प्रस्तुति- संत शरण
विधवा का जीवन
हमारे देश भारत में आज भी कुछ ऐसी परम्पराय जीवित है जो हमे अचरज में डालती है। ऐसी ही एक परम्परा है पति कि सलामती के लिए पत्नी का विधवा का जीवन जीना। यह परम्परा गछवाह समुदाय से जुडी है। यह समुदाय पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और इससे सटे बिहार के कुछ इलाकों में रहता है। ये समुदाय ताड़ी के पेशे से जुड़ा है।
इस समुदाय के लोग ताड़ के पेड़ों से ताड़ी निकालने का काम करते है। ताड़ के पेड़ 50 फीट से ज्यादा ऊंचे होते है तथा एकदम सपाट होते है। इन पेड़ों पर चढ़ कर ताड़ी निकालना बहुत ही जोखिम का काम होता है। ताड़ी निकलने का काम चैत मास से सावन मास तक, चार महीने किया जाता है। गछवाह महिलाये (जिन्हे कि तरकुलारिष्ट भी कहा जाता है ) इन चार महीनो में ना तो मांग में सिन्दूर भरती है और ना ही कोई श्रृंगार करती है। वे अपने सुहाग कि सभी निशानिया तरकुलहा देवी के पास रेहन रख कर अपने पति कि सलामती कि दुआ मांगती है।
तरकुलहा देवी |
तरकुलहा मंदिर |
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