निधन के बाद भी उनके सम्मान-स्वरूप बंद नहीं किया गया है. वैसे भी उनके परिवार के
किसी सदस्य ने दावा भी नहीं किया”। बैंक ने
२६ जून, २००७
को इस खाते की सार्वजनिक घोषणा की थी।
( इस खबर के साथ पहले राष्ट्रपति का फोटो जोड़ लेंगे)
2
केवल 15 दिन का है यह रेलवे स्टेशन
स्थानीय लोगों का मानना है कि मानव रूपी भगवान ने यहां
कभी अपने पुरखों के मोक्ष के लिए पहला
पिंडदान किया था, जिसके बाद से ही यहां पिंडदान
की परंपरा शुरू हो गई।
2. भारत की सबसे सुस्त ट्रेन
मेतुपलयम ऊटी नीलगिरि पैसेंजर ट्रेन को भारत की सबसे कम गति से चलने वाली सुस्त रेल का तगमा मिला है। ये पैसेंजर रेलगाड़ी मात्र 10 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से रेंगती है। यह रफ़्तार भारत की सबसे तेज रफ़्तार से भागने वाली ट्रेन से दस गुना कम है। इसी क्रम में गुजरात में वड़ोदरा में प्रतापनगर – जम्बूसर पैसेंजर ट्रेन आती है जिसकी अधिकतम गति 12 किमी प्रति घंटे की है। और 11 किमी की औसत गति से 44 किलोमीटर की दूरी तय करने में यह पूरे 4 घंटे लगाती है. इस धीमी ट्रेन के साथ एक और खासियत यह है कि जब कोई क्रॉसिंग आती है, तो ट्रेन का सहायक चालक रेल को रोक कर र रेल से खुद उतरकर गेट बंद करता है और गेट से आगे रेल के निकलने के बाद ड्राईवर को रेल रोककर वापस आकर गेट खोलना भी होता है, ताकि ट्रैफिक शुरू हो सके। मैनलेस गेट होने के कारण गेट खोलने के बाद वह ट्रेन को आगे लेकर जाताहै।
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सबसे लंबी और सबसे कम दूरी की रेलगाडी
. डिब्रूगढ़ से कन्याकुमारी तक चलने वाली विवेक एक्सप्रेस भारत में सर्वाधिक लंबी दूरी तय करने और सबसे ज्यादा समय लेने वाली ट्रेन है! अपने पूरे सफर में यह रेल 4273 किलोमीटर की दूरी 76 घंटे में तय करती है। वही नागपुर से अजनी तक चलने वाली ट्रेन केवल 3 किलोमीटर की दूरी तय करती है। कम दूरी के कारण इसको भारत की सबसे कम दूरी तय करने वाली ट्रेन में शामिल है ! असल में ये ट्रेन केवल रेलवे कर्मचारियों को नागपुर से अजनी स्थित वर्कशॉप तक लाने ले जाने के लिए नियमित तौर पर समय सारिणी के आधार पर संचालित है।
5
यहां दिल्ली की वेश्याएं आकर
ये किसकी कब्र है, किसी को मालूम नहीं। पर यहां पर दिल्ली की बदनाम बस्ती यानी जी बी रोड़ की वेश्याएं लंबे समय से इधर आकर दुआ मांगती है. मजार पर मत्था टेकने का यह सिलसिला पचासों साल से जारी है। दिल्ली कालेज-एंग्लो एराबिक स्कूल कैंपेस के भीतर यह मजार है। यह दिल्ली का सबसे पुराना स्कूल है, जो कभी मदरसा होता था। फिर स्कूल बना और उसके बाद कालेज। स्कूल कॉलेज कहीं और शिफ्ट हो गए, मगर पुरानी हवेली में हर गुरुवार को सेक्सवर्करों का यहां पर जमघट लगता है। कुछ जानकार कहते हैं कि ये मजार मुगलकाल की है। मगर इधर बहुत सी और भी कब्रें हैं। मान्यत्ता है कि इस मजार पर मत्था टेकने से वेश्याओं को अगले जन्म में इसका फल मिलता है।
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दुकान हैं, मगर दुकानदार नहीं
आमतौर
पर हर दुकान में सामान बेचने वाला एक दुकानदार होता है, मगर मिजोरम के एंजल में
बिना दुकानदार के दुकान की अवधारणा काफी लोकप्रिय है। एंजल में सैकड़ों बिन दुकानदार की
दुकाने है। पहाडी क्षेत्र में काफी
दूर दूर से लोग पैदल चलकर सामान खरीदने आते हैं और दुकान में किसी भी
दुकानदार के नहीं होने के बावजूद वे अपना सामान लेकर और ईमानदारी से वहां पर रखे बक्से
में पैसे रखकर चले जाते हैं। यहां से 70
किलोमीटर दूर
शिलॉंग और कीफंग गांव
में हरेभरे जंगलों के बीच ये दुकानें है। जो इस रास्ते से गुजरने वाले थके मांदे
पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी हैं।
रास्ते में पड़ने
वाली ऐसी अनेक दुकानों को जिसे स्थानीय भाषा में ‘नगाहलोह
दावर’ कहते
हैं। इससे ताजी हरी सब्जियां, फल
और अंडों को खरीदने
में किसी के द्वारा बाधा नहीं पहुंचाई जाती है। दुकान के मालिकों का कहना है कि कोई
भी हमारी सब्जियां या सामान नहीं
चुराता है। छोटे बोर्ड पर सभी सामान की कीमत लिखी होती है।.
इनका कहना है कि केवल दुकान से आजीविका संभव नहीं है लिहाजा ईमानदारी से दुकान को
खाली छोड़कर और काम किया जाता है। यानी इलाके में छोटी छोटी दुकानें एक मैनलेस कारोबार है..
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साबुन
से नहाकर आलसपन भगाओ
आमतौर
पर स्नान करने से कोईभी आदमी तरोताजा हो जाता है। मगर लंदन के वैज्ञानिकों ने एक
ऐसा साबुन बनाया है जो आलसी लोगों के
आलस को भगाने में काम आएगा.। इस साबुन का नाम है शावर-शौक। इसके एक बार इस्तेमाल करने पर दो कप काफी के बराबर
कैफिन शरीर में पहुँचाया जा सकेगा।
इसके निर्माता,
थिंकगीक.काम ने
यह साबुन सुबह उठने में आलस और थकान महसूस करने वालों को ध्यान में रखकर ही बनाया है ।
साबुन के इस्तेमाल के करीब पाँच मिनट के भीतर ही असर दिखने लगता है।
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रावण बध का शोक मे
गागल युद्द
उत्तराखंड
की राजधानी देहरादून से करीब 50 किलोमीटर दूर कालसी ब्लॉक में जौनसार जनजातीय
क्षेत्र में रावण बध के शोक में शोक युद्द (गागली युद्ध) का आयोजन होता है। उत्पाल्टा
व कुरोली गांव के बीच दशहरे के दिन रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है,। यहां
उत्पाल्टा व कुरोली गांव के बीच पश्चाताप की लड़ाई यानी रावण बध के शोक में गागल युद्ध
होता है।
जिसमें दोनों गांव के सैकड़ों लोग रावण बध के विलाप में रामसेना के खिलाफ हमला
करते है। यही रावण बध के मातम को गागल युद्द करके मनाने की परम्परा सदियों पुरानी
है।
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